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1 किताब
<div>मैंने जाग जाग कर काटीं थी कई रातें, </div><div>सारी रात आकाश के तारे गिन गिनकर, </div
<div>कुछ ख्वाहिशें दबी हुई थी </div><div>दिल के किसी कोने में, </div><div>बाहर न निकल पाई
<div>ढह रही है इमारत ख्वाबों की,</div><div> दूर खड़े हम देख रहें
<div>मेरी ज़िन्दगी का वो मायना हो गये,</div><div>चले गये, लेकिन आईना हो गये,
<div>ये कैैसी ज़िन्दगी,</div><div>कभी घुटन, कभी थकान,</div><div>कभी जलन, कभी चुभन,</div><div>इक पल क
<div>इस चुपचाप ज़िन्दगी में,</div><div>चुपचाप ये क्या हो गया,</div><div>पता ही न चला।</div><div><br>