भाग रहे हैं लोग --------------------- महा नगर की दौड़ धूप में भाग रहे हैंलोग क्वॉरे मौसम का पागलपन सीख रहा छलना चली हवा बदचलन यहॉ पर संभल संभल चलना स्नेहिल बन करके कपटी बम दाग रहे हैं लोग रोज़ी रोटी के जुगाड़ में गुमसुम हुआ सुआ खालीपन है बहके सपने मन शैतान हुआ मज़बूरी में क्या करते बन काग रहे हैं लोग अर्थशास्त्र का पाठ पढाकर तिल का ताड़ बनाते इसकी टोपी उसके सर पर रोज़-रोज़ पहनाते जीवन यापन स्वार्थ रज़ाई ताग रहे हैं लोग कितने दिन तक और चलेगा यूॅ मन को बहलाना नींद न आये रात न भाये बस सपने सहलाना अपनी अपनी मज़बूरी में जाग रहे हैं लोग कौन चलाये उनकी बातें उनकी बात निराली ऊपर से हैं भरे-भरे पर भीतर से खाली पानी देने वाले पानी मॉग रहे हैं लोग महानगर की दौड़ धूप में भाग रहे हैं लोग ~जयराम जय 'पर्णिका' ई-11/1 कृष्ण विहार आवास विकास कल्याणपुुर कानपुर 17 उ प्र फो 05122572721 मो 09415429104 E-Mail-jairamjay2011@gmail.com