
नक्षत्रों की नाड़ियाँ
पिछले लेख में हमने बात की
प्रत्येक नक्षत्र की संज्ञाओं और उनके आधार पर जातक के अनुमानित कर्तव्य कर्मों की
| नक्षत्रों का विभाजन नाड़ी, योनि और तत्वों के आधार पर किया गया है | तो आज
“नाड़ियों” पर संक्षिप्त चर्चा…
प्रत्येक नक्षत्र की अपनी एक
नाड़ी होती है – या यों कह सकते हैं कि प्रत्येक नक्षत्र एक विशेष नाड़ी के अन्तर्गत
आता है | ये नाड़ियाँ वास्तव में मानव शरीर के विशिष्ट प्रकार की प्रकृति यानी Constitution
का प्रतिनिधित्व करती हैं | इन नाड़ियों का अध्ययन करके यह समझने का प्रयास किया
जाता है कि जिस जातक की कुण्डली का हम निरीक्षण कर रहे हैं उस जातक की प्रकृति
कफप्रधान यानी Phlegmatic है, या पित्त यानी Bile प्रधान है या वात यानी Air
प्रधान है | जो लोग Medical Astrology करते हैं उनके लिए विशेष रूप से इन नाड़ियों
का ज्ञान होना आवश्यक है क्योंकि इनके द्वारा रोगी की प्रकृति को समझकर उसके
अनुसार उसके रोग का उपचार करने में सहायता प्राप्त होती है |
समय का एक भाग भी नाड़ी कहलाता है
| भाचक्र की मध्य की खगोलीय रेखा यानी Celestial Equator भी नाड़ी कहलाती है | इसके
अतिरिक्त गुलिका तथा सूर्य की किरण को भी नाड़ी कहा जाता है | मनुष्य के शरीर की
नब्ज़ भी नाड़ी कहलाती है – जिसे हाथ से पकड़कर वैद्य रोगी के रोग की पहचान करता है |
विवाह के समय दो व्यक्तियों की कुण्डली का मिलान करते हुए यदि नाड़ी दोष पाया जाता
है तो या तो ज्योतिषी वहाँ विवाह की सलाह ही नहीं देते, और यदि देते भी हैं तो उसके लिए
कुछ उपचार आदि भी बताते हैं | माना जाता है कि नाड़ी दोष में यदि विवाह कर दिया जाए
– अर्थात दो व्यक्तियों की एक नाड़ी होने पर यदि विवाह कर दिया जाए - तो सन्तान के
लिए हानिकारक होता है | किन्तु आज जब Medical Science इतनी तरक्क़ी कर चुकी है तो
ऐसे में इन दोषों का कोई महत्त्व हमारे विचार से नहीं रह जाता | फिर भी इस विषय पर
विस्तार से चर्चा “विवाह” प्रकरण में…
नाड़ी मुख्यतया तीन होती हैं, जिनमें
27 नक्षत्रों का विभाजन किया गया है | अर्थात प्रत्येक नाड़ी के अन्तर्गत नौ
नक्षत्र आते हैं | जो निम्नवत हैं –
आद्या नाड़ी – शरीर की वात
प्रकृति या वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करती है | वात दोष से सम्बन्धित समस्याओं
जैसे गठिया, आमवात, स्नायुतन्त्र से सम्बन्धित समस्या इत्यादि
का ज्ञान इस नाड़ी से होता है | अश्विनी, आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तर फाल्गुनी, हस्त, ज्येष्ठ, मूल, शतभिषज और उत्तर भाद्रपद नक्षत्र आद्या नाड़ी के
अन्तर्गत आते हैं |
मध्या नाड़ी – पित्त प्रकृति अर्थात
शरीर में अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करती है तथा पित्त दोष से सम्बन्धित समस्याओं
का ज्ञान इस नाड़ी से होता है | भरणी, मृगशिर, पुष्य, पूर्वा फाल्गुनी, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़, धनिष्ठा तथा उत्तर भाद्रपद नक्षत्र इस नाड़ी के अन्तर्गत आते हैं |
अन्त्या नाड़ी – यह नाड़ी मनुष्य
के शरीर में कफ और जल तत्व का प्रतिनिधित्व करती है | कृत्तिका, रोहिणी, आश्लेषा, मघा, स्वाति, विशाखा, उत्तराषाढ़, श्रावण और रेवती नक्षत्र अन्त्या नाड़ी के अन्तर्गत
आते हैं |
https://www.astrologerdrpurnimasharma.com/2019/05/20/constellation-nakshatras-41/