जहन में वो तो ख़ाब जैसा है,
वो बदन भी गुलाब जैसा है,,
बंद आँखों से पढ़ भी सकता हूँ,,
तेरा चेहरा किताब जैसा है,,
मेरी पलके झुकी है सजदे में,
दिल भी गंगा के आब जैसा है,,
हर घड़ी ज़िक्र तेरा करता हूँ,
ये नशा भी शराब जैसा है,,
अर्पित शर्मा "अर्पित"
25 जून 2018
जहन में वो तो ख़ाब जैसा है,
वो बदन भी गुलाब जैसा है,,
बंद आँखों से पढ़ भी सकता हूँ,,
तेरा चेहरा किताब जैसा है,,
मेरी पलके झुकी है सजदे में,
दिल भी गंगा के आब जैसा है,,
हर घड़ी ज़िक्र तेरा करता हूँ,
ये नशा भी शराब जैसा है,,
अर्पित शर्मा "अर्पित"
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मेरी पलके झुकी है सज़दे में,
दिल भी गंगा के आब जैसा है,,
अर्पित शर्मा "अर्पित"
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