ना दिन से कोई रिश्ता ना रात से रिश्ता है,
हर शख्स का दुनिया में हालात से रिश्ता है.
मैं नाव हूँ काग़ज़ की डूबूँगा यक़ीनन पर,
यूँ ख़ुश हूँ कि मेरा भी बरसात से रिश्ता है.
देखे जो बुरे दिन तो ये बात समझ आई,
इस दौर में यारों का औक़ात से रिश्ता है.
हर रोज़ भिखारी ने हंस कर ये कहा मुझसे,
लोगों से नहीं मेरा खैरात से रिश्ता है.
वो आज भी मंदिर की दहलीज़ पे रोता है,
लगता है कि पत्थर का जज़्बात से रिश्ता है.
सूखे हुए दरिया से इक नाव लगी कहने,
अपना भी जाने अब किस बात से रिश्ता है.
चेहरों की हक़ीक़त को तह खोल के देखा तो,
लोगों की हंसी का भी सदमात से रिश्ता है.