गाँव की दो औरतें बाजार से सामान लेकर लौट रही थीं, आसमान नीला दिख रहा था, गर्मी और बरसात का महीना था, हल्की ठंढ़क हुई थी, शाम के छह या सात बजे थे, सूर्य ढ़लने ही वाला था I जैसे ही वो औरतें एक तालाब के पास पहुंची वैसे ही ! हूँऊऊऊ हूँऊऊऊ !!! उन्हें एक बच्चे के सिसकने की आवाज सुनाई दी, बहन तुम्हें कुछ सुनाई दिया ? एक ने दूसरे से कहा l हाँ बहन! ये आवाज तो तालाब के तरफ से आ रही है, चलो देखते हैं I हाँ चलो! दूसरे ने जवाब दिया l अरे ये बच्ची कौन है आधा शरीर पानी में और सर किनारे पर है, छह या सात साल की लग रही है, दोनों आपस में बात कर रही थीं, उन्होंने उसे निकालने के लिये उसको पकड़ा, तभी ! नहीं मैं अब नहीं करूंगी, अब मैं गलती नहीं करूंगी, चाची मुझे छोर दीजिये, मुझे मत मारिये, आप जैसे बोलेंगी मैं करुँगी हूँऊऊऊ हूँऊऊऊ !!! अरे बेटी हम तुम्हें मार नहीं रहे हैं, तुम कौन हो ? सर फटा हुआ था, खुन बह कर जम गया था, चेहरे पर कीचड़ लगा था उसे तालाब के पानी से साफ किया उन औरतों ने, अरे! ये तो कुसुम है I हाँ! ये तो प्रद्युम्न की बेटी है I क्या हुआ बेटी? तुम यहाँ कैसे? हूँऊऊऊ हूँऊऊऊ !!!अरे चुप हो जाओ बेटी, किसने तुम्हें मारा? क्या नहीं करोगी? हूँऊऊऊ हूँऊऊऊ !!! लगता है डर गई है, चलो पहले इसे अपने घर ले कर चलते हैं, हाँ ! इसे अपने घर ले चलते हैं I दूसरे औरत ने भी हामी भरी और उसे अपने घर लेकर आ गई, पहले कुसुम को ठीक से नहलाया धुलाया, सर पर कटे जगह पर ठीक से सफाई करके एक लेप लगाया और रुमाल की पट्टी बाँध दी, अच्छे से तेल लगा के बाल झाड़ा और तैयार कर के कुछ खाने को दिया, कुसुम अब थोड़ी ठीक लग रही थी, उन औरतों ने कुसुम से फिर पूछा, अब ठीक से बतलाओ कुसुम तुम्हारा ये हाल कैसे हुआ? कुसुम डर रही थी । डरो नहीं ! यहाँ तुम्हें कोई कुछ नहीं करेगा I हाँ बेटी बोलो क्या हुआ? दूसरी औरत ने भी पूछा, कुसुम ने हल्के सिसकते हुए बोला, मैं आँगन में और बच्चों के साथ खेल रही थी तो छोटी चाची ने मुझे कुछ बाजार से लाने को बोला, तो मैंने बोला मैं थोड़ी देर में ला दूँगी, तो चाची ने मुझे वहाँ से खिंच कर हांथ,डंडे और इंट से खूब मारा और मुझे ले जाकर तालाब में फेंक दिया, उसके बाद मुझे कुछ याद नहीं है I हूँऊऊऊ !!! फिर कुसुम रोने लगी और बोलने लगी मेरी माँ मुझे अकेला छोर कर भगवान के पास क्यूँ चली गई ? हूँऊऊऊ !!! कुसुम की बात सुन कर उन दोनों औरतों की आँख भर आई और दोनों औरते कुसुम को प्यार करके बोला, नहीं बेटी ! वो तुम्हें भगवान के पास से देख रही हैं, बहुत जल्द सब ठीक कर देंगी I कुसुम उन औरतों की बाते सुन कर सिसकते हुए बोली, हाँ काकी मुझे भरोसा है भगवान पर और माँ पर एक दिन ज़रूर वो मुझे अच्छा कर देगी I शाम हो गया था, प्रद्युम्न के काम से लौटने का समय हो गया था, औरतों ने कुसुम को बोला! अभी तुम्हारे पिताजी आते ही होंगे, तुम उन्हें सारी बात बता देना, वो चाची को खूब डाँटेंगे I थोड़ी ही देर में कुसुम को नींद आ गई, वो वहीँ सो गई, प्रद्युम्न जब काम