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भाग 4

4 अप्रैल 2022

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सलोनी की कहानी सुनने के बाद शालू सकते में आ गई । कोई आदमी इतना नृशंस, हैवान भी हो सकता है, उसने सोचा नहीं था । शालू का डर अब और बढ़ गया था । उसने तय कर लिया कि अब वह दिव्या को लेने के लिए उसके घर नहीं जायेगी । ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी । जब वह उधर जायेगी ही नहीं तो उस हैवान को देखेगी भी नहीं । हां, यही एकमात्र रास्ता है उस दुष्ट से बचने का । शालू को इस निर्णय से थोड़ा संबल मिला । 

शालू ने अपना निर्णय दिव्या को बता दिया । सुनकर एक बार तो दिव्या भड़क गई मगर शालू ने भी साफ कह दिया कि वह उस गली में जायेगी ही नहीं और उस दुष्ट से बचने का यही एक रास्ता है, बस । दिव्या के पास कोई और विकल्प नहीं था । 

शालू घर आ गई । आज उसका मन कुछ हलका था । शायद जग्गा का खौफ थोड़ा कम लग रहा था । इसलिए आज उसका पढ़ने में भी मन लग रहा था और घर के काम में भी । उसने आज खाना बनाने का प्लान किया । सोचा कि मम्मी को आज खाना बनाकर खिलायेगी वह । 

फ्रिज खोलकर देखा तो उसमें सब्जी नहीं थी । पहले सब्जी लानी पड़ेगी फिर खाना बनेगा । मम्मी ने कल कहा भी था सब्जी लाने को मगर वह जग्गा के डर के मारे नहीं गई । मगर ऐसे कब तक डरती रहेगी वह । घर का काम तो करना ही पड़ेगा ना । मगर जैसे ही उसने बाजार जाने के विषय में सोचा तो उसे तुरंत जग्गा का खयाल आया । "अगर रास्ते में वह मिल गया तो" ? 

इसका कोई जवाब था नहीं उसके पास । उसने बाजार जाने का विचार मन से निकाल दिया । थोड़ी देर वह ऐसे ही गुमसुम सी बैठी रही । मन के एक कोने से आवाज आई "कब तक डरती रहेगी वह ? फिर, बाजार तो जग्गा के मौहल्ले से विपरीत दिशा में है फिर डर कैसा" ? 

शालू को बात जम गई । तो ठीक है, सब्जी लाते हैं और फिर खाना बनाते हैं । मन में फिर खयाल आया "क्यों न मम्मी को भी साथ ले चलें" ? इस आईडिया ने उसका मन और हलका कर दिया । उसने मम्मी को कहा बाजार चलने के लिए तो मम्मी भी तैयार हो गई । 

मम्मी चंपा मौसी से ही सब्जियां लेती थीं । चंपा सड़क पर अपनी सब्जी की हाट लगाती थी । चूंकि मम्मी उसी से ही सब्जियां खरीदती थीं इसलिए दोनों में प्रगाढ रिश्ते बन गए थे । चंपा मम्मी को दीदी कहती थीं इसलिए शालू उसे मौसी कहने लगी थी । शालू ने शुरु शुरु में मम्मी को कहा भी था कि कोई बढिया सी बड़ी सी दुकान से सब्जियां खरीदा करो । तो पता है मम्मी ने क्या कहा ? उन्होंने कहा "ये छोटे छोटे दुकानदार बेचारे गरीब होते हैं इसलिए इनसे सब्जी खरीद कर मुझे चैन सा मिलता है कि इन जैसों को पैसे मिलेंगे तो इनके भी बच्चे स्कूल पढेंगे । वे भी बड़े आदमी बन सकते हैं । बड़े बड़े दुकानदार तो पहले से ही सक्षम और संपन्न हैं उन्हें पैसे की उतनी जरूरत भी नहीं है" । 

शालू को मम्मी की ये बात सुनकर बहुत गर्व हुआ और उस दिन उसे छोटे दुकानदारों का महत्व पता चला । अब तो वह छोटे दुकानदारों से ही सामान लेती है । इससे उसे ऐसा लगता है कि जैसे वह इन छोटे दुकानदारों के बच्चों को पढ़ा रही है । 

