ये शहर है… मेरा !
कल तक जहाँ रंगीनियाँ थीं , आज ख़ामोशी है , बेचैनी है ।
लगता है ,दस्तक दी है फिर किसी तूफ़ान ने ,
हर तरफ़ भाग दौड़ है ,
आज ,धर्म -जाति से परे सब साथ हैं !
इस तूफ़ान से लड़ने के लिए सब तैयार !
वैसे , शक्ति तो साथ में ही है ।
तूफ़ान तो हर बार अलग- अलग वेश में आता है ।
मगर क्या, हर बार हमें ‘साथ’ मिल पाता है .....?
ये तूफ़ान भी थम जाएगा ,
ये चमन मुसकाएगा ।
मगर , क्या ये सबक समझ आएगा…..?
परमजीत कौर
16 .03.2020