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भाग 3

30 मार्च 2022

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शालू कॉलेज में चली तो गई मगर उसका मन पढ़ने में बिल्कुल नहीं लग रहा था । जग्गा की भूखी निगाहें उसका पीछा कर रही थीं । कितनी भूखी लग रही थीं वे आंखें ? जैसे कि मौका मिलते ही उसे निगल जायेंगी । शालू डर के मारे कांपने लगी । 

शालू के पास ही उसकी सहेली सलोनी बैठी थी । उसने शालू को कंपकंपाते देखा तो उसे लगा कि शालू को बुखार आ रहा है । सलोनी ने शालू को छूकर देखा तो उसका सारा शरीर बिल्कुल ठंडा पड़ा हुआ था । वह पसीने से लथपथ हो रही थी । 
"क्या हुआ शालू ? तबीयत तो ठीक नहीं लग रही है तेरी ?  क्या बात है डियर" ? 

शालू की जबान तालू से चिपकी पड़ी थी जैसे कि उसे डर हो कि कोई उसे खींचकर बाहर ना ले आये और उसके साथ कुछ "गलत" करे । शालू की ऐसी स्थिति देखकर सलोनी उसे कैंटीन में ले आयी और उसने दो कॉफी का ऑर्डर कर दिया । गर्म गर्म कॉफी सिप करने और सलोनी के अपनेपन ने शालू को थोड़ा संयत किया । अब वह बोलने की स्थिति में आ गई थी । 

शालू कहने लगी "तबीयत तो ठीक है सलोनी , मगर पिछले दो दिन से मैं बहुत परेशान हूँ । कारण जानना चाहोगी तुम" ? 
"श्योर । ऐसी क्या बात है ? आखिर हमें भी तो पता चले" । 
"तो सुन । ये तो तुझे पता ही है कि मैं अपनी एक्टिवा पर दिव्या को लेकर आती हूं" । 
"हा, पता है । आगे बोल" । 
"कल मैं उसे लेने के लिये जब उसके घर के सामने रुकी तब अचानक एक गुंडा बदमाश मेरी एक्टिवा के सामने मोटरसाइकिल पर आ गया । शक्ल से ही वह मवाली लग रहा था । उसने बड़ी गंदी नजर से मुझे देखा । हम लड़कियों को 15-16 की उमर से ही पता चल जाता है कि कौन आदमी या लड़का हमें कैसी नजर से देख रहा है" । 
"हां, वो तो है । भगवान ने हम लड़कियों को ऐसी शक्ति दी है कि हम लोग पुरुषों के दिमाग को थोड़ा थोड़ा पढ़ लेती हैं । हमारी दो आंखें पीछे भी होती हैं जिनसे हमें छोरों की हरकतें पता चल जाती हैं । और गंदी निगाहों को तो हम लड़कियां दूर से ही पहचान लेती हैं । आगे बोल" । 
"उसकी शोले सी दहकती आंखों से मैं बहुत डर गई थी । इससे पहले कि वह कुछ करता या कहता , दिव्या आ गई और वह उसे देखकर चला गया । रात में मुझे उसी का बड़ा भयावह सपना दिखा । सपने में वह मेरी ओर बढ़ रहा था और मैं बचने की कोशिश कर रही थी । डर के मारे मेरी घिग्घी बंध गई थी "। वह थोड़ी देर सांस लेने के लिए रुकी । 
"फिर क्या हुआ" ? 
"आज भी जब मैं दिव्या को लेने गई तो आज भी वह वहां पर खड़ा मिला । उसी तरह भूखी निगाहों से मुझे ताक रहा था । मैं कुछ सोच पाती कि इतने में दिव्या आ गई और वह वहां से चुपचाप चला गया । बाद मैं दिव्या बता रही थी कि वह जग्गा है" । शालू आगे कुछ बोलती इससे पहले ही सलोनी बोल पड़ी 
"ओह माई गॉड" । 
"तू जानती है जग्गा को "? आश्चर्य से शालू ने कहा 

सलोनी बहुत देर तक खामोश रही । उसके चेहरे पर अनेक भाव आ रहे थे और जा रहे थे । उसकी मुठ्ठियां कस गई थीं । 
शालू उसे झिंझोड़ती हुई बोली "कैसे जानती है तू ? ऐ, बता ना" । 

सलोनी जैसे होश में आई । "हां मैं जानती हूं उस राक्षस को । और मुझे लगता है कि उस हैवान को तो सभी लोग जानते हैं, शायद । लोग भले, ईमानदार और सत्यनिष्ठ व्यक्ति को नहीं जानते मगर दुष्ट, राक्षस, शैतान, गुंडों और मवालियों को अवश्य जानते हैं । बदनाम में भी नाम तो है ना" । 
"जल्दी बता कैसे जानती है उस 'हराम की औलाद' को "? 

