( मजदूर दिवस पर )
मन्ज़िलों से दिल मेरा अन्जान है,
मुश्किलों से सदियों से पहचान है।
पैरों ने थमना नहीं सीखा कभी,
अपने छालों पर मुझे अभिमान है।
बेरहम है रौशनी की हर हवा,
तीरगी में ज़िन्दगी आसान है।
लौट आ परदेश, से मां करती ग़ुहार,
पेट लेकिन पैसों का दरबान है।
जां निकल जाती है दानी जीने में,
मरना जग में जीने से आसान है।
( डॉ संजय दानी )