28 नवम्बर 2016
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अपनी ज़िन्दगी का तज़ुर्बा, तुझको बतला रहा हूँ मैँ। कोई लब छू गया था, अब तक गा रहा हूँ मैँ।D
उनके दिए हुए अश्क़ मुझे उन्हें भूलने नहीं देते,उनके याद मेरे दिल को धड़कने नहीं देते ।यह कैसी तड़प है मेरे खुदा मेरे मोहब्बत की,वह ना हमें चैन से जीने देते है और ना मरने देते ।"P"मनमोहन वर्मा "माहेव"
http://manmohanverma.blogspot.in/2016/11/ishq-e-mizaaz_27.html?m=1