नक्षत्रों की नाड़ियाँपिछले लेख में हमने बात कीप्रत्येक नक्षत्र की संज्ञाओं और उनके आधार पर जातक के अनुमानित कर्तव्य कर्मों की| नक्षत्रों का विभाजन नाड़ी, योनि और तत्वों के आधार पर किया गया है | तो आज“नाड़ियों” पर संक्षिप्त चर्चा…प्रत्येक नक्षत्र की अपनी एकनाड़ी होती है – या यों कह सकते हैं कि प्रत्येक न
नक्षत्रोंकी संज्ञा के अनुसार कर्तव्य कर्म पिछले लेखों में बात कर रहे थे कि 27 नक्षत्रों में प्रत्येकनक्षत्र में कितने तारे (Stars) होते हैं, प्रत्येक नक्षत्र के देवता (Deity) तथा स्वामी अथवा अधिपति ग्रह (Lordship)कौन हैं, प्रत्येक नक्षत्र को क्या संज्ञा दी गई है| नक्षत्रों की संज्ञा से उनकी प्रकृति
नक्षत्रों के तारकसमूह, देवता, स्वामी ग्रह, संज्ञा तथा विभिन्न राशियों में उनकाप्रस्तार नक्षत्रोंका विश्लेषण करते हुए अभी तक हमने सभी 27 नक्षत्रों के आरम्भिक रूप और गुण पर बातकी | इस विषय पर बात की कि सभी बारह हिन्दी महीनों में 27 नक्षत्रों का विभाजन किसप्रकार हुआ तथा हिन्दी महीनों के वैदिक ना
समस्त बारहवैदिक मासों का आधार नक्षत्र मण्डल ही है | प्रत्येक माह को पूर्ण चन्द्र की रात्रिपूर्णिमा कहलाती है | पूर्णिमा को जो नक्षत्र पड़ता है, वैदिक महीनों का नाम उन्हीं नक्षत्रों के नाम पर होता है | अर्थात प्रत्येक पूर्णिमाका चन्द्र नक्षत्र उस माह के वैदक नाम है | जैसे,
पौराणिक ग्रन्थों जैसे रामायण में नक्षत्र विषयक सन्दर्भ :-वेदांग ज्योतिषके प्रतिनिधि ग्रन्थ दो वेदों से सम्बन्ध रखने वाले उपलब्ध होते हैं | एक याजुष्ज्योतिष – जिसका सम्बन्ध यजुर्वेद से है | दूसरा आर्च ज्योतिष – जिसका सम्बन्ध ऋग्वेद सेहै | इन दोनों हीग्रन्थों में वैदिककालीन
कलशुक्रवार 15 जून ज्येष्ठ शुक्ल द्वितीया को लगभग 11:37 पर भगवान् भास्कर भी कौलवकरण और वृद्धि योग में मिथुन राशि तथा मृगशिर नक्षत्र में प्रविष्ट हो गए | मिथुनराशि सूर्य की अपनी राशि सिंह से एकादश और सूर्य की उच्च राशि मेष से तीसरे भावमें आती है |यहाँ से 16 जुलाई को 22:27 क