कुछ ख्वाहिशें दबी हुई थी
दिल के किसी कोने में,
बाहर न निकल पाई थी।
हमराज़ न मिला कोई,
पल भर की ज़िन्दगी में,
ज़ाहिर न हो पाई थी ।
दफ़न करना था मुश्किल,
मुँह सिये रखना था मुश्किल,
ज़िंदगी कम ही मिल पाई थी ।
कफ़न न मिला कोई,
कब्रिस्तान कम पड़ गया,
ख्वाहिशें दफ़न न हो पाई थी ।
कुछ ख्वाब अनदेखे थे,
रह गए थे सीने में,
कब्र तक ही पहुँचा पाई थी ।
कुछ ख्वाहिशें.......
- जूही ग्रोवर