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जल का जीवन

11 सितम्बर 2021

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आसमां से ढुलकती
बादलों में फिसलती
नन्ही अनगढ
बारिश की बूँदें
धरा पर उतर
मिट्टी में मिल
बन जाती हैं जीवन

वे कहीं दौङती हैं
पौधों की जङों में
तो कहीं नदियों के जल में
कहीं जा पहुंचती हैं
सुग्गई धान के खेतों में
और दर्ज करती हैं उपस्थिति
हमारे चहुँ ओर

जल ही जीवन है
आपका- हमारा जीवन
यह जानते हुए भी
क्या हम आभारी हैं
इन जीवन दायिनी बूँदों के
क्या हमें भान भी है
इस अक्षरशः सत्य का

प्रकृति से विरक्ति
ताजगी से अलगाव
जाने किधर ले जाए
हमें हमारा स्वभाव
75% जल से पटी धरा
और 60% जल से बने हम 
जलमग्न ही तो हैं हम सब

फिर क्यों न मिलकर हम
जल को बचाएँ
छीजने से, बिखरने से
और प्रदूषण से भी
ताकि अपना सकें
जीवन में जल और
जल का जीवन


Pragya pandey

Pragya pandey

बहुत अच्छी कविता लिखी है 🙏

11 सितम्बर 2021

Priti

Priti

Very nice

11 सितम्बर 2021

Shailesh singh

Shailesh singh

बहुत ही अच्छी कविता 👌👌👌

11 सितम्बर 2021

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