शालू की एक्टिवा चंपा मालन की हाट के सामने रुकी । शालू और उसकी मम्मी को देखकर चंपा बड़ी खुश हुई । "राम राम दीदी , आज तो कई दिनों बाद आयी हो । क्या घर में खाना बनना बंद हो गया है" ? वह ऐसे ही बातें करती थी प्रेम से । 
"अरे नहीं री ! सबकी छुट्टी हो सकती है मगर पेट छुट्टी थोड़ी ना करता है । आजकल बच्चों को पास्ता, पावभाजी, इडली, सांभर वगैरह बहुत पसंद आते हैं इसलिए सब्जियों की जरुरत कम हो गई है । बस, इतनी सी बात है । शालू की मम्मी ने हंसते हंसते जवाब दिया । फिर वे करेले, भिंडी, टिंडे छांटने में व्यस्त हो गई । 

इतने में एक 25-30 साल की औरत मैले कुचैले फटेहाल कपड़ों में उधर से गुजरी । उसके आगे पीछे से "अंग" नजर आ रहे थे । बच्चों की एक फौज उसके पीछे चल रही थी । कोई बच्चा पत्थर फेंक रहा था तो कोई उसे खाने का सामान दे रहा था । लोग उसका जमकर उपहास उड़ा रहे थे । वह औरत अपनी मस्ती में मगन हर दुकन और हाट पर जाती । अपना हाथ फैलाती और जो कुछ मिलता उसे खा जाती । शक्ल सूरत से वह पागल नजर आ रही थी । 

पगली औरत चंपा की हाट पर आ गई । चंपा ने उससे प्रेम से पूछा "क्या लेगी गंगा ? जो मांगेगी , वही दूंगी तुझे" ।

गंगा मुस्कुरा दी और बोली "जो देना है वह दे दो बस" । 

कितनी मासूम आवाज थी उसकी । मगर इस उम्र में ही पागल बन गई ? कुछ तो बात है इस पगली में । जरूर कुछ ना कुछ अनहोनी हुई है इसके साथ । क्या हो सकता है ऐसा ? 

शालू अभी सोच ही रही थी कि चंपा बोली " भगवान भी कभी कभी कैसे कैसे दंड देते हैं । पता नहीं कौन से जनम में इसने क्या पाप किये थे कि अब इसे "नर्क" भोगना पड़ रहा है । कभी ये भी बहुत सुंदर लड़की होती थी मगर आज कैसी हो गई है" । 

शालू को लगा कि चंपा मौसी गंगा के बारे में बहुत कुछ जानती है । उसने तपाक से पूछा "आप क्या जानती हो इसके बारे में" ? 

थोड़ी देर चंपा खामोश रही । फिर बोली "मैं इसका आगा पीछा सब जानती हूं । बहुत दुख भरी कहानी है इस बेचारी की । याद करने से ही कलेजा फट जाये " । 

"सुनाओ ना मौसी इसकी कहानी । पता तो चले कि यह पागल कैसे हुई ? कौन है इसका गुनहगार" ? 

चंपा ने एक गहरी सांस ली और कहने लगी " यही कोई आठ दस साल पहले की बात है । गंगा जब 17-18 साल की रही होगी । इस उम्र में लड़कियों पर जोबन टूट कर आता है । इस पर भी बरसा । कुछ ऐसा बरसा कि अंग अंग में निखार आ गया । गरीब लोगों की समस्या यह है कि ज्यादा खूबसूरती भी श्राप बन जाती है । गंगा की मां वहां सामने सब्जियों की हाट लगाया करती थी । गंगा भी उसकी मदद करने हाट पे आया करती थी । मर्द लोग सब्जी खरीदने तो कम आते हैं हां, मालिनों को निहारने और छेड़छाड करने ज्यादा आते हैं ।

एक दिन गंगा और उसकी मां दोनों हाट पर बैठे थे । लोग आकर सब्जी खरीद रहे थे और गंगा को देखकर कुछ कुछ फब्तियां भी कस रहे थे । गंगा और उसकी मां दोनों ही बहुत असहज हो रही थीं । मगर कुछ कर नहीं सकती थीं । 

इतने में सब्जी मंडी में अफरा तफरी मच गई । कानाफूसी होने लगी कि जग्गा आ गया है । गंगा और उसकी मां जग्गा को जानती नहीं थी इसलिए पूछ लिया "ये जग्गा कौन है" ? 

