संतुलन
हर तरफ़ अफ़रा -तफ़री का माहौल था ,
अचानक उठे तूफ़ान की थपेड़ों में जहाज़ हिचकोले खा रहा था ।
पूरा वातावरण बेचैनी और खौफ़ में सिमट गया था ।
तभी जहाज़ के कप्तान ने आकर कहा – यह बहुत मुश्किल का समय है , मगर धैर्य से स्थिति को नियंत्रण में किया जा सकता है । आप सब घबराएँ नहीं ,मैं जहाज़ को किनारे तक ले जाने का हर संभव प्रयास करूँगा ।
अरे ,यहाँ मरने से तो अच्छा है ,हम तैरकर किनारे पर चले जाएँ ।घबराहट में कुछ लोग कप्तान को बुरा- भला कहते हुए दूसरों को उकसा रहे थे ।
लहरों की गति तीव्र हो रही थी ।
लोगों ने उन्हें समझाया ,होंसला दिलाया ,
तूफ़ान में फंसे दूसरे जहाज़ों का मंज़र भी दिखलाया ,मगर उन्हें कुछ समझ नहीं आया ।
तभी , कुछ लोगों ने समुद्र में छलांग लगा दी ,
जहाज़ बुरी तरह डगमगाया
लोग गिर रहे थे ....मगर …एकाएक ,धैर्य से साथ मिलकर उन्होंने संतुलन बनाया ।
धीरे- धीरे सब संभलने लगा
तूफ़ान ने जहाज़ को ख़ूब हिलाया मगर उसका संतुलन न बिगाड़ पाया ।
धीरे- धीरे जहाज़ किनारे पहुँच गया । सब ख़ुश थे मगर कुछ साथ छूट जाने का अफ़सोस भी था ।
काश ! उन्होंने भी धैर्य से संतुलन बनाया होता तो आज सब साथ होते !
दोस्तों ,इस काल्पनिक कहानी को लिखने के पीछे मेरा उद्देश्य केवल आज की परिस्थिति में उम्मीद की किरण से आपको रूबरू करवाना है । विपरीत परिस्थितियों में घबराहट हमारी सोचने समझने की शक्ति को ख़त्म कर देती है जबकि धैर्य से विकट परिस्थितियों को भी नियंत्रण में किया जा सकता है । उम्मीद करती हूँ कि आपको मेरा ये प्रयास पसंद आएगा ।
परमजीत कौर
15.04.2020