से आये तो उन्होंने कुसुम को ढूँढा तो बच्चों ने सारी बात बता दी, प्रद्युम्न घबरा कर कुसुम को इधर उधर ढूंढने लगे तभी किसी ने बतलाया की वो तो बड़ी काकी के यहाँ है, प्रद्युम्न भाग कर काकी के यहाँ पहुंचे, वहाँ कुसुम सो रही थी और वो दोनों औरतें उसके पास ही बैठी थीं, दीदी आप के यहां ये कैसे आई ? प्रद्युम्न ने उन औरतों से पुछा, उन दोनों औरतों ने प्रद्युम्न को सारी कहानी कह सुनाई, ये सब सुन कर प्रद्युम्न की आंखे भी भर आई और बोलने लगे बिन माँ की बच्ची है, ऊपर से चार भाई बहनो में एक ही तो बची है, मेरे बुढ़ापे का सहारा, फिर भी भाभी को इस फूल सी बिन माँ की बच्ची पर दया नहीं आता है, मैं तो काम पर चला जाता हूँ, मेरे पीछे मेरी फूल सी नाजुक बेटी को वो इतना मारती हैं, मुझे तो पता ही नहीं था, इसलिये ही शायद ये हरदम डरी सहमी रहती है,अब अगर मैं भाभी को कुछ बोलूंगा तो वो मेरे ना रहने पर फिर इसे मारेंगी इसलिये मैं कल ही इसे इसकी नानी के पास छोड़ आऊंगा, ना यहाँ रहेगी ना इतना दुख झेलेगी, इतना कह कर प्रद्युम्न कुसुम को अपने कन्धे पर उठा कर अपने घर लेकर चले गये I
कुसुम जब डेढ़ साल की थी तभी उसकी माँ उसको छोर कर बैकुंठ लोक चली गई थी, माँ के पेट में उस समय कुसुम का भाई भी था, जैसे तैसे मरे हुए माँ के पेट से बच्चे को निकाला गया लेकिन माँ के गुजरने के तीसरे ही दिन उसके तीन दिन का दुधमुहा भाई भी उसे छोड़ कर चला गया, कुसुम से बड़ी दो और बहनें थी वो तो पहले ही कुसुम को छोड़ कर चली गई थीं, कुसुम अब बिल्कुल अकेली थी, गाँव मे उस समय कुछ ही बच्चे जिवित बचते थे, सब को डायन मार देती थी और कुछ को दो देवियाँ एक दूसरे की लड़ाई में मार देती थी, कहते हैं गाँव की दो बच्ची खौलते कड़ाही में गिर कर मर गई थी और वो दोनों ही देवी बन गई, उसमें से एक लोगों को मरना चाहती थी तो दूसरा उसको बचाती थी, सब कहते हैं यही कुसुम की बहनों और उसकी माँ के साथ भी हुआ एक देवी ने इन सब को मार दिया लेकिन कुसुम को दूसरी देवी ने बचा लिया, कुछ लोगों का मानना है कुसुम की दो बहनें घर के पीछे बहुत ऊँचा तार का पेड़ है वो हरदम उसपे रहती हैं, गाँव में ग़ज़ब का अंधविश्वास था, बीमारी का इलाज भी लोग झार फुक से करवाते थे डॉक्टर से नहीं, लोग मरते रहें लेकिन सब यही मानते थे कि ये काम डायन या देवी का है I अंधविश्वास ऐसा की किसी को दो उल्टी हो जाये तो लोग कहते डायन ने नज़र लगा दिया होगा I कुसुम की माँ बहुत ऊँचे घराने से थी, कहते हैं जब शादी करके आई थीं तो दो बक्शा भर कर गहना जवाहरात साथ लाई थी, पिता जी भी बगल के स्टेट के राजा जी के यहाँ उनका हिसाब किताब देखते थे तो, राजा जी ने खुश होकर 100 एकर जमीन और हाथी आने जाने के लिये पुरस्कार में दे दिया था, प्रद्युम्न पाँच भाई में तीसरे थे, सबसे बड़े भाई और भाभी पहले ही गुजर गये थे कुछ ही दिनों बाद दूसरे भाई भी गुजर गये, उन्हीं की पत्नी ने कुसुम को मार कर फेंक दिया था, जब कुसुम की माँ मरी तो सभी उन्हें जलाने ले जा रहे थे मगर