वो दर्द ही क्या जो आँखों से बह जाए,
वो ख़ुशी ही क्या जो होठों पर रह जाए,
कभी तो समझो मेरी ख़ामोशी को,
वो बात ही क्या जो लफ्ज़ आसानी से कह जाए!
27 फरवरी 2016
वो दर्द ही क्या जो आँखों से बह जाए,
वो ख़ुशी ही क्या जो होठों पर रह जाए,
कभी तो समझो मेरी ख़ामोशी को,
वो बात ही क्या जो लफ्ज़ आसानी से कह जाए!
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स्टेट बैंक से २०१४ में रिटायर किया हूँ।बिहार से हूँ और फिलहाल रांची में रहता हूँ।D