🌹हस्तलिखित पत्र की बात
ही कुछ ख़ास होती थी।
🌹 महक किसी के जिस्म
की उसमें साथ होती थी।
🌹कोई हसीना संदेश पाने
उस वक़्तअपने महबूब का।
🌹पलकें बिछाए रखती थी
रात दिन इसके इंतज़ार में ।
🌹 मिल जाता था ख़त जब
उसको उसके महबूब का।
🌹चूम कर होंटो से उसको
लगाती थी फिर सीने से उसे।
🌹 चुरा के नजरें सबसे फिर
वह सौ बार पढ़ती थी उसे।
🌹फिर रखती थी बंद करके
तिजोरी में अपने दिल की उसे
छुपा के सबसे सौ बार उसे
पढ़ने के लिए,, पढ़ने के,,,,,।
🌹हस्लितखित पत्र की बात
ही कुछ ख़ास होती थी।
🌹ख़ास होती है,,,,,,,,,।
मौलिक रचना सय्यदा खा़तून,, ✍️
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