कई सफर में छूटे
कई शहर में छूटे
चल चला जब तक न रब रूठे
तब तक चल जब तक आखिरी सांस न छूटे
जरा सी रुख से
जरा जरा सी बात पर
मसरूफ से महरूफ हो जाते है
महफिल की गलियां वीरान कर जाते है
कविता में कवि की झलक है देखी
टूट कर जब बिखरा वह भी मैं देखी
बातें सब झूठे
कई सफर में छूटे
कई....
✍️सौरभ प्रजापति