शालू के मन में पचासों तरह के खयाल आ रहे थे । नींद कोसों दूर थी । रात के अंधेरे में जब नींद नहीं आती हो और ऐसे किसी गुंडे मवाली का ध्यान दिमाग में चल रहा हो तो कमरे में रखी हर चीज डरावनी लगती है । हवा के झोंके से झूलता पर्दा भी ऐसे लगता है जैसे उसे कोई झुला रहा हो । सांय सांय चलती हवा धड़कनों की गति तेज कर जाती है । जरा सी कहीं आहट होती है तो मन डर जाता है । पल्स बढ़ जाती है । अनेक खयाल मन में आते हैं । शालू के साथ भी यही हो रहा था । वह जग्गा के खयालों में ही डूबती उतराती रही । उसे पता ही नहीं चला कि कब उसे नींद आ गयी ।
अगले दिन सुबह के आठ बजे तक शालू सोती रही । मम्मी ने जगाया , नहीं तो आज लेट होने में कोई कसर नहीं थी । वह झट से उठ खड़ी हुई और अपने दैनंदिन कर्मों में व्यस्त हो गई । नाश्ता करके टिफिन लेकर शालू कॉलेज के लिए एक्टिवा से चल दी ।
आज उसका दिल धक धक कर रहा था । कहीं वही कल वाला आदमी , यानि जग्गा आज ना मिल जाये ? उसे यह यकीन तो नहीं था कि वह रास्ते में मिलेगा , मगर इसकी संभावना बहुत कम लग रही थी । कल तो संयोग से मिल गया था और संयोग रोज रोज नहीं होते हैं । इस सोच से उसे कुछ तसल्ली मिली । अपने अंदर के डर पर विजय पाने के लिए उसने एक गीत गुनगुनाना आरंभ कर दिया "ऐ मालिक तेरे बंदे हम , ऐसे हों हमारे करम" ।
वह दिव्या के मकान के सामने पहुंच गयी और गाड़ी खड़ी करके दिव्या का इंतजार करने लगी । उसकी पलकें मुंद गई । जब वह गाना खत्म हो गया तो उसने एकदम से आंखें खोल दीं । देखा तो सामने जग्गा मोटरसाइकिल पर बैठा है और उसे ही देखे जा रहा है । वह एकदम से घबरा गई । डर के मारे चीख भी नहीं निकली । जग्गा उसे लगातार घूरे जा रहा था । उसका मुंह ऐसे चल रहा था जैसे कोई सांड जुगाली कर रहा हो ।
शालू की निगाहें जैसे ही जग्गा की निगाहों से टकराई , एक चिंगारी सी उसके पूरे बदन में दौड़ गई । उसे लगा जैसे कोई पिघला हुआ लावा उसकी आंखों के रास्ते से पूरे शरीर में फैल रहा है । उसका सारा बदन कुंद हो रहा था । डर के मारे उसका बदन सन्निपात के मरीज की तरह थर थर कांपने लगा । इससे पहले कि वह एक्टिवा से नीचे गिर पड़ती , दिव्या आ गई । उसकी हालत देखकर वह चौंकी और चीखकर बोली
"शालू उ उ । क्या हुआ शालू "?
दिव्या ने शालू को संभाला । इतने में जग्गा जा चुका था । दिव्या ने पानी के छींटे शालू के चेहरे पर मारे तब जाकर उसे होश आया । दो चार लोग वहां पर आ गए ।
"क्या हुआ शालू ? तबीयत खराब है क्या ? यदि तबीयत खराब थी तो फिर क्यों आई" ? दिव्या ने एक साथ कई सवाल जड़ दिये ।
तब तक शालू संभल चुकी थी । उसने बरबस मुस्कुराने की कोशिश की और कहा "नहीं, ऐसी बात नहीं है दिव्या । मैं ठीक हूं । चलो, चलते हैं । पहले ही लेट हो गए हैं" ।
दिव्या बिना कुछ कहे एक्टिवा पर पीछे बैठ गई और एक्टिवा चल दी । थोड़ी देर तक दोनों खामोश रहीं लेकिन दिव्या ज्यादा देर तक खामोश नहीं रह सकी ।
"एक बात पूछूं, शालू" ?
"पूछ ना , एक ही क्यों जितनी मरजी हो उतनी पूछ ले" । शालू ने नॉर्मल दिखने के लिए ऐसे कहा । हालांकि शालू ने कह तो दिया मगर उसका दिल ही जानता था कि वह झूठ.बोल रही है । वह नहीं चाहती थी कि दिव्या कोई प्रश्न पूछे । मगर अब तो तीर कमान से छूट चुका था ।
"जग्गा को देखकर तू डर क्यों गई थी" ?
