वोट
“वोट” एक ऐसा महानतम
शब्द है जिसमें समस्त राजनीति का समावेश है इसी से राजनीति करने के अवसर उपलब्ध और
राजनीति का अंत भी इसी के द्वारा होता है और यहाँ तक कि वोट ही राजनीति की मूल
संरचना है |
वोट ही राजनीति का
मेरुदंड है |
भारत के संविधान ने
देश के प्रत्येक व्यक्ति को एक निश्चित आयु को पूर्ण करने के बाद इसके अधिकार को
सौंपा है ताकि स्वयं संविधान भी इसके उचित उपयोग से अपने को गौरवान्वित महसूस कर
सके |
किसी भी लोकतान्त्रिक
देश की समृद्धि, उत्कर्ष, विकास एवं भविष्य वहाँ की जनता के द्वारा
दिये गए वोट पर निर्भर करता है | किसी भी लोकतान्त्रिक देश
के लिए वोट वह स्वतंत्र एवं गुप्त अणुबम्ब है जिसके प्रयोग से बिना पर्यावरण की
क्षति हुये दंभी, अयोग्य मंत्रियों का अंत होता है तो इसी से
कर्मठ, निष्ठावान और देशभक्त व्यक्तियों का आगमन होता है |
पर आज की इस बदलते
हुये राजनीतिक परिदृश्य में वोट की परिभाषा ही बदल गई है वोट एक स्वतंत्र
अभिव्यक्ति न होकर सामूहिक रूप से किसी विशेष वर्ग या समुदाय का नाम बनकर ही रह
गया है जिसे उसी वर्ग विशेष के नेताओं द्वारा अपने स्वार्थों को सिद्ध करने के लिए
भली प्रकार से सिंचित एवं पल्लवित किया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप वोट के
विभिन्न रूप सामने आए हैं जैसे जातिगत आधारित वोट, अल्पसंख्यक आधारित वोट, धर्म आधारित वोट इत्यादि | जिससे वोट देश के विकास
के आधार पर न होकर जाति एवं धर्म के आधार पर दिया जाता है |
ये वोट देने का वही
सिलसिला है जिसमें अमूल्य वोट का उपयोग बंद कमरे में बैठे हुये धर्मगुरुओं के
आदेशों के अनुसार तय होता है तब वही वोट स्वतंत्र न होकर अपने – अपने समुदाय के
हितों को ध्यान मे रखकर किया जाता है और बाद में इसका परिणाम यही सुनने को मिलता
है कि मैंने इनको वोट दिया और इन्होने हमारे लिए कुछ भी नहीं किया बस एक – दो
लोलीपौप चाटने के अलावा |
ये तो ऐसा अनवरत
सिलसिला है जो हमेशा से चलता आ रहा है और चलता रहेगा | नेता
एवं धर्मगुरु जाति और धर्म के नाम पर अपनी
रोटियाँ सेकते रहेंगे और उसको खाकर हजम भी कर जाएंगे | और
रोटियों को सिकवाने में सहायता करने वाली धर्म आधारित जनता दो वक्त कि रोटी के लिए
मोहताज बनी रहेगी |
कोई तो है वोट की
मर्यादा समझने वाला
कोई तो है वोट की मर्यादा से देश का भविष्य बनाने वाला |
- गोपालकृष्ण त्रिवेदी
दिनाँक - 13 मई 2014