उसकी आँखें नम थी।
पदक संभालते हुए हाथ भी काँप रहे थे।
पर चेहरे पर गर्व था।
शहीद की माँ जो थी।
लोगों ने बहुत सम्मान दिया।
मगर जैसे सब कल की बात हो गई।
आज किसी के पास उस बुढ़िया के लिए समय नहीं था।
किसी तरह पेंशन से गुजारा हो जाता था।
अपने बेटे की आँखों में देश के लिए कुछ करने की चाह देखती ,तो गर्व होता था।
आज बेटे की वर्दी में गर्व से भरी तस्वीर देखती है तो हंस कर कह उठती ,"गुरू गोबिंद सिंह ने अपने चार बच्चों के शहीद होने पर कहा था -"चार मुए तो क्या हुआ ,जीवत कहीं हज़ार।"
मुझे गर्व है कि मैं अपना एक बच्चा भी देश के नाम कर सकी।
मगर, उस दिन पड़ोस का विनय जब घर आया तो वह अपने घर के दरवाज़े पर ही खड़ी थी,
बेटा, आज तो तेरी परीक्षा थी न ,कैसी रही?
मौसी, परीक्षाएँ कुछ समय बाद होंगी, अभी तो हमें हिसाब बराबर करना है।
दूसरी पार्टी के लोगों ने हम पर हमला किया है, कुछ लोग घायल हुए हैं, अब हमें भी उनको सबक सिखाना है।
पर, बेटा तेरी पढ़ाई,?.. वह पीछे से बोलती रही मगर विनय जा चुका था।
वह सोचती हुई चुपचाप घर के अंदर चली गई।
जिस पीढ़ी को मजबूत बन देश को संभालना है, वह किस दल -दल में फंस रही है?
देश की सीमाओं को दुश्मन से सुरक्षित करने के लिए ज़रूर सपूत आएंगे,
मगर, देश के भविष्य को वर्तमान से लगती दीमक से हम कैसे सुरक्षित कर पाएंगे?
आए दिन, देश के अंदरूनी हालात के समाचार उसे विचलित कर देते थे।
जिस संविधान और तिरंगे की शान के लिए उसका बेटा मर मिटा, आज छोटे -छोटे स्वार्थों के लिए वह गलियों और चौराहों पर अपमानित होता है।
क्या उसके बेटे का बलिदान व्यर्थ जा रहा है?
आज फ़िर उसकी आँखें नम थी....
दोस्तों,
सैनिक अपने परिवार,धर्म ,जाति ,संप्रदाय से ऊपर उठ कर देश के लिए समर्पित होता है,
अपनी जान देकर भी देश की सीमाओं की रक्षा करता हैं
और
हम क्यों सुविधाओं के लालच में बंट जाते हैं ?
या बांट दिए जाते हैं।
पढ़ -लिख कर भी देश को खोखला करने वालों के चेहरों के पीछे छिपी असलियत नहीं जान पाते ?
क्यों उनके हाथों की कठपुतली बन जाते हैं?
हमारा संविधान, हमारा तिरंगा दो दिन की शान नहीं,
लाखों के बलिदान से हासिल की गई
हमारी पहचान है।
परमजीत कौर
25.01.2020