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वोट

5 नवम्बर 2015

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वोट

“वोट” एक ऐसा महानतम शब्द है जिसमें समस्त राजनीति का समावेश है इसी से राजनीति करने के अवसर उपलब्ध और राजनीति का अंत भी इसी के द्वारा होता है और यहाँ तक कि वोट ही राजनीति की मूल संरचना है |

वोट ही राजनीति का मेरुदंड है |

भारत के संविधान ने देश के प्रत्येक व्यक्ति को एक निश्चित आयु को पूर्ण करने के बाद इसके अधिकार को सौंपा है ताकि स्वयं संविधान भी इसके उचित उपयोग से अपने को गौरवान्वित महसूस कर सके |

किसी भी लोकतान्त्रिक देश की समृद्धि, उत्कर्ष, विकास एवं भविष्य वहाँ की जनता के द्वारा दिये गए वोट पर निर्भर करता है | किसी भी लोकतान्त्रिक देश के लिए वोट वह स्वतंत्र एवं गुप्त अणुबम्ब है जिसके प्रयोग से बिना पर्यावरण की क्षति हुये दंभी, अयोग्य मंत्रियों का अंत होता है तो इसी से कर्मठ, निष्ठावान और देशभक्त व्यक्तियों का आगमन होता है |

पर आज की इस बदलते हुये राजनीतिक परिदृश्य में वोट की परिभाषा ही बदल गई है वोट एक स्वतंत्र अभिव्यक्ति न होकर सामूहिक रूप से किसी विशेष वर्ग या समुदाय का नाम बनकर ही रह गया है जिसे उसी वर्ग विशेष के नेताओं द्वारा अपने स्वार्थों को सिद्ध करने के लिए भली प्रकार से सिंचित एवं पल्लवित किया जाता है जिसके परिणाम स्वरूप वोट के विभिन्न रूप सामने आए हैं जैसे जातिगत आधारित वोट, अल्पसंख्यक आधारित वोट, धर्म आधारित वोट इत्यादि | जिससे वोट देश के विकास के आधार पर न होकर जाति एवं धर्म के आधार पर दिया जाता है |

ये वोट देने का वही सिलसिला है जिसमें अमूल्य वोट का उपयोग बंद कमरे में बैठे हुये धर्मगुरुओं के आदेशों के अनुसार तय होता है तब वही वोट स्वतंत्र न होकर अपने – अपने समुदाय के हितों को ध्यान मे रखकर किया जाता है और बाद में इसका परिणाम यही सुनने को मिलता है कि मैंने इनको वोट दिया और इन्होने हमारे लिए कुछ भी नहीं किया बस एक – दो लोलीपौप चाटने के अलावा |

ये तो ऐसा अनवरत सिलसिला है जो हमेशा से चलता आ रहा है और चलता रहेगा | नेता एवं धर्मगुरु  जाति और धर्म के नाम पर अपनी रोटियाँ सेकते रहेंगे और उसको खाकर हजम भी कर जाएंगे | और रोटियों को सिकवाने में सहायता करने वाली धर्म आधारित जनता दो वक्त कि रोटी के लिए मोहताज बनी रहेगी |

कोई तो है वोट की मर्यादा समझने वाला

कोई तो है वोट की मर्यादा से देश का भविष्य बनाने वाला |     


- गोपालकृष्ण त्रिवेदी

दिनाँक - 13 मई 2014

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चंद्रेश विमला त्रिपाठी

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त्रिवेदी जी वोट पर आपका लेख सम-सामयिक और अति उत्तम है |

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सार्थक लेख, गोपाल जी! सच में, राजनीति में कर्मठ नौजवानों के जरूरत जो वोट की मर्यादा समझ कर देश का भविष्य बनाएं!

