यें कैसी विछड़न..
क्यों गये वहाँ जहाँ न..
हो सके कोई मिलन..
विरह क़ी बेला..
कैसी यें बेला..
कैसे करुँ कोई.. आस..
जहाँ मिलन क़ी ना कोई आस..
ऐसे छोड़ कोई जाता हैं क्या..
कोई ऐसे छोड़ विरह देता हैं क्या..
जिसके मिलने के आश नहीं.
यें कैसी बिछड़न...हैं हो गई
जिससे मिलने क़ी कोई आस नहीं..
वो तुम वहाँ क्यों हीं चली गई..
जहाँ ना कर सकें फरियाद कोई..
क्यों..सोची तुम सिर्फ ख़ुद के लिये..
हम सबको हीं तो ग़मगीन किये..
कितनो को हैं तुम तो विरह के..
बेला के... हो गम दें..गये..
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