जो आदमी गंगा को छेड़ रहे थे वे डरकर भागने लगे । भागते भागते कह रहे थे "सबका बाप है जग्गा । हमारी बात मान और अपनी बेटी को लेकर भाग जा । नहीं तो तुम दोनों का क्या हाल होगा, बता नहीं सकते हैं" । और वो लोग नौ दो ग्यारह हो गए । 

इतने में एक मोटरसाइकिल पर एक नौजवान आया जिसका चेहरा बहुत डरावना लग रहा था । वह जग्गा ही था । उसकी निगाह सीधी गंगा पर पड़ी । गंगा एक गुलाब के फूल की तरह खिल रही थी, महक रही थी । जग्गा ने कड़क कर कहा "ऐ बुढिया । ये लड़की कौन है" ? 
गंगा की मां घबरा गई । घबराकर बोली "बेटी है जी" । 
"हूं । बेटी है । बहुत अच्छे । नाम क्या है" ? 
"जी जी , गंगा" 

उसने जोर से एक ठहाका लगाया और हंसते हंसते कहा " सीधे गौमुख से ही आ रही है या रास्ते में कहीं मैली वैली हो गई" ? 

गंगा और उसकी मां इस भद्दे कमेंट को समझ नहीं पाई इसलिए चुप रही । जग्गा के गुर्गे ने जग्गा के कान में कुछ कहा । फिर जग्गा ने एक और जोर का अट्टहास किया । "अच्छा तो आज मैली होने वाली है । वाह री किस्मत । आज हम भी निर्मल गंगाजल में "स्नान" करेंगे । अरे , जाओ रे जमूरों ! स्नान की तैयारी करो" 

गुर्गे आसपास के भवनों में "इंतजाम" करने चले गए । बिल्डिंग को खाली करवा लिया गया और बाकी सारी "व्यवस्थाएं" कर दी गई । फिर जग्गा ने गंगा का हाथ पकड़ा और सबके सामने उसे ले जाने लगा । 

गंगा की मां बहुत रोई, गिड़गिड़ाई मगर पत्थर इंसान पर क्या असर होता ? तब गंगा की मां जग्गा के पैरों में लिपट गई । जग्गा भी कम राक्षस नहीं था । उसने जूतों से उसका सिर कुचल दिया । ये देखकर गंगा रो पड़ी । रोते रोते बोली "मेरे साथ जो करना है , कर लो मगर मां को छोड़ दो" । 

मगर दुष्टों पर क्या असर होना था ? गंगा की मां वहीं सड़क पर मर गई । जग्गा गंगा को लेकर उस बिल्डिंग में चला गया । जब तक उसका मन किया , तब तक नोंचता रहा उस मासूम को । बाद में उसने गंगा को अपने गुर्गों के हवाले कर दिया । सारे गुर्गे गंगा का बारी बारी से बलात्कार करते रहे । वह बेहोश हो जाती । बेहोशी में भी बलात्कार चलता रहता तो फिर होश में आ जाती । कितनी बार बलात्कार हुआ , कोई बताने वाला भी नहीं था । 

बाद में जग्गा और गुर्गे गंगा को मरणासन्न अवस्था में ही छोडकर चले गए । बिल्डिंग के लोगों ने गंगा को अस्पताल पहुंचाया और इलाज कराया । थाने में शिकायत भी की मगर रिपोर्ट भी दर्ज नहीं हुई । बाद में थानेदार उसके बयान लेने के लिए आया । गंगा को थाने बुलाया गया । थाने में भी सबने "गंगाजल" में स्नान कर लिये । 

अब ऐसे हालात में कोई पागल नहीं होगा तो क्या होगा ? शालू और उसकी मम्मी दोनों ही सोच में पड़ गईं । 

क्रमशः 

हरि शंकर गोयल "हरि"
4.4.22 
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रचनाएँ
खौफ
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