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रचनाएँ
gopalkrishna
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स्वच्छंद विचारों की अभिव्यक्ति
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स्वच्छंद

4 नवम्बर 2015
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“स्वच्छंद जल स्वच्छंद दावानलस्वच्छंद पवन के झोंकेस्वच्छंद मन स्वच्छंद गगनस्वच्छंद जलधि तरंगेंजब सारा कुछ स्वच्छंद जगत मेंफिर मानव, अपने को क्यों तू रोके ?क्या पायेगा तू इस जग मेंनश्वर शरीर को ढोके ?जीवन के सारे रस पाये स्वच्छंद धरा पर रहके  अब बचे हुये कुछ पल को जी ले स्वच्छंद मगन तू होके”         

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हठपन

4 नवम्बर 2015
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“परिवार के ज्येष्ठ भाई का हठपन” हठपन एक ऐसा शब्द है जिसके सही दिशामें होने से व्यक्ति को महान बना सकता है और विपरीत दिशा में होने से अधोगति काकारण बनता है | अगर हठपन जीवन, समाज और राष्ट्र की प्रगति के लिएहै तो यह उच्च कोटि का हठपन कहलाया जाएगा और हठपन का स्वरूप इसके विपरीत हुआ तो यहपतन का कारण हो सक

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आँचल

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“वो दिन भी कितने सुन्दर थे जब माँ के आँचल के अन्दर थेमाँ प्यार से हाथ फेरती थींममता का आभास कराती थींहम टुक-टुक देखा करते थेउनके स्नेह की सुन्दर छाया मेंवो दिन भी कितने सुन्दर थे, जब माँ के आँचल के अन्दर थे । दुनिया के सारे सुख भी तो माँ के आँचल में पाते हैंसपनों में हम खो जाते थे जब माँ के आँचल में

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पतंग

4 नवम्बर 2015
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"पतंग"A lifeshould be like a kite.....उड़ो.....खूब उड़ो.....और उड़ो.....जी भर के उड़ो.....A lifeshould be like a kite…..बस उड़ते जाओ.....खूब ऊपर उड़ते जाओ.....सही दिशा में उड़ो.....बस उड़ने की तमन्ना रहे.....A lifeshould be like a kite…..कटना (मरना) तो एक दिन सभी को है.....कटो तो संघर्ष के साथ.....जियो तो उ

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प्रश्न

4 नवम्बर 2015
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“प्रश्न” “आज ये नृशंस क्यों ?धरती का विध्वंश क्यों ?टूटता ये अंश क्यों ?व्यक्ति में ये दंश क्यों ?बिखरते ये वंश क्यों ? काँपता ये विश्व क्यों ?भटकता मनुष्य क्यों ?जीव में उन्माद क्यों ?हर मन उद्विग्न क्यों ?जन-जन विक्षिप्त क्यों ? जीवों का विनाश क्यों ?मनुष्यता का नाश क्यों ?मानवता का ह्रास क्यों ?क

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प्रचार

4 नवम्बर 2015
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11 वर्ष के अध्ययन रूपी विशाल वनवास के बाद मन के अन्त:करण में मनोरंजन देखने की ललक जाग्रत हुई जिस कारण कुछ दिन पहले एक LED TV �� खरीदा फिर क्या था HD वीडियो का लुत्फ़ उठाने लगा । काफी अच्छा लगता था लेकिन जब Advertisement देखते तो दिमाग ठनक जाता क्योंकि एक तरफ प्रधानमंत्री जी 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' का

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वोट

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मधुमय जीवन

6 नवम्बर 2015
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“मधुर मधुर मधुमय मेरा जीवनकैसेजग बतलाऊँ तुम्हें ?अन्तर्मनके स्वच्छंद प्रवाह को कैसेजग दिखलाऊँ तुम्हें ? स्वर्णभास्कर उदित हुये हैंविराटहृदय के प्रांगण मेंतीव्रप्रखर तेजोमय रवि का कैसेएहसास कराऊँ तुम्हें ?मधुरमधुर मधुमय मेरा जीवनकैसेजग बतलाऊँ तुम्हें ? कल-कलबहती नदियाँ सारी यौवनका उन्माद लिए औषधिपूरि

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अंतर्द्वंद्व

13 नवम्बर 2015
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“मैं अन्तरतम् से बहूँ या बाहरके उद्गारों सेमैं सीधासा शांत दिखूँयाक्रोधाग्नि के ज्वालों से मैंदिग्दिशाओं में बिचरुँया हृदयके स्थिरपन से मैं पावनसा नीर बहूँयाहिमगिरि के स्रोतों से मैंआशाओं से भरा रहूँयानिराशाओं के बादल सेमैंपुष्पों के बीच खिलूँ या कंटकके भोलेपन से मैं एकही राह चलूँ या जियूँकई खयालों

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