“मधुर मधुर मधुमय मेरा जीवन
कैसे
जग बतलाऊँ तुम्हें ?
अन्तर्मन
के स्वच्छंद प्रवाह को
कैसे
जग दिखलाऊँ तुम्हें ?
स्वर्ण
भास्कर उदित हुये हैं
विराट
हृदय के प्रांगण में
तीव्र
प्रखर तेजोमय रवि का
कैसे
एहसास कराऊँ तुम्हें ?
मधुर
मधुर मधुमय मेरा जीवन
कैसे
जग बतलाऊँ तुम्हें ?
कल-कल
बहती नदियाँ सारी
यौवन
का उन्माद लिए
औषधि
पूरित बहते जल का
कैसे
ध्वनि सुनाऊँ तुम्हें ?
मधुर
मधुर मधुमय मेरा जीवन
कैसे
जग बतलाऊँ तुम्हें ?
प्राण
वायु रग-रग में बहती
कोमल
भावुक स्पर्श लिए
सुंदर
शीतल सुगंध समीर का
कैसे
आभास कराऊँ तुम्हें ?
मधुर
मधुर मधुमय मेरा जीवन
कैसे
जग बतलाऊँ तुम्हें ?
मधुर
निशा के शान्त पहर
कल्पित-अकल्पित
स्वप्न लिए
घटते-बढ़ते
चंद्र कला का
कैसे
आकार दिखाऊँ तुम्हें ?
मधुर
मधुर मधुमय मेरा जीवन
कैसे
जग बतलाऊँ तुम्हें ?
विस्तृत
नीला अनन्त अम्बर
जीवन
का हर स्रोत लिए
उसके
कण-कण रचना का
कैसे
विस्तार बताऊँ तुम्हें ?
मधुर
मधुर मधुमय मेरा जीवन
कैसे
जग बतलाऊँ तुम्हें ?
अन्तर्मन
के स्वच्छंद प्रवाह को
कैसे
जग दिखलाऊँ तुम्हें ?”
रचनाकार :- गोपालकृष्ण त्रिवेदी
दिनाँक :- ६ नवम्बर २०१५