- ज्ञान की ज्योति जगा दे अन्तरयामी
तन मन की सुधा मिटा दे सबके स्वामी
मोह से नाता टूट जाए तुझपे अपना शीश नवाए
कुछ तो दया कर रखवाले
मेरी सांसे लोगो की काम आ जाए
विनती हमारी है स्वामी
जग तेरा सब तेरे प्राणी
मुझ को निकाल सागर जैसे बंधनों से
जीवन सार्थक हो सके अपनी सत्यकर्मो से
इस पापी मन को मिटा दे
बुरा जो सोचे इस तन को जला दे
तुममें रम जाऊ इस काली रात से बेखबर
तेरे लिला में रम जाऊ
हे प्रभु इस जग की माया से दूर भगा दे ।