रात भर छाए रहे हैं – katyayani.purnimakatyayan
रात भर छाए रहे हैं, मेघ बौराए रहे हैंदेख बिजली का तड़पना, मेघ इतराए रहे हैं |बाँध कर बूँदों की पायल, है धरा भी तो मचलतीरस कलश को कर समर्पित, माघ हर्षाए रहे हैं ||पहन कर परिधान सतरंगी, धरा भी है ठुमकतीरास धरती का निरख कर, माघ ललचाए रहे हैं |तन मुदित, हर मन मुदित, और मस्त सा