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दूरी...... !

26 दिसम्बर 2019

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दूरी...... !

उस कंपकंपाती रात में वह फटी चादर में

सिमट- सिमट कर, सोने का प्रयास कर रही थी ,

आँखों में नींद ही नहीं थी ,

शरीर ठंड से कांप जो रहा था।

एक ही चादर थी , जो ओढ़ी थी, दोनों बहनों ने ,

तभी बाहर से आती मधुर आवाजों से,

वह बेचैन हो ,खिंचती चली गई।

झोपड़ी की बंद खिड़की के सुराख़ से दो आँखें बाहर झाँकने लगी ।

दूर रौशनी से नहाई, ऊँची इमारत से जैसे परियों की आवाज़ें सुनकर

वह मुस्काई ।

तो आज दीवाली है ! वह बुदबुदाई ,

तभी पीछे से हँसने की आवाज़ आई।

पगली , आज के दिन वहाँ कोई संत आते हैं ,

. और बच्चों को उपहार देते हैं। बड़ी कहती हुई जाकर सोने लगी।

अच्छा। … उसने ख़ुशी से बड़ी का हाथ पकड़ लिया।

क्या मुझे भी उपहार मिलेगा ?

मैं भी तो बच्ची हूँ न ?वह ख़ुशी से छटपटाई.......

हाँ , तुम भी अपने तकिये के नीचे अपनी इच्छा लिख दो।

बड़ी सो गई, दुबारा वही फटी चादर ओढ़ कर ,

छोटी मुस्काई , झट से एक कागज़ के टुकड़े पर

आढ़ा-तिरछा लिखा -मुझे भी चाहिए ‘रौशनी’

वह सो गई , चेहरे पर मुस्कान थी।

सुबह उठी, तो देखा, बहन खाना बना रही थी।

झोपड़ी में वही सीलन , बदबू ,अँधेरा था।

संत आए थे क्या ?

उम्मीद से नींद भरी आँखों से बहन के पास जाती है।

बहन मायूसी से मुस्कुराती हुए बाहर की तरफ़ इशारा करती है

ये दूरी देख रही है ? इमारत से झोपड़ी तक !

ये संत भी पार नहीं करते ।

छोटी (7 वर्ष)अपनी बहन (11 वर्ष)को प्रश्नभरी आँखों से देखती है।

क्यों है ये दूरी ........ ? छोटी बुदबुदाती हुई बाहर आकर इमारत को देखती है !

मेरी कलम से

परमजीत कौर

25 . 12 . 19

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बहुत मार्मिक शब्द चित्र है , पर म जीत जी , कभी कभी सोचती हूँ कितना कलपता होगा ऐसे लोगों का मन , आखिर एसङ्ख्य छतों में एक छत क्यों उनके नाम की ना हो सकी ??

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सृजन.....! ज़िंदगी है ,बनती- बिगड़ती हसरतें , जो पूरी न होने पर भी नए सृजन की ओर इशारा करती हैं। सुबह की ओस की वे बूँदें , जो चंचलता से पत्तों पर थिरकती मिट्टी में समां जाती हैं , तो कहीं सूखे पत्तों- सी चरमराती ज़िंदगी, नया बीज पाकर फ़िर सेखिलखिलाती है। बचपन के किस्से ,कहानियों से निकल ,ज़िंदगी जैसे

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संतुलनहर तरफ़ अफ़रा -तफ़री का माहौल था ,अचानक उठे तूफ़ान की थपेड़ों में जहाज़ हिचकोले खा रहा था । पूरा वातावरण बेचैनी और खौफ़ में सिमट गया था । तभी जहाज़ के कप्तान ने आकर कहा – यह बहुत मुश्किल का समय है , मगर धैर्य से स्थिति को नियंत्रण में किया जा सकता है । आप सब घबराएँ नहीं ,मैं जहाज़ को किनारे तक ले जाने

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सबक..!

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आज वह फिर खड़ा है ,कठघरे में ,दोषी बन!वह ,जिसनेइंसान के बड़े से बड़े घाव पर मरहम लगाया। आज उसी के आरोपों से घायल यहाँ आया । कहता है – मैंने हँसाया या रुलाया, हर बार,तुझे सबक ही सिखाया । अनुभव भी दिए, आगे बढ्ने का हुनर भी बताया । ये तो तूने मेरी कद्र नहीं की, अपनी नासमझियों के लिए, मुझे ही दोषी ठहराया

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न्याय के लिए क्या मरना ज़रूरी है ....?

1 अक्टूबर 2020
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यह कौन -सा विकास हो रहा है ...? जहाँ ,गलत को सही ,और ,सही को दबा देने का प्रयास हो रहा है !वे कहते हैं ,साक्षरता बढ़ रही है । समाज की कुंठित सोच तो आज भी पनप रही है ।औरत आज भी है ,मात्र हाड़ -माँस की कहानी , शरीर की भूख मिटा , जिसे रौंद कर मिटा देने में है आसानी!हाँ ,यह लोकतंत्र है ...!अंधा क़ानून सबूत

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कोई हमें पढ़ाने क्यों नहीं आता ...?

7 अक्टूबर 2020
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प्रश्न नहीं ,अब परिभाषा बदलनी होगी !

11 अक्टूबर 2020
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चाहतीहूँ ,उकेरना ,औरत के समग्र रूपको, इस असीमित आकाश में !जिसके विशालहृदय में जज़्बातों का अथाह सागर,जैसे संपूर्ण सृष्टि कीभावनाओं का प्रतिबिंब !उसकेव्यक्तित्व कीगहराई में कुछ रंग बिखर गए हैं । कहींव्यथा है ,कहीं मानसिक यंत्रणा तो कहींआत्म हीनता की टीस लिए!सदियोंसे आज

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