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कहानी (सतरंगी बांसुरी)

22 जुलाई 2023

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विनायक बांसुरी बजा रहा था। शांत वातावरण में स्वर गूंज रहे थे।टीले पर बने प्राचीन मंदिर में एक सिला पर बैठा था विनायक। चारों ओर सन्नाटा पसरा था टीले को छूते हुए नदी चुपचाप वही जा रही थी। पश्चिम में सूरज डूब चुका था।बिनायक को जब भी समय मिलता वह मंदिर में चला आता और देर तक बांसुरी बजाता रहता था।

 उसे वह स्थान पसंद था उसकी साधना चलती रहती और समय बीतता जाता। अद्भुत मिठास थी उसकी बांसुरी में विनायक के पिता प्रदेश में नौकरी करते थे।घर में वह छोटी बहन अलका और मां बस यही तीनों जने थे। दिन आराम से बीत रहे थे विनायक को भी कुछ दिन पहले नौकरी मिली थी एकाएक विनायक का ध्यान भंग हुआ उसने झाड़ियों में सराहर आहट सुनी धुंधलापन पसरने लगा था।उसने बांसुरी बजाना बंद कर दिया घर जाने के लिए उठ खड़ा हुआ तभी आवाज आई -विनायक! विनायक के बढ़ते कदम थम गए वह हैरानी से इधर-उधर देखने लगा। कहीं कोई नहीं था। कौन पुकार रहा है मुझे?''- विनायक के होठों से निकला।मैं पुकार रहा हूं इधर देखो विनायक आवाज की दिशा में घूम गया उसने देखा जमीन पर पड़े शिलाखंड के पास एक दरार है।उसमें से प्रकाश फूट रहा है। यह अद्भुत दृश्य देखकर विनायक घबरा गया आवाज फिर आई विनायक डरो मत तुम्हें कुछ नहीं होगा विनायक फटी फटी आंखों से जमीन से निकलते प्रकाश को देख रहा था। आवाज भी वहीं से आ रही थी उसे रोमांच हो आया सिर घूमने लगा ना जाने क्या मुसीबत आने वाली है ।मन ने कहा भाग निकला पर पैर तो जैसे दम जमीन से चिपक गए आप___ कौन हैं। विनायक ने डरते पूछा मैं स्वर्णमुख नाग हूं । यह भी बता दूंगा पर क्या तुम मेरा एक काम करोगे विनायक उलझन में फंस गया यह क्या रहस्य है। स्वर्ण मुख नाम जो मनुष्यों की बोली में बोलता है। आखिर क्या चाहता है आप तो चमत्कारी नाम है फिर बाहर क्यों नहीं आ सकते या कोई और बात है। उसने कहा मैं झूठ नहीं बोलता तुम्हारी बातें सुनकर ही मुझे तुम पर भरोसा हुआ है अच्छा अपनी बांसुरी सुनकर ही मुझे तुम पर भरोसा हुआ है। अच्छा अपनी बांसुरी दरार के पास रख दो विनायक ने सहमते हुए दरार के पास रख दी बांसुरी जहां से प्रकाश फूट रहा था फिर ध्यान से देखने लगा एक पुकार सुनाई दी अगले ही पल बांसुरी में से अपने आंसू निकलने लगे जैसे कोई अदृश्य शक्ति बांसुरी बजा रही हो तुम बांसुरी उठा लो इसके स्वरों में और भी मिठास भर दी है मैंने तुम जब जब इसे बजावे सुनने वाले मुक्त हो जाएंगे पूरे देश में तुम्हारा नाम हो जाएगा। बताओ अब करोगे मेरा काम विनायक ने बांसुरी उठा ली वह चकित भाव से बोला बताइए क्या काम है ।तुमने मनफूल बीन वादक का नाम जरूर सुना होगा दूर-दूर तक मशहूर है ।उसका नाम मैं उसकी बिन सुनना चाहता हूं बहुत दिनों से यहां नहीं आया है। वह तुम उसे ले आओ स्वर्ण मुख नाग की आवाज आई मनफूल बहुत अच्छी बीन बजाता है। यह विनायक को मालूम था वह दूर के किसी गांव में रहता था वह आज कल बहुत बीमार था। लेकिन वह विचित्र ना उसे यहां क्यों बुलाना चाहता है ।विनायक ने ऐसी अनेक कथाएं सुनी थी जब नाग मनुष्य बदला लेते हैं क्या स्वर्ण मुख भी मनुष्य के साथ ऐसा ही व्यवहार करना चाहता था। अगर ऐसी बात है तो उसे यहां कभी नहीं लाऊंगा चाहे जो भी हो यही बात सोचता हुआ विनायक रिक्शा खड़ा रह गया दरार में से आवाज आई क्या सोचने लगे विनायक में तुम्हारे मन के भाव खूब समझ रहा हूं ।मुझे कुछ भी नहीं छुपा है तुम्हारा ऐसा सोचना गलत है भला एक सांप और मनुष्य में कैसा संबंध लेकिन मेरा विश्वास करो मैं बहुत दिनों से मनफूल से मिलना चाहता हूं तुम चाहो तो उसे पूछ लेना जब वह इस शहर में होता था तो रोज आकर बीन बजाता रहता था पर फिर बीमारी के कारण वह गांव चला गया ।और मेरे बाहर निकलने पर बंधन लग गया नहीं तो मैं स्वयं उसके गांव चला जाता क्या वह जानता है इसका रहस्य विनायक ने पूछा नहीं मैंने कभी बताना जरूरी नहीं समझा शायद वह डर जाता और यहां फिर कभी नहीं आता तुम्हें बताना इसलिए जरूरी था। कि मैं बिल से बाहर नहीं आ सकता दरार में से स्वर्ण मुख की आवाज आई आखिर ऐसी क्या बात है। विनायक ने पूछा बात ऐसी है कि बताने में लज्जा लगती है एक बार में मेरे एक बार मैंने मन में आया कि मैं तो स्वर्ण मुख नाग हूं बहुत सी शक्तियां मेरे पास तो मैं ही नागों का राजा क्यों ना बन जाऊं बस मैंने नागराज पर ही हमला कर दिया उन्हें मेरे षड्यंत्र का जानकारी पता था उन्होंने क्षमा मांगने पर मुझे प्राण दंड तो नहीं दिया पर मेरे बाहर घूमने की शक्तियां छीन ले तब मैं दिल से बाहर आने की शक्ति खो बैठा हूं क्या अब भी तुम मेरा काम नहीं करोगे अब तो तुमने मेरे जीवन का यह रहस्य भी जान लिया जिसके कारण मुझे लज्जित होना पड़ा स्वर्ण मुख ने कहां सोचा विचार में डूबा विनायक घर लौट आया पूरी रात उसे नींद ना आए वह है ।उसी विचित्र घटना के बारे में सोचता रहा सुबह उठकर वह मनफूल की खोज में चल दिया उसके गांव का पता लग गया वहां तक पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई छोटा सा गांव ढोकली चौपाल पर पहुंचा ।तो एक आदमी उसे मनफूल के घर तक छोड़ आया अंदर अंधेरा था ।लेकिन कराने की आवाज आ रही थी विनायक अंदर चला गया मनफूल को आवाज दी किसी ने बड़ी धीमी आवाज में उत्तर दिया फिर दीपक का कापता हुआ प्रकाश फैल गया विनायक ने देखा एक बूढ़ा आदमी टूटी चारपाई पर लेटा है ।मनफूल की हालत वह अचकचा गया फिर अपना परिचय दिया मनफूल ने कहा आओ भैया अब तो मेरे पास कोई नहीं आता मुझे रोक रोग ने घेर रखा है घर में और कोई है नहीं जब मैं ठीक था तो नगर नगर बीन बजाता घूमता था ।सब तारीफ करते थे लेकिन अब वह आंसू पहुंचने लगा विनायकने उसी समय फैसला कर लिया बोला आप चिंता ना करें मैं कुछ ही दिनों में ठीक हो जाएंगे भैया तुम क्या देवदूत हो जो मुझे अपाहिज बुरे के लिए इतना कुछ करोगे ऐसी कोई बात नहीं है। बस आप अपने साथ अपनी बीन जरूर ले लें विनायक ने कहा उससे उसी समय बैलगाड़ी का प्रबंध किया और थोड़ी देर बाद ही मनफूल को लेकर चल दिया गांव वाले हैरान थे कि वह कौन था। जो मनफूल को इस तरह अपने साथ ले जा रहा था रास्ते में विनायक ने मनफूल को स्वर्ण मुख नाग की पूरी कहानी बता दी वह अचरा से देखता रह गया शहर पहुंचकर विनायक ने बैलगाड़ी कोसी टीले के पास रुकवा दिया फिर मनफूल कर कंप कपाती शरीर को सहारा देकर जैसे तैसे ऊपर ले गया कुछ देर बाद दरार से आवाज आई विनायक मनफूल कहां है उससे कहो अपना हाथ दरार के पास ले आए

बिनायक को जब भी समय मिलता वह मंदिर में चला आता और देर तक बांसुरी बजाता रहता था उसे वह स्थान पसंद था उसकी साधना चलती रहती और समय बीतता जाता अद्भुत मिठास थी उसकी बांसुरी में विनायक के पिता प्रदेश में नौकरी करते थे घर में वह छोटी बहन अलका और मां बस यही तीनों जने थी दिन आराम से बीत रहे थे विनायक को भी कुछ दिन पहले नौकरी मिली थी एकाएक विनायक का ध्यान भंग हुआ उसने झाड़ियों में सराहर आहट सुनी धुंधलापन पसरने लगा था उसने बांसुरी बजाना बंद कर दिया घर जाने के लिए उठ खड़ा हुआ तभी आवाज आई -विनायक! विनायक के बढ़ते कदम थम गए वह हैरानी से इधर-उधर देखने लगा। कहीं कोई नहीं था। कौन पुकार रहा है मुझे?''- विनायक के होठों से निकला।

मैं पुकार रहा हूं इधर देखो विनायक आवाज की दिशा में घूम गया उसने देखा जमीन पर पड़े शिलाखंड के पास एक दरार है उसमें से प्रकाश फूट रहा है यह अद्भुत दृश्य देखकर विनायक घबरा गया आवाज फिर आई विनायक डरो मत तुम्हें कुछ नहीं होगा विनायक फटी फटी आंखों से जमीन से निकलते प्रकाश को देख रहा था आवाज भी वहीं से आ रही थी उसे रोमांच हो आया सिर घूमने लगा ना जाने क्या मुसीबत आने वाली है मन ने कहा भाग निकला पर पैर तो जैसे दम जमीन से चिपक गए आप___ कौन हैं विनायक ने डरते पूछा मैं स्वर्णमुख नाग हूं । यह भी बता दूंगा पर क्या तुम मेरा एक काम करोगे विनायक उलझन में फंस गया यह क्या रहस्य है स्वर्ण मुख नाम जो मनुष्यों की बोली में बोलता है आखिर क्या चाहता है आप तो चमत्कारी नाम है फिर बाहर क्यों नहीं आ सकते या कोई और बात है उसने कहा मैं झूठ नहीं बोलता तुम्हारी बातें सुनकर ही मुझे तुम पर भरोसा हुआ है अच्छा अपनी बांसुरी सुनकर ही मुझे तुम पर भरोसा हुआ है अच्छा अपनी बांसुरी दरार के पास रख दो विनायक ने सहमते हुए दरार के पास रख दी बांसुरी जहां से प्रकाश फूट रहा था फिर ध्यान से देखने लगा एक पुकार सुनाई दी अगले ही पल बांसुरी में से अपने आंसू निकलने लगे जैसे कोई अदृश्य शक्ति बांसुरी बजा रही हो तुम बांसुरी उठा लो इसके स्वरों में और भी मिठास भर दी है मैंने तुम जब जब इसे बजावे सुनने वाले मुक्त हो जाएंगे पूरे देश में तुम्हारा नाम हो जाएगा बताओ अब करोगे मेरा काम विनायक ने बांसुरी उठा ली वह चकित भाव से बोला बताइए क्या काम है तुमने मनफूल बीन वादक का नाम जरूर सुना होगा दूर-दूर तक मशहूर है उसका नाम मैं उसकी बिन सुनना चाहता हूं बहुत दिनों से यहां नहीं आया है वह तुम उसे ले आओ स्वर्ण मुख नाग की आवाज आई मनफूल बहुत अच्छी बीन बजाता है यह विनायक को मालूम था वह दूर के किसी गांव में रहता था वह आज कल बहुत बीमार था लेकिन वह विचित्र ना उसे यहां क्यों बुलाना चाहता है विनायक ने ऐसी अनेक कथाएं सुनी थी जब नाग मनुष्य बदला लेते हैं क्या स्वर्ण मुख भी मनुष्य के साथ ऐसा ही व्यवहार करना चाहता था अगर ऐसी बात है तो उसे यहां कभी नहीं लाऊंगा चाहे जो भी हो यही बात सोचता हुआ विनायक रिक्शा खड़ा रह गया दरार में से आवाज आई क्या सोचने लगे विनायक में तुम्हारे मन के भाव खूब समझ रहा हूं मुझे कुछ भी नहीं छुपा है तुम्हारा ऐसा सोचना गलत है भला एक सांप और मनुष्य में कैसा संबंध लेकिन मेरा विश्वास करो मैं बहुत दिनों से मनफूल से मिलना चाहता हूं तुम चाहो तो उसे पूछ लेना जब वह इस शहर में होता था तो रोज आकर बीन बजाता रहता था पर फिर बीमारी के कारण वह गांव चला गया और मेरे बाहर निकलने पर बंधन लग गया नहीं तो मैं स्वयं उसके गांव चला जाता क्या वह जानता है इसका रहस्य विनायक ने पूछा नहीं मैंने कभी बताना जरूरी नहीं समझा शायद वह डर जाता और यहां फिर कभी नहीं आता तुम्हें बताना इसलिए जरूरी था कि मैं बिल से बाहर नहीं आ सकता दरार में से स्वर्ण मुख की आवाज आई आखिर ऐसी क्या बात है विनायक ने पूछा बात ऐसी है कि बताने में लज्जा लगती है एक बार में मेरे एक बार मैंने मन में आया कि मैं तो स्वर्ण मुख नाग हूं बहुत सी शक्तियां मेरे पास तो मैं ही नागों का राजा क्यों ना बन जाऊं बस मैंने नागराज पर ही हमला कर दिया उन्हें मेरे षड्यंत्र का जानकारी पता था उन्होंने क्षमा मांगने पर मुझे प्राण दंड तो नहीं दिया पर मेरे बाहर घूमने की शक्तियां छीन ले तब मैं दिल से बाहर आने की शक्ति खो बैठा हूं क्या अब भी तुम मेरा काम नहीं करोगे अब तो तुमने मेरे जीवन का यह रहस्य भी जान लिया जिसके कारण मुझे लज्जित होना पड़ा स्वर्ण मुख ने कहां सोचा विचार में डूबा विनायक घर लौट आया पूरी रात उसे नींद ना आए वह है उसी विचित्र घटना के बारे में सोचता रहा सुबह उठकर वह मनफूल की खोज में चल दिया उसके गांव का पता लग गया वहां तक पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई छोटा सा गांव ढोकली चौपाल पर पहुंचा तो एक आदमी उसे मनफूल के घर तक छोड़ आया अंदर अंधेरा था लेकिन कराने की आवाज आ रही थी विनायक अंदर चला गया मनफूल को आवाज दी किसी ने बड़ी धीमी आवाज में उत्तर दिया फिर दीपक का कापता हुआ प्रकाश फैल गया विनायक ने देखा एक बूढ़ा आदमी टूटी चारपाई पर लेटा है मनफूल की हालत वह अचकचा गया फिर अपना परिचय दिया मनफूल ने कहा आओ भैया अब तो मेरे पास कोई नहीं आता मुझे रोक रोग ने घेर रखा है घर में और कोई है नहीं जब मैं ठीक था तो नगर नगर बीन बजाता घूमता था सब तारीफ करते थे लेकिन अब वह आंसू पहुंचने लगा विनायकने उसी समय फैसला कर लिया बोला आप चिंता ना करें मैं कुछ ही दिनों में ठीक हो जाएंगे भैया तुम क्या देवदूत हो जो मुझे अपाहिज बुरे के लिए इतना कुछ करोगे ऐसी कोई बात नहीं है बस आप अपने साथ अपनी बीन जरूर ले लें विनायक ने कहा उससे उसी समय बैलगाड़ी का प्रबंध किया और थोड़ी देर बाद ही मनफूल को लेकर चल दिया गांव वाले हैरान थे कि वह कौन था जो मनफूल को इस तरह अपने साथ ले जा रहा था रास्ते में विनायक ने मनफूल को स्वर्ण मुख नाग की पूरी कहानी बता दी वह अचरा से देखता रह गया शहर पहुंचकर विनायक ने बैलगाड़ी कोसी टीले के पास रुकवा दिया फिर मनफूल कर कंप कपाती शरीर को सहारा देकर जैसे तैसे ऊपर ले गया। विनायक ने मनफूल को उसी दरार के पास बैठा दिया बांसुरी बजाने लगा बाद दरार से आवाज आई विनायक मनफूल कहां है उससे कहो अपना हाथ दरार के पास ले  विनायक ने मनफूल की ओर देखा वह बोला जब मैं यहां तक आ गया हूं तो पीछे नहीं हटूंगा मैं भी अपना हाथ दरार के पास ले गया एक पुकार सुनाई दी मनफूल का बदन कांपने लगा उसे महसूस हुआ जैसे पूरे शरीर में बिजली दौड़ गई हो वह उठ खड़ा हुआ शरीर की पीड़ा समाप्त हो गई थी मनफूल अपने को एकदम स्वस्थ और सुस्त महसूस कर रहा था उसने हाथ जोड़कर सिर झुका दिया कहा यह मेरा नया जन्म हुआ स्वर्णामुखी नाग की आवाज आई मनफूल अब तुम बिन बजाओ अगले ही पल मनफूल बीन मनफूल फिर स्वर्ण मुख की आवाज आई मनफूल अब तुम जाओ तुम्हारा कल्याण हो अब मैं अब नहीं जाऊंगा बैठकर बीन बजाया करूंगा मनफूल ने उत्साह से कहा स्वर्ण मुख की आवाज बंद हो गई उसके बाद दोनों लौट आए मनफूल विनायक के घर के पास ही रहने लगा अब वह फिर पहले जैसा मनफूल हो गया था और विनायक वह तो रोज टीले पर जाकर अपनी बांसुरी के स्वर छेड़ता ही था।।।

Satyam Dangi

Satyam Dangi

बहुत अच्छी है भाई आपकी कहानी प्रकाशन सतरंगी बाँसुरी

22 जुलाई 2023

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