shabd-logo

गज़ल

1 मई 2022

22 बार देखा गया 22
( मजदूर दिवस पर )

मन्ज़िलों से दिल मेरा अन्जान है,
मुश्किलों से सदियों से पहचान है।

पैरों ने थमना नहीं सीखा कभी, 
अपने छालों पर मुझे अभिमान है।

बेरहम है रौशनी की हर हवा,
तीरगी में ज़िन्दगी आसान है।

लौट आ परदेश, से मां करती ग़ुहार,
पेट लेकिन पैसों का दरबान है।

जां निकल जाती है दानी जीने में,
मरना जग में जीने से आसान है।

(  डॉ  संजय  दानी  )
भारती

भारती

बहुत ही बढ़िया 👌🏻👌🏻

1 मई 2022

Sanjay Dani

Sanjay Dani

1 मई 2022

धन्यवाद भारती जी

1
रचनाएँ
गज़ल
0.0
मजदूर दिवस पर एक ग्ज़ल।

किताब पढ़िए