“परिवार के ज्येष्ठ भाई का हठपन”
हठपन एक ऐसा शब्द है जिसके सही दिशा
में होने से व्यक्ति को महान बना सकता है और विपरीत दिशा में होने से अधोगति का
कारण बनता है | अगर हठपन जीवन, समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिए
है तो यह उच्च कोटि का हठपन कहलाया जाएगा और हठपन का स्वरूप इसके विपरीत हुआ तो यह
पतन का कारण हो सकता है ।
आज हम जिस हठपन की बात कर रहें है वह
है “परिवार के ज्येष्ठ भ्रात्र का हठपन” ।
हमारे समाज में हमेशा से ही घर के
बड़े भाई को जन्म लेते ही सर्वोच्चता का पद बिना मेहनत एवं परिश्रम किए आसानी से
प्राप्त हो जाता है जिसका फायदा उठाने के लिए वह व्याकुल एवं तत्पर बना रहता है
इसका परिणाम यह है कि उसके आचरण, विचार, वक्तव्य ही सर्वप्रमुख माने जाते
हैं तथा अन्य अनुजों के विचारों का संभवता कोई स्थान नहीं रह जाता है, कुछ लोग हमारे इस विचार से पूरी तरह
असहमत हो सकते हैं, लेकिन अगर हम अपने अतीत कि तरफ झाँकते हैं तो इतिहास गवाह है कि परिवार के
अनुज व्यक्तियों के अधिकांश विचारों को मृत्यु शैया तक ले जाने मे कई बार परिवार
के अग्रजों के हठपन या हठीले स्वभाव का परिणाम है ।
विश्व कि प्राचीन संस्कृति को
पल्लवित करने वाली यह पवित्र भारत भूमि की दो महान घटनाओं की ओर मैं आपका ध्यान
आकर्षित करते हुये बड़े भाई के हठपन के माध्यम से इन दो महान युगों त्रेता एवं
द्वापर युग में क्रमशः रामायण एवं महाभारत जैसे महान ग्रन्थों की रचनाओं के मूल
कारण के पीछे “हठपन” जैसे शब्द के महान योगदान को
मानता हूँ ।
सबसे पहले मैं रामायण में हठपन के
छोटे स्वरूप का विवरण जिसमें कि महाराज दशरथ के पुत्र न पैदा होने की स्थिती में
उनका ऋषियों द्वारा यज्ञ करवाकर अपने इक्ष्वाकुवंश को बढ़ाने का हठपन, तत्पश्चात उनकी रानी कैकेई द्वारा
दो वरदानों को माँगने का हठपन, फिर भगवान राम द्वारा अपने पिता की आज्ञा का पालन करने का पुत्रधर्म या हठपन, तत्पश्चात माँ सीता जी का अपने पति
के साथ जाने का पतिव्रत धर्म या हठपन, उनके साथ स्नेहमयी अनुज भाई के चलने का हठपन, और यही हठपन उर्मिला के लिए विरह की पीड़ा बन जाती है, वन में सूर्पनखा का शादी
के लिए उकसाने का हठपन, रावण को अपने मामा मारीचि को मृग बनने के लिए कहने का
हठपन, माँ सीता द्वारा भगवान राम से
स्वर्ण मृग की माँग करने का हठपन, छोटे भाई को बड़े भाई की सहायता के लिए भेजने का हठपन आदि | ये सब हठपन की घटनाएँ एक बड़ी घटना
को जन्म देने के बीज अंकुरित कर देती हैं जहाँ तक ये लघु रूप के हठपन तो स्वीकार
किए जा सकते हैं पर अब हठपन की सीमा बड़ी भयानक, विकराल और अंतहीन कर देने वाली है जिसमें अब शीर्षक के
अनुसार परिवार के ज्येष्ठ भाई का हठपन का परिणाम प्रदर्शित होता है जहाँ ज्येष्ठ
भाई के सम्मुख न तो परिवार के किसी बड़े सदस्य की चलती है और न ही अनुज भाइयों के
विचारों और हितों का सम्मान । रावण के इसी हठपन का परिणाम इस पंक्ति में उल्लखित
होता है – “एक लख पूत सवा लख नाती ता रावण घर दिया न बाती”, रावण के हठपन के आगे किसी की एक न
चली ।
अंत में श्री राम द्वारा सीता जी को
न अपनाना, चाहें वह राजधर्म कहा जाए या हठपन ।
जिसका परिणाम माँ सीता का अपने पुत्रों से वियोग में परिलक्षित हुआ ।
दूसरे प्रसंग में महाभारत जैसी महान
घटना भी हठपन का प्रत्यक्ष उदाहरण है जैसे महाराज विचित्रवीर्य के पुत्र न पैदा
होने की स्थिती में व्यास जी द्वारा पुत्र उत्पन्न करवाकर कुरु वंश को बढ़ाने का
हठपन, परिवार के बड़े भाई
द्वारा जुएँ में सब कुछ दाँव पर रख देने का हठपन, दुर्योधन का कहना कि “युद्ध के बिना सुई की नोक के बराबर
भी भूमि न देना” ही हठपन है जिसके कारण समस्त कुरुवंश का नाश हो गया ।
इन दोनों महान घटनाओं में घर के
ज्येष्ठ (रावण, युधिष्ठिर एवं दुर्योधन) का हठपन ही
दुर्दशा का अंतिम रूप है, “दोनों में ही हठपन से वंश की वृद्धि एवं नाश हुई” ।
यही तो भारतीय समाज में बड़े पुत्र
होने का आनंद है जहां उसको सब कुछ करने एवं अधिकार जमाने का सुख माँ के गर्भ से ही
प्राप्त हो जाता है ।
“इतिहास में हठपन के इससे अधिक सुंदर
प्रसंग मिलना सूर्य की गोद में विचरण करने जैसा होगा”
अगर ये हठपन अनुज करे तो यह नादानी
जैसे शब्द में घोषित हो जाता है और बड़े भाई का हठपन सुंदर शब्द आज्ञा में
परिवर्तित हो जाता और जिसका पालन करना अनुज का कर्तव्य बन जाता है । यही स्थिती
किसी न किसी रूप में आज भी उपस्थित है ।
क्या इतिहास में कोई उदाहरण है
जिसमें ज्येष्ठ ने अनुज को स्वेच्छा से राजगद्दी सौंपी हो और उसके किसी गलत हठपन
के कारण मृत्यु का वरण किया हो ?
लेखक :- गोपालकृष्ण त्रिवेदी