" क्या बताऊं शालू , बड़ी दुखभरी कहानी है । तू तो जानती ही है कि हम लोग 'लोअर मिडिल फैमिली' से आते हैं । अपना घर खर्च ही ढंग से चल जाये , यही बहुत बड़ी बात होती है हम लोगों के लिए । पापा का एक छोटा सा बिजनेस है और मम्मा 'होममेकर' हैं । किराये के मकान में रहते हैं । पापा मम्मा ने जैसे तैसे करके कुछ पैसा जोड़ा और शास्त्री नगर में एक 40×50 का प्लॉट ले लिया । जिस दिन से वह प्लॉट खरीदा था उस दिन से मम्मा पापा ने अपने घर के सपने संजोने  शुरू कर दिये थे । कितना वाद विवाद होता था उस घर को लेकर हम लोगों के बीच ! पापा की इच्छा थी कि उस प्लाट में आगे की तरफ दो दुकान बना देते हैं जिससे अच्छा खासा किराया मिलता रहेगा ।  कुछ अतिरिक्त आय भी हो जायेगी । मम्मा कहती थीं कि नहीं, दुकन नहीं बनवायेंगे । दुकान बनवाने से तो सारे घर का लुक ही बदल जायेगा । और , यदि दुकानें बन जायेंगी तो फिर 'लॉन' कहां बनेगा ? दुकानों पर मनचलों की भीड़ खड़ी रहेंगी तो लड़कियों को घर से बाहर निकलने में असुविधा रहेगी । इसलिए मम्मा हम लड़कियों की सुरक्षा और हमारी इज्ज़त को लेकर बहुत चिंतित थी । हमने भी पापा को कन्विंस कर लिया कि आगे दुकान नहीं बनवायेंगे । पापा मान भी गये थे ।

एक दिन पापा ने एक आर्किटेक्ट से एक नक्शा बनवाया और मकान का काम शुरू करने के लिए वे उस प्लॉट पर गये । वहां पर उन्होंने देखा कि उस प्लॉट में एक कमरा बना हुआ है और उसमें चार पांच मुस्टंडे रह रहे हैं । यह देखकर पापा एकदम से घबरा गए और उन्होंने उन मुस्टंडों को कहा कि यह मेरा प्लॉट है । कौन हो तुम लोग ? और ये कमरा कब बना लिया तुम लोगों ने । चलो, खाली करो इसे । अभी, इसी वक्त" । पापा बहुत तेज शब्दों में चिल्लाये उन पर । 

पापा की बातों का उन मुस्टंडों पर कोई फर्क नहीं पड़ा । वे लोग पापा पर बुरी तरह हंस रहे थे । यह सीन देखकर पापा बहुत अपसेट हो गए थे । उन्होंने उनका सामान बाहर फेंकने की कोशिश की तो उनमें से एक मुस्टंडे ने पापा को अधर में  उठा लिया और उनको ऊपर से नीचे फेंक दिया । पापा दर्द से कराह उठे । इतने में दो तीन मुस्टंडे उन पर पिल पड़े और लातों से उनकी भयंकर पिटाई की तथा उन्हें बीच सड़क पर फेंक दिया । मजमा लग गया था वहां पर । मगर पापा के पक्ष में कोई बोलने वाला नहीं था । मुस्टंडे बेखौफ होकर पापा की धुनाई करते रहे और लोग तमाशा देखते रहे या वीडियो बनाते रहे । बाद में किसी ने 108 पर फोन कर दिया और एंबुलेंस आकर उन्हें अस्पताल ले गई । 

अस्पताल से घर पर फोन आया तब मम्मा को पता चला । वे दौड़ी दौड़ी अस्पताल गईं । वहां पापा की हालत देखकर पागल सी हो गई । तब उन्होंने मुझे फोन किया । 

पापा की जगह जगह से हड्डियां टूट गई थीं । शरीर से खून भी बह रहा था । कई जगह गंभीर चोटें भी आईं थीं । ऑपरेशन करना पड़ा था उनका । 