वो चाची लगी थी कुसुम की माँ का गहना उनके कमरे से निकालने में, पहले लोग गहना जेवर मटका मे रख कर अपने कमरे मे ही जमीन खोद कर डाल देते थे चोरी के डर से, चाची ने दो बड़े बड़े पीतल के मटके ज़मीन खोद कर निकाला था, लेकिन वो पकडी गई और सब वापस करना पड़ा था, इसी दिन से वो कुसुम के पीछे पडी थी वो सोचती थी कुसुम भी मर जायेगी तो सारा जायदाद हमारा हो जाएगा, पहले प्रथा थी घर मे जो बड़ी होती थी उन्हीं की बात मानी जाती थी I
कुसुम नानी के पास आ गई, उसका ननिहाल बहुत ऊंचा घराना था, हाथी घोड़ा सब था, कुसुम को वहाँ बहुत प्यार मिला, बहुत तकलीफ झेली थी कुसुम ने अब जाके उसको आराम मिला था बहुत खुश थी वो यहाँ आ कर, लेकिन पिता के लिये परेसान भी थी कि पिता जी को खाना पानी भी कोई देता होगा के नहीं, उनका पैर अब कौन दबाता होगा वहाँ ? यही सब सोंच कर कुसुम परेसान थी I खैर जैसे तैसे समय बीता, कुसुम 14 साल की हो गई तो पिता ने शादी के लिये लड़का ढूंढना शुरू किया, एक लड़के के बड़े मे पता चला तो वो गये लड़के के गाँव मे सब ने उन से झूठ बोला कि ये सारी जमीन जायदाद लड़के के पिता का है और वो उन लोगों की बातों में आ कर कुसुम की शादी उस गाँव के लड़के रामेश्वर से कर दी, शादी में खूब गहना जेवर दिया प्रद्युम्न ने अपनी लड़की को, लेकिन शादी के बाद जब प्रद्युम्न कुसुम से मिलने गये तो दंग रह गये उनकी बेटी एक टूटे फूटे फूस के घर में रह रही थी, उसका सारा जेवर भी उससे ले लिया गया था, प्रद्युम्न को समझ मे आ गया कि उनके साथ धोखा हुआ है, लेकिन वो कर क्या सकते थे, कुसुम से पूछा बेटी कैसी हो? तुम्हें कोई तकलीफ़ तो नहीं है ना ? कुसुम ने बोला पिता जी सब ठीक है, अभी कुछ दिन के बाद हमे ये ले जायेंगे दूसरी जगह जहाँ ये नौकरी करते हैं,आप चिंता मत करिये ये बहुत अच्छे हैं, सब ठीक कर देंगे और भगवान आपकी बेटी को कोई तकलीफ नहीं होने देंगे, कुसुम की बात सुन कर प्रद्युम्न ने आँख पोछते हुए बोला, बचपन से आज तक भगवान ने तुझे कष्ट ही तो दिया है फिर भी तू भगवान पर इतना भरोसा कर रही है, मेरी बेटी बहुत हिम्मत बाली है I
कुछ ही दिन में कुसुम अपने पति रामेश्वर के साथ दूसरी जगह आ गई, जहां रामेश्वर सरकारी स्कुल में पढ़ाते थे, उन्होंने कुसुम को बहुत प्यार दिया, कुछ दिन बाद कुसुम को बच्चे हुए, रामेश्वर को भी पदोन्नति मिला और तबादला भी हुआ उसके बाद उनके बच्चे बड़े हुए उसके बाद पति और बच्चों ने कुसुम को रानी माँ जैसा बना के रखा, उसके बाद कुसुम ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा, कुसुम आज देश विदेश घूम रही है इतने सारे यहाँ वहाँ घर है, कुसुम के पास हर सुख शांति है, वो अब ठाठ से रहती हैं बहुओं से सेवा करवाती है और पोतों पोती के साथ खेलती हैं, अब वो कहती हैं कि मैं जानती थी भगवान इतने निर्दयी नहीं हो सकते उन्होंने मेरी गुहार सुन ली और मैंने जो कष्ट झेले वो सब अब भगवान ने सही कर दिया, आज मैं बहुत खुश हूं I
✍️ स्वरचित : गौरव कर्ण (गुरुग्राम, हरियाणा)