“प्रश्न”
“आज ये नृशंस क्यों ?
धरती का विध्वंश क्यों ?
टूटता ये अंश क्यों ?
व्यक्ति में ये दंश क्यों ?
बिखरते ये वंश क्यों ?
काँपता ये विश्व क्यों ?
भटकता मनुष्य क्यों ?
जीव में उन्माद क्यों ?
हर मन उद्विग्न क्यों ?
जन-जन विक्षिप्त क्यों ?
जीवों का विनाश क्यों ?
मनुष्यता का नाश क्यों ?
मानवता का ह्रास क्यों ?
कम ये विश्वास क्यों ?
बिखरती ये आस क्यों ?
टूटता ये मन क्यों ?
टूटता ये परिवार क्यों ?
टूटता ये समाज क्यों ?
टूटता ये राष्ट्र क्यों ?
टूटता ये संसार क्यों ?
किस लिए ये विश्व है ?
किस लिए सर्वस्व है ?
किस लिए सम्मान हैं ?
किस लिए यह ज्ञान है ?
किस लिए विज्ञान है ?
किस लिए हम जी रहे ?
किस लिए हम रह रहे ?
किस लिए हम डर रहे ?
किस लिए हम लड़ रहे ?
किस लिए हम बढ़ रहे ?
आज क्यों विनाश है ?
आज क्यों निराश हैं ?
आज क्यों उदास हैं ?
आज क्यों हतास हैं ?
आज क्यों बेहवास हैं ?
कौन ये सब कर रहा ?
कौन ये सब करवा रहा ?
कौन ये क्यों कर रहा ?
कौन ये दुख दे रहा ?
कौन अब सुख पा रहा ?
कौन शांति से जियेगा ?
कौन शांति से मरेगा ?
कौन ये बतलाएगा ?
कौन ये समझाएगा ?
कौन उत्तर देगा” ?
रचनाकार :- गोपालकृष्ण त्रिवेदी
दिनांक :- ६ नवम्बर २०१४