छौंरा-छौंरी खेले होली खिसिआये हैं काकाजी
अपने-काकी के लफड़े रिसिआये हैं काकाजी।
आयी होली हुड़दंगी कीचड़ रंगे रामू-रजनी
काकी रंगों से कतराती बिखिआये हैं काकाजी।
पकवानों से मन भरता कब मीठा-मीठा हो जाता
कुछ तीखी नमकीनी खातिर रिरिआये हैं काकाजी।
काकी कहती खुद को देखो देखा करते काकी को
मटका करती भर आँगन सज दिठिआये हैं काकाजी।
काकी कहती छोड़ो बूढ़े! अब तो भगवन को भज लो
कब से बात बढ़ाने खातिर दिकिआये हैं काकाजी