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ख़्वाहिशें

7 नवम्बर 2021

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कुछ ख्वाहिशें दबी हुई थी 
दिल के किसी कोने में, 
बाहर न निकल पाई थी।

हमराज़ न मिला कोई, 
पल भर की ज़िन्दगी में,  
ज़ाहिर न हो पाई थी ।

दफ़न करना था मुश्किल, 
मुँह सिये रखना था मुश्किल, 
ज़िंदगी कम ही मिल पाई थी ।

कफ़न न मिला कोई, 
कब्रिस्तान कम पड़ गया,
ख्वाहिशें दफ़न न हो पाई थी ।

कुछ ख्वाब अनदेखे थे, 
रह गए थे सीने में, 
कब्र तक ही पहुँचा पाई थी ।

कुछ ख्वाहिशें....... 

                    - जूही ग्रोवर 

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