कहाँ तक दिन समेटेंगे
कहाँ तक ग़म लपेटेंगे
कभी तो बात बन जाए
कहाँ तक ख़ाब देखेंगे
कभी ख़ुशरंग नज़ारा हो
कभी ख़ुश दिल हमारा हो
कहाँ तक हम ससेटेंगे
कहाँ तक ग़म लपेटेंगे
कभी तो बात बन जाए
कहाँ तक ख़ाब देखेंगे
कभी दीवालियाँ भी हों
कभी किलकारियाँ भी हों
कहाँ तक दिल मसोसेंगे
कहाँ तक ग़म लपेटेंगे
कभी तो बात बन जाए
कहाँ तक ख़ाब देखेंगे
कभी बेख़ौफ़ हो जाएं
कभी बेलौस हो जाएं
कहाँ तक घुटने टेकेंगे
कहाँ तक ग़म लपेटेंगे
कभी तो बात बन जाए
कहाँ तक ख़ाब देखेंगे
कहाँ तक दिन समेटेंगे
कहाँ तक ग़म लपेटेंगे
कभी तो बात बन जाए
कहाँ तक ख़ाब देखेंगे
{ निर्मला त्रिवेदी }
18-2-2016
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ससेटेंगे - सहम जाना
मसोसेंगे -मसलेंगे
बेलौस - मस्त मौला
बेख़ौफ़ - निडर