दूरी...... !
उस कंपकंपाती रात में वह फटी चादर में
सिमट- सिमट कर, सोने का प्रयास कर रही थी ,
आँखों में नींद ही नहीं थी ,
शरीर ठंड से कांप जो रहा था।
एक ही चादर थी , जो ओढ़ी थी, दोनों बहनों ने ,
तभी बाहर से आती मधुर आवाजों से,
वह बेचैन हो ,खिंचती चली गई।
झोपड़ी की बंद खिड़की के सुराख़ से दो आँखें बाहर झाँकने लगी ।
दूर रौशनी से नहाई, ऊँची इमारत से जैसे परियों की आवाज़ें सुनकर
वह मुस्काई ।
तो आज दीवाली है ! वह बुदबुदाई ,
तभी पीछे से हँसने की आवाज़ आई।
पगली , आज के दिन वहाँ कोई संत आते हैं ,
. और बच्चों को उपहार देते हैं। बड़ी कहती हुई जाकर सोने लगी।
अच्छा। … उसने ख़ुशी से बड़ी का हाथ पकड़ लिया।
क्या मुझे भी उपहार मिलेगा ?
मैं भी तो बच्ची हूँ न ?वह ख़ुशी से छटपटाई.......
हाँ , तुम भी अपने तकिये के नीचे अपनी इच्छा लिख दो।
बड़ी सो गई, दुबारा वही फटी चादर ओढ़ कर ,
छोटी मुस्काई , झट से एक कागज़ के टुकड़े पर
आढ़ा-तिरछा लिखा -मुझे भी चाहिए ‘रौशनी’
वह सो गई , चेहरे पर मुस्कान थी।
सुबह उठी, तो देखा, बहन खाना बना रही थी।
झोपड़ी में वही सीलन , बदबू ,अँधेरा था।
संत आए थे क्या ?
उम्मीद से नींद भरी आँखों से बहन के पास जाती है।
बहन मायूसी से मुस्कुराती हुए बाहर की तरफ़ इशारा करती है
ये दूरी देख रही है ? इमारत से झोपड़ी तक !
ये संत भी पार नहीं करते ।
छोटी (7 वर्ष)अपनी बहन (11 वर्ष)को प्रश्नभरी आँखों से देखती है।
क्यों है ये दूरी ........ ? छोटी बुदबुदाती हुई बाहर आकर इमारत को देखती है !
मेरी कलम से
परमजीत कौर
25 . 12 . 19