सीधा सपाट प्रश्न था जिससे बचने का वह प्रयास कर रही थी । इस प्रश्न का जवाब तो वह अभी तक ढूंढ नहीं पाई थी । वह खुद नहीं जानती थी कि जग्गा से उसे इतना डर क्यों लगता है ? जग्गा ने आज तक उसे कुछ नहीं कहा और न ही कोई भद्दे इशारे किये । फिर भी वह इतनी डरती है कि उसे देखते ही उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है । उसकी आंखों में हवस ही हवस भरी है । जैसे ही वह उसकी आंखों में देखती है तो उसे लगता है कि वह उसे आंखों से ही जिंदा चबा जायेगा । आग सी भरी हुई है उसकी आंखों में जिसमें जलकर भस्म हो जायेगी वह । चेहरा भी राक्षसों जैसा है उसका । उस पर सबको तुच्छ समझने का भाव । इतना क्या कम है डरने के लिए ?
"चुप क्यों है , कुछ तो बोल । क्या उसने कुछ कहा तुझे ? क्या उसने तुझे छेड़ा ? अगर ऐसा है तो बोल" ?
शालू को हैरानी हुई कि दिव्या तो ऐसे कह रही है जैसे उसे डर नहीं लगता हो । और पूछ ऐसे रही है जैसे अगर उसने छेड़ा होगा तो वह उसका इलाज कर सकती है । उसके होठों पर एक मुस्कान तैर गई । जवाब देने के बजाय उसने प्रति प्रश्न कर लिया
"तुझे डर नहीं लगता है क्या जग्गा से" ?
"सच कहूं तो नहीं" ।
इस जवाब से शालू बुरी तरह से चौंकी । ऐसा कैसे हो सकता है ? जिसकी शक्ल ही इतनी भयानक हो उससे दिव्या को डर क्यों नहीं लगता है ? यह तो बड़ी खास बात है । कारण तो पता चले
"क्यों, तुझे क्यों नहीं लगता है उससे डर" ?
थोड़ी देर तो दिव्या खामोश रही फिर बोली "पहले लगता था । बहुत ज्यादा लगता था । तेरी तरह । तब जग्गा मौहल्ले की लड़कियों / भाभियों को छेड़ता रहता था । हर किसी को उठा लेता था । एक दिन उसके एकदम पड़ौस की लड़की को उसने सरेआम छेड़ दिया । पूरा मौहल्ला जग्गा के घर के बाहर इकट्ठा हो गया और जग्गा को गाली देना शुरू कर दिया । तब जग्गा घर पर नहीं था । उसके मां बाप ने बीच बचाव करने की कोशिश की । दोनों पक्षों में एक समझौता हो गया । वह समझौता यह था कि जग्गा मौहल्ले की बेटी, बहुओं को नहीं छेड़ेगा । मौहल्ले के अलावा बाकी औरतों को छेड़ने पर मौहल्ले को कोई ऐतराज नहीं होगा । उस दिन से जग्गा ने मौहल्ले की औरतों को छेड़ना बंद कर दिया । अब जग्गा हमारा भैया बन गया । हमें तो अब मौहल्ला क्या पूरे शहर में कोई भी कहीं भी नहीं छेड़ सकता है । अगर किसी को पता नहीं हो और वह हमें छेड़ दे तो हम बस इतना ही कहते हैं कि जग्गा हमारा भैया है । बस इतना कहते ही वह शोहदा पैरों में गिर पड़ता है और बोलता है "माफ करना बहिन जी । गलती हो गई । आगे से नहीं होगी । ये बात जग्गा दादा को मत बताना, मैं आपके पैर पड़ता हूं" । ऐसे शोहदों को बकरी की तरह मिमियाते देखकर बहुत खुशी होती है और जग्गा पर फख्र भी होता है" । एक ही सांस में दिव्या यह सब कह गई ।
शालू को बड़ा आश्चर्य हुआ यह सब जानकर । एक गुंडे पर फख्र ? बड़ी अजीब बात है । ऐसा भी होता है क्या ? मौहल्ला उससे समझौता कर लेता है कि औरों की लड़कियां खूब छेड़ो पर हमारी नहीं । कितने स्वार्थी लोग हैं ये ? अपने को बचाने के लिए किसी के भी साथ होने वाले अपराध की अनदेखी कैसे कर सकते हैं ये लोग ? लेकिन ऐसा हो रहा है और इसी लोकतांत्रिक, सभ्य समाज, देश में हो रहा है । ईमानदार न्याय व्यवस्था की नाक के नीचे हो रहा है । सरकार, पुलिस, न्यायालय सब मौन हैं । वाह री हमारी व्यवस्थाएं ?
इतने में कॉलेज आ गया । दोनों कक्षा में चली गईं ।
शेष अगले अंक में
हरिशंकर गोयल "हरि"
20.3.22