नदी से - पानी नहीं , रेत चाहिए
पहाड़ से - औषधि नहीं , पत्थर चाहिए
पेड़ से - छाया नहीं , लकड़ी चाहिए
खेत से - अन्न नहीं , नकद फसल चाहिए
उलीच ली रेत, खोद लिए पत्थर,
काट लिए पेड़, तोड़ दी मेड़
रेत से पक्की सड़क , पत्थर से मकान बनाकर लकड़ी के नक्काशीदार दरवाजे सजाकर,
अब भटक रहे हैं ?
सूखे कुओं में झाँकते,
रीती नदियाँ ताकते,
झाड़ियां खोजते लू के थपेड़ों में,
बिना छाया के ही हो जाती सुबह से शाम.
और गली-गली ढूंढ़ रहे हैं आक्सीजन
फिर भी सब बर्तन खाली l सोने के अंडे के लालच में , मानव ने मुर्गी मार डाली।
विचार अवश्य कीजिए...!
हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए प्रकृति का संरक्षण कितना आवश्यक है? साभार
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