कुंडलिनी जागरण की सत्य समझ
अहम् ब्रह्मास्मि। तत्वमसि।
संपूर्ण ब्रह्मांड दिव्य चेतन बुद्धिमान ऊर्जा से युक्त है। हमारे संसार की रचना का हेतु भी यही दिव्य चेतना है। समस्त ब्रम्हांड में इसी ऊर्जा का कंपन (vibration) है। मानव जिस संसार को अपनी पंच इंद्रियों से अनुभव करता है वह भी ऊर्जा का ही कंपन है। अलग-अलग वस्तु, व्यक्ति, अवस्था, भावना व विचार का अलग-अलग कंपन (vibration) frequency है। हर मनुष्य अपने विचारों एवं भावनाओं के साथ एक निश्चित तरंग (frequency) पर रहता है तथा उस तरंग को वह एक नाम देकर अपनी पहचान बनाता है। इसी तरंग को अहंकार कहा गया है। इसी अहंकार के वश होकर मनुष्य अपने को दीन व हीन मानता है तथा ज्यादा प्रेम, विश्वास, शक्ति प्राप्त करने के लिए तथा भ्रमवश दूसरों से अपने आपको बेहतर साबित करने के लिए अनेकानेक प्रयत्न करता है जबकि वास्तविकता यह है कि वह सदा से ही पूर्ण है, सत्य है, सतचितानंद है। वर्तमान में अपनी शक्तियों को जाग्रत करने के लिए योग में कुंडलिनी जागरण के प्रयोग होने लगे हैं। अधिकांश अनुभवहीन तथाकथित गुरु कुंडली जागरण की दीक्षा दे रहे हैं। और लोग भी अ ज्ञान व लालच वश इनके जाल में फंस जाते हैं और अपना समय, धन व स्वास्थ्य बर्बाद करते हैं। कुंडली जागरण के प्रयोग करने के पूर्व जिज्ञासु को सच्चे गुरु की खोज करनी चाहिए और मन के विकारों को त्याग कर प्रेम, विश्वास व श्रद्धा से साधना में प्रयोग करना चाहिए। जो कुछ लोग आजकल कुण्डलिनी जागरण के प्रयोग करवाते हैं उनसे सावधान रहें क्योंकि उस समय तो आपको अच्छा लगता है लेकिन बाद में आप फिर पूर्व अवस्था में पहुँच जाते हैं। कुंडली जागरण की यात्रा में प्रस्थान के पूर्व कुछ मूल सत्य जानने बहुत जरूरी है। कुंडली जागरण का मूल सत्य यह है कि कुंडली जागरण के तीन ही परिणाम होते हैं। 1. आत्म साक्षात्कार होना अगर आप साहसी हो। 2. पागल हो जाना अगर आप में थोड़ा डर है। 3. मृत्यु होना अगर आप में बहुत डर है। अर्थात कुंडली के जागरण की साधना या अन्य कोई भी साधना शुरू करने से पूर्व मानव को अपने अंदर के डरों पर सजगता से काम करके अपने अंदर के साहस को जागृत करना समीचीन है,जरूरी हैै। उसके बाद ही साधक साधनाओं का उचित लाभ ले सकता है। अध्यात्म का मार्ग साहसी और समर्पित लोगों के लिए है। उठो,जागो और अपने अंदर की शक्तियों को पहचानो। कुंडली जागरण के अलावा आत्मसाक्षात्कार का ज्ञान मार्ग भी है। जैसा श्री कृष्ण ने गीता में बताया है कि तीन मार्ग है ज्ञान, कर्म और भक्ति मार्ग। योग मार्ग कर्म का मार्ग है। कुंडली जागरण भी कर्म का मार्ग है। आत्म साक्षात्कार के ज्ञान मार्ग में यह समझ दी जाती है कि आप सदा से ही आत्म अनुभव में हों। केवल अज्ञान या भ्रमवश आप अपने आप को सीमित विकारों से युक्त मान बैठे हो और फिर इन विकारों को हटाने के लिए कर्म योग करते हो।पर कर्ता भाव से किया गया कर्म मुक्ति नहीं दे पाता क्योकि वास्तव में कर्म योग तो वह है जहां कर्ता ना हो, पूर्ण समर्पण भाव से कर्म हो। अन्यथा ( अच्छा या बुरा) कर्ता भाव से किया गया कोई भी कर्म आपको कर्मों के बंधन में बांधता ही है। ‘कर्ता भाव’ का ईश्वर को समर्पण ही आपको कर्म के बंधन से मुक्त करता है। अतः योग, साधना, ध्यान, मनन, उपासना,भजन, कुंडली जागरण इत्यादि समस्त कर्म व क्रियाएं अकर्ता भाव से ईश्वर को समर्पित करने से ही आप समस्त भय, शंका व कर्मफलों से मुक्त होकर, आप अपने सत्यस्वरूप में स्थापित होते हैं। यही सत्य ज्ञान है।
महेश चन्द्र सेठ,भोपाल
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