“मैं अन्तरतम् से बहूँ
या बाहर
के उद्गारों से
मैं सीधा
सा शांत दिखूँ
या
क्रोधाग्नि के ज्वालों से
मैं
दिग्दिशाओं में बिचरुँ
या हृदय
के स्थिरपन से
मैं पावन
सा नीर बहूँ
या
हिमगिरि के स्रोतों से
मैं
आशाओं से भरा रहूँ
या
निराशाओं के बादल से
मैं
पुष्पों के बीच खिलूँ
या कंटक
के भोलेपन से
मैं एक
ही राह चलूँ
या जियूँ
कई खयालों से
मैं सरल
सा उत्तर बनूँ
या उलझा
रहूँ सवालों से
मैं
पीड़ाओं का जहर पियूँ
या सुख
अमृत के प्यालों से
मैं
छप्पन भोगों से तृप्त रहूँ
या वंचित
रहूँ निवालों से.............क्रमश:
रचनाकार :- गोपालकृष्ण
त्रिवेदी
दिनाँक :- ११ नवंबर २०१५