लगभग सात दिन वे अस्पताल में भर्ती रहे उसके बाद हम लोग सीधे पुलिस थाने पहुंचे । वहां हमने उन अज्ञात नामधारी गुंडों के खिलाफ जबरन प्लॉट पर कब्जा करने और मारपीट करने की एफ. आइ. आर दी । थानेदार ने उसे लेकर अपने पास रख लिया और कहा कि हम दर्ज कर लेंगे । 
हम लोग एक टैक्सी करके अपने घर आ गये । वहां पर देखा कि एक गुंडा हमारा ही इंतजार कर रहा है । हमें देखकर वह हम पर झपटा और कहने लगा " बंदे का नाम जग्गा है । कान खोलकर सुन लो । ये नाम याद रखना मरते दम तक  वरना बहुत पछताओगे । वो प्लॉट मेरा है और भूलकर भी उधर जाने का नहीं । एक बार जाकर देख लिया तो यह हालत हो गई । सात दिनों बाद भी अभी तक "साबुत" नहीं है यह बुड्ढा । दुबारा जाओगे तो जिंदा वापस नहीं आओगे । समझे ? और हां , एक बात और । मेरे आदमियों के खिलाफ थाने में एफ. आई. आर दर्ज करवायेगा साला यह बुड्ढा ? और यह कहकर उसने एक झन्नाटेदार थप्पड़ पापा को मारा । पापा तो वैसे ही टूटे फूटे से थे , भरभरा कर गिर पड़े । मम्मा ने उसे मारने के लिए हाथ उठाया तो उसने मम्मा के दोनों हाथ मरोड़ दिये और मेरी ओर देखकर बोला " मैं हसीनाओं की बहुत कद्र करता हूं बुढिया । तुझमें तो अब कुछ दम है नहीं । हां , इस लड़की से मेरा काम चल सकता है । इस पर अब बहारें आने लगी हैं । ये मेरे काम आ सकती है ।

उसकी ऐसी बातें सुनकर मैं एकदम से घबरा गई और भागकर एकदम से मम्मा से चिपट गई । मम्मा तुरंत जग्गा के पैरों में लेट गई और उसके पैर पकड़ कर रहम की भीख मांगने लगी । जग्गा ऐसा निर्दयी था कि उसने रहम की भीख मांगती हुई  मम्मा में चार पांच लातें मार दी । मम्मा चिल्लातीं जा रही थी और उससे रहम की भीख मांगती जा रही थी । मेरा रो रोकर बुरा हाल हो गया था । पापा तो बेहोश पड़े हुये थे । 

बाद में उसने मम्मा के बाल पकड़कर खेंचते हुये उठाया और कहा "देख बुढ़िया । अपनी औकात में रह और अपने बुड्ढे को भी औकात में रख । अगर तुझे तेरी छोरी प्यारी है तो उस प्लॉट को भूल जा । जग्गा इतना कमीना भी नहीं है जो वह प्लॉट मुफ्त में डकार जाये । जितने में तूने खरीदा था उतने पैसे तुझे मिल जायेंगे जिससे तू कोई दूसरा प्लॉट खरीद ले । तुझपे इतना रहम कर दिया है जग्गा ने , ये क्या कम है ? जा, तू भी क्या याद रखेगी ?  चाहता तो उसे फ्री में भी ले सकता था लेकिन अपुन एक इज्जतदार आदमी है । और एक इज्जतदार आदमी फ्री में कुछ नहीं लेता है । समझी । कल मेरे आदमी आयेंगे गाड़ी लेकर । तू और तेरा बुड्ढा , दोनों आ जाना प्लॉट के कागज लेकर । रजिस्ट्री करवा देना और पैसे ले जाना । समझी । 

हां, एक बात और । अभी थाने जाकर वह एफ. आई. आर. वापस ले आना नहीं तो आज की रात मुझे तेरी बेटी के साथ गुजारनी पड़ेगी" ।
 
मम्मा यह सुनकर पछाड़ खाकर गिर पड़ी । उसके कदमों पर नाक रगड़ कर बोली "मुझे सब मंजूर है मगर मेरी बेटी को हाथ मत लगाना" । और पूरे घर में हमारे क्रंदन से कोहराम मच गया । जग्गा मम्मा में दो लात और मारकर चला गया । 

फिर मम्मा ने पापा को संभाला । मुझे अपने सीने से चिपटा लिया और हम दोनों बहुत देर तक अपनी बेबसी पर रोते रहे । मेरे मन में आ रहा था कि इसकी शिकायत ऊपर यानि एस. पी. को करूं मगर मम्मा ने मना कर दिया । शाम तक मम्मा थाने जाकर एफ.आई.आर. वापस ले आईं । दूसरे दिन मम्मा और पापा ने उस प्लॉट की रजिस्ट्री जग्गा के नाम करा दी । जग्गा ने अपने वादे के अनुसार पैसे दे दिये । तो मैं ऐसे जानती हूं उस हैवान जग्गा को" । 

सलोनी की आंखों से गंगा जमना बहने लगी । शालू की आंखों में अब और भी अधिक भय देखा जा सकता था । 

क्रमशः 

हरिशंकर गोयल "हरि"
30.3.22 
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रचनाएँ
खौफ
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यह कहानी है एक ऐसी लड़की की जो अपने मोहल्ले के गुंडे के आतंक के साये में जी रही थी । पूरे मोहल्ले में उस मवाली का खौफ था । उस लड़की ने इस खौफ पर कैसे विजय पाई ? इसे जानने के लिए पढिये यह कहानी "खौफ" ।
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भाग 2

20 मार्च 2022
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भाग 3

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