जेएनयू विवाद में कन्हैया कुमार के बाद सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाला शख्स उमर खालिद देर रात जेएनयू कैंपस में लौट आया। उसके जेएनयू में लौटने के बाद ही मीडिया में उसे लेकर चर्चा भी शुरू होने लगी है, इन सवालों के साथ कि आखिर कौन है उमर खालिद और क्यों देशद्रोह नारों के बीच वह एक बार फिर से जेएनयू में भाषण दे रहा है? और आखिर खालिद और उसके साथियों के अचानक सामने आने की वजह क्या रही, सरेंडर करने की बजाय ये गिरफ्तार क्यों होना चाहते हैं ?
दरअसल इस पूरे मामले को समझने के पहले हमें देश के युवाओं की सोच को समझना होगा। देश पर मिटने वाले एक शहीद जवान कैप्टन पवन की मंशा को समझना होगा तो वहीं दूसरी ओर देश के खिलाफ और उसे बांटने वालों के मंसूबे रखने वाले युवाओं की हकीकत समझनी होगी।
आइए पहले उमर खालिद के मंसूबों को ही समझते हैं और उसकी उस भाषण की सच्चाई को भी, जो अपने देशद्रोह नहीं होने के लिए दे रहा है। दरअसल, कमर पर हाथ रखकर इतराते हुए अंदाज में देशद्रोह का आरोपी छात्र मुस्कुराते हुए कहता है, मेरा नाम उमर खालिद है और मैं आतंकवादी नहीं हूं। उमर खालिद की यह बात ही बताती है कि वो अपने नाम और मजहब कि आड़ में उन सभी छात्रों के मन में जहर भर रहा है, जो उसी मजहब के हैं। आतंक का ना कोई नाम है ना कोई मजहब, लेकिन ये लोग अब अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इस देश की सहिष्णुता का सहारा ले रहे हैं। वो कैंपस में फिर भाषण दे रहे हैं।
इतने दिनों से फरार रहने के बाद उनकी वापसी ये सवाल भी खड़े करती है क्या इन्हें एक मिनिट भी गिरफ्त से बाहर रहने का हक था? ये लोग कह रहे हैं कि इन्होंने देशद्रोह के नारे नहीं लगाए वो कोई और लोग थे। लेकिन उन्होंने कश्मीर की स्वयत्तता की बात कही इसे वो स्वीकार कर रहे हैं। अब इससे ज्यादा और क्या चाहिए कि उसी कश्मीर में हमारें 5 जवान कल शहीद हुए और वो भी उन आतंकियों से लोहा लेते हुए जो यहीं मांग बंदूकों के साथ वहां कर रहे हैं।
बंदूक से कश्मीर की बात करना या जबान से कश्मीर की बात करना, इसमें फर्क करने की जरूरत है। देश के सामने दो किस्म के युवा हैं, एक वो जो कश्मीर में कैप्टन पवन और तुषार की तरह सीने पर गोलियां खा रहे हैं। अपने परिवार के इकलौते बच्चे होने के बावजूद देश के लिए जान देने का जूनून जिनमें कूट-कूट कर भरा है, तो दूसरी तरफ वे भी हैं, जो दिमागी तौर से कंगाल होकर अपने ही देश के खिलाफ बोल रहे हैं, भड़का रहे हैं और हद तो ये है कि इनके भाषणों पर भी ताली पीटने वालों की कमी नहीं है।
निश्चित रूप से बात मोदी या कांग्रेस की नहीं है। बात आरएसएस या वामदलों की भी नहीं है। ये बात है हमारे देश के बड़ी तादाद में मौजूद युवाओं के जज्बे की। उनके दिमाग में हम क्या भर रहे हैं और क्यूं? देश द्रोही और देश भक्त दोनों की तस्वीरें हमारे सामने हैं। देशभक्ति को किसी समर्थन की जरूरत नहीं होती, कोई उसका विरोध भी नहीं कर सकता।
यही वजह है कि तुषार और पवन जैसे 23-24 साल के युवाओं को हर कोई बिना शक और बिना शर्त के नमन करता है सलाम करता है। लेकिन जेएनयू में देशविरोधी बातें करने वाले युवाओं के समर्थन में कई लोगों का सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कूद पड़ना हम जैसे लोगों को इनके खिलाफ लिखने पर भी मजबूर कर देता है। ये बात इन दो तस्वीरों के बड़े फर्क की वजह से लिखने को मजबूर हुआ।
सच कहूं तो, खबरों की दुनिया में तमाम रंग एक साथ देखने को मिलते हैं, लेकिन कभी-कभी कुछ तस्वीरें लाजवाब कर जाती हैं। कुछ तस्वीरें सोचने पर मजबूर कर जाती हैं। सुबह से दो अहम खबरें दर्शकों को पहुंचाते-पहुंचाते दोनों तस्वीरों का फर्क जेहन में गहर बैठ गया। एक तरफ कैप्टन तुषार महाजन की मां की अपने 23 साल के बेटे के शव को देखकर बिलखती हुई तस्वीरें और दूसरी तरफ देश के कुछ युवा जो देश को ही गालियां बकने और दिल्ली में कश्मीर की स्वायत्तता का मुद्दा उठाने के बाद डंके की चोट पर जेएनयू पहुंचे और फिर भाषण बाजी की।
यकीनन, यही तो हमारे देश की खूबसूरती है कि हम कुछ भी करने और कहने के लिए आजाद हैं। जाट आरक्षण के नाम पर सड़कों पर अराजकता है, तो बुद्धिजीवी वर्ग पनपाने के नाम पर जेएनयू जैसे कैंपस में बौद्धिक अराजकता है। इस सब के बीच कैप्टन पवन और कैप्टव तुषार भी हैं, जिनके परिवारों को अपने बच्चों की शहादत पर फख्र है। कैप्टन पवन के पिता से मेरी भी बात हुई, तो वे गौरवान्वित थे और आंसूओं को थामे हुए थे। मैं अपने आंसू नहीं थाम पाया। तुषार की मां जब अपने बेटे की पार्थिव देह को देखकर फूट-फूट कर रोई तो लगा देश की हर मां ने अपने बच्चे को खोया है। कोई भी देशभक्त उन तस्वीरों को देखकर अपने आंसू नहीं रोक सकता था।