shabd-logo

कमाओ भैया कमाओ... लेकिन पब्लिक को यूं मूर्ख तो न बनाओ

28 जुलाई 2016

279 बार देखा गया 279
featured image

अमितेश कुमार ओझा

हमारे देश में अच्छे – खासे पढ़े लिखे डिग्रीधारी नौजवानों को चंद हजार की नौकरी भले न मिलती हो, लेकिन फिल्मी स्टार और क्रिकेट खिलाड़ियों की करोड़ों की कमाई की चर्चा यूं की जाती है मानो दस – बीस रुपए की बात हो रही हो। कोई फिल्म रिलीज हुई नहीं कि उसे करोड़ों में खेलने वाला करार दे दिया जाता है। वहीं क्रिकेट खिलाड़ियों की कमाई का शेयर मार्केट लगातार उठता – गिरता रहता है। हमें समय – समय पर बताया जाता है कि इस साल कमाई के मामले में अमुक खिलाड़ी फलां से आगे निकल गया और फलां पीछे रह गया। एक खास वर्ग की कमाई का आम जनता के सुख – दुख से क्या नाता है, यह मैं कभी समझ नहीं पाया। लेकिन गुस्सा इस बात पर आता है कि अपने मतलब के लिए हमारे समाज का अभिजात्य वर्ग व्यर्थ का विवाद खड़ा करता रहता है। जनता को न चाहते हुए भी इसमें शामिल किया जाता है और अंत में बेवकूफ बनती है जनता और फायदा लूटने वाले आगे बढ़ लेते हैं। पहले फिल्म का विवादित बनाने के लिए उसमें खुलेपन का तड़का लगाया जाता था। अब दूसरे फंडे अपनाए जा रहे हैं। बचपन से ही किसी फिल्म को हिट कराने के लिए चाहे – अनचाहे विवादों का फंदा देखता आ रहा हूं। तब मैं बहुत छोटा था जब एक फिल्म आई थी... नाम था गंगाजल। इस फिल्म में खलनायक का नाम साधु यादव था। जो बिहार के तब के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के साले थे। तब इस कुनबे की बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में अच्छी – खासी धमक थी। लिहाजा फिल्म को लेकर खासा बवाल हुआ। लेकिन फिल्म रिलीज होने से चंद रोज पहले खुद लालू और साधु यादव ने कह दिया कि इसमें आपत्तिजनक कुछ भी न हीं है। फिल्म रिलीज हो तो इसमें उन्हें कोई ऐतराज नहीं है। फिल्म रिलीज हुई भी, लेकिन इस विवाद से फिल्म को अच्छी – खासी पब्लिसिटी मिल गई। खैर मुझे खुशी है कि फिल्म भी बहुत ही अच्छी थी। जिसमें हिंदी पट्टी के ग्रामीण पृष्ठभूमि में फैले आतंक व गुंडागर्दी पर फोकस किया गया था। इससे जूझते हुए एक पुलिस अधिकारी को देखना भी खासा प्रेरणास्पद अनुभव रहा। लेकिन सारे फिल्मों के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता। क्योंकि विवाद से प्रभावित होकर फिल्म देखने जाने पर अक्सर मूर्ख बनने का अहसास होता है।   यह सिलसिला अब भी अनवरत जारी है। पहले फिल्म में कुछ यूं  दृश्य डाले जाते थे, जिस पर फिल्म प्रदर्शित होने से पहले ही विवाद खड़ा हो। इससे लोगों की दिलचस्पी फिल्म में हो जाती थी और न चाहते हुए भी लोग फिल्म देखने चले जाते थे। लेकिन फिल्म देखने के बाद अक्सर दर्शकों को अहसास होता था कि भैया इसमें विवाद जैसा तो कुछ है नहीं। सीधी सी बात है कि प्रचार पाने के लिए जनता को बेवकूफ बनाया गया। मेरे खिलाफ से यह एक तरह का अपराध है। यह जल्द से जल्द बंद होना चाहिए। क्योंकि सीधे तौर पर यह जनता के साथ ठगी है। करोड़ों – अरबों लगा कर फिल्म बनाने वाले यदि कमाई चाहते हैं तो उन्हें अपनी फिल्म की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए। न कि कंट्रोवर्सी का फंडा अपनाना चाहिए। सरकार को भी ऐसे मामलों में सख्ती से पेश आना चाहिए। अभी हाल में हमने दो चर्चित फिल्मों का हाल देखा। जिसके प्रदर्शन से पहले बेमतलब का विवाद खड़ा कर दिया गया। उड़ता पंजाब और सुल्तान के मसले को ही लें। यदि उड़ता पंजाब में कुछ आपत्तिनजक होता तो फिल्म रिलीज होने के बाद भी उस पर जरूर विवाद कायम रहता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वहीं सुल्तान फिल्म के रिलीज होने से पहले सलमान खान ने रेप पीड़ित महिला जैसा अनुभव होने का जो बयान दिया। उस पर उन्होंने माफी भी नहीं मांगी। आखिर इससे फायदा किसका हुआ। मेरे ख्याल से उनके बयान को मीडिया को महत्व ही नहीं देना चाहिए था। 

अमितेश कुमार ओझा की अन्य किताबें

1

समय का मोल ...

9 जुलाई 2016
0
4
0

कहानी------------समय का मोल...!!अमितेश कुमार ओझाकड़ाके की ठंड में झोपड़ी के पास रिक्शे की खड़खड़ाहट से भोला की पत्नी और बेटा चौंक उठे। अनायास ही उन्हें कुछ  प्रतिकूलता का भान हुआ। क्योंकि भोला को और देर से घर पहुंचना था। लेकिन अपेक्षा से काफी पहले ही वह घर लौट आया था। जरूर कुछ गड़बड़ हुई.... भोला की

2

सपना ...!!

10 जुलाई 2016
0
1
1

जय जगन्नाथ... बोलो जय जगन्नाथ...रथ महोत्सव पर निकली यात्रा में उत्साहित बच्चों के मुंह से निकलने वालेइस जयकारे ने नुक्कड़ से मोहल्ले की ओर जाने वाली पगडंडी पर चल रही उदासमाला की तंद्रा मानो भंग कर दी।जीवन के गुजरे पल खास कर उसका अतीत किसी फिल्म के फ्लैश बैक की तरह उसकीआंखों के सामने नाचने लगा।क्योंक

3

घर वापसी...!!

11 जुलाई 2016
0
1
0

अरे महाराज... कहां चल दिए। रुकिए तो ... गाड़ी कभी भी चल पड़ेगी। उस युवा साधु को छोटे से स्टेशन से आगे बढ़ता देख दूसरे साधु चिल्ला उठे। लेकिन उस  पर तो जैसे अलग ही धुन सवार थी। वह आगे बढ़ता ही जा रहा था। दूसरे साधु पीछे - पीछे चिल्लाते हुए लगभग दौड़ने लगे। महाराज , आपको कुछ भ्रम हो गया है क्या। आप कह

4

जनाब, जरा हमारे स्कूल पर भी हो नजरें - इनायत ....

12 जुलाई 2016
0
0
1

अपने देश में भेदभाव मिटाने औऱ समानता कायम करने पर काफी बातें होती है। लेकिन वास्तव में होता इसके बिल्कुल विपरीत है। क्योंकि दरअसल असमानता , गरीबी व बेरोजगारी की जड़ हमारी शिक्षा नीति में है, लेकिन इस ओर देश के कर्णधारों का ध्यान ही नहीं जाता। यह तो सर्वविदित तथ्य है कि देश की भीषणतम समस्या गरीबी और

5

खुशी...!!

15 जुलाई 2016
0
1
0

वृद्धाश्रम में संदूक रखते ही राजाराम ने चैन की सांस ली। अरसे बाद उनके चेहरे पर एेसी रौनक लौटी थी। हालांकि उनका यह व्यवहार दूसरे साथियों की तरह संचालकों व स्वयंसेवकों के लिए भी खासा रहस्यमय था। क्योंकि इस वृद्धाश्रम में खुशी - खुशी अब तक कोई नहीं आया था। सब मुसीबत के मारे होते। देखने वाला कोई न होता,

6

ऊंची डिग्रियों के फीके नतीजे

21 जुलाई 2016
0
0
0

 तो कहना मुश्किल था कि इसकी कितनी भयंकरपरिणति उसके परिवार को झेलनी पड़ती। अब सवाल उठता है कि यदि पेशेवरव्यावसायिक डिग्रियों का यह हाल होगा तो साधारण विद्यार्थियों के लिए देश– समाज में कौन सा स्थान बचेगा। क्या साधारण युवा अपने को दौर के लिहाजसे बचा पाने में सफल हो पाएंगे। आज स्किल इंडिया की बात हो रह

7

ऊंची डिग्रियों के फीके नतीजे

21 जुलाई 2016
0
4
0

अमितेश कुमार ओझाव्हाट्स योर क्वालिफिकेशन ...। पहले छात्रों से जब यह सवाल पूछा जाता था,तो जवाब साधारणतः एमबीए और इंजीनियरिंग के मिलते थे। लेकिन समय के साथऐसे जवाब मिलने दिनