17 सितम्बर 2015
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कहानी, कविता, समसामयिक लेखन, चम्बल की बोली और लोक साहित्य पर अन्वेषण कार्य , कन्या भ्रूण संरक्षण पर कार्य D
डॉ. सुधीर आचार्य जी, बहुत सुन्दर लिखा है !
18 सितम्बर 2015
दिल में हिंदी की हूक है , जुबाँ पर इंग्लिश की फूँक ……।मुँह पर ही गिरेगा भैया , मत मुँह उठा कर थूक ।.
मित्र ने एक दिन पूछा -लगातार बढ़ती बैचेनी और परेशानी का निवारण हमने कहा -ये सारी खुशियां हैं इसका कारण .वो बोला ! बात कुछ समझ न आई हमने कहा -जाके पांव न फटी बीबाई, वो क्या जाने पीर पराई ।
घर में घुसते ही ,माँ बोली ! बेटा निबट गई है दबाई सुनते ही बेटे ने ,पीठ पीछे छिपाई रस मलाई और बोला ! अभी पैसे नहीं हैं माई ---
न बीमा न पेंसन हे ,जीभन भर का टेंसन हे, वेतन कम काम अधिक बेचारा मुशीबत का मारा भटक रहा हे इधर उधर
चम्बल की माटी में स्वाभिमान ,शौर्य के कण समाहित हैं . चम्बल का शाब्दिक अर्थ है ,चम् यानि आचमन और बल अर्थात शक्ति . मतलब शक्ति का आचमन करने वाले चम्बल वासी शूरवीर ,निडर और आन-बान-शान पर मर मिटने वाले हैं . चबल के भरखे ,निर्जन बीहड़ डकैतों के लिए सुरक्षित शरण स्थली साबित हुए ,इसलिए चम्बल अंचल बदनाम ह
स्वयं को स्वयं के पास ले जाना , स्वयं से संवाद में निमग्न हो जाना , अर्थात स्वयं के करीब आना, स्वयं के पास बैठना ही उपवास है .कहने का तात्पर्य है स्वयं के परिष्कार और परिमार्जन की क्रिया उपवास से संभव है ।.
जो हमें दिल से बड़ा कर जाए उसे त्यौहार मानूँगा जो हमें नफरतों से उबार जाए उसे त्यौहार मानूँगाजो भेद-भाव की दीवार गिरा जाए उसे त्यौहार मानूँगा जो झोंपड़ी में भी हों सोलह श्रंगार उसे त्यौहार मानूँगा ।.