इस चुपचाप ज़िन्दगी में,
चुपचाप ये क्या हो गया,
पता ही न चला।
कहने को तो,
नसीब होता है अपना अपना
मगर सपनों के चलते,
रास्ता कैंसे वीरान हो गया,
पता ही न चला।
सांझ के आँचल में
चाँद के धुँधले अंधेरे में,
रोशनी का दामन कैंसे छूट गया,
पता ही न चला।
हर डगर पे, हर मोड़ पे,
चाल बदल जाती है वक्त की
कुछ सिखा जाती है,
नई राह ज़िन्दगी की
मगर नया मोड़ क्या सिखा गया
पता ही न चला।
- जूही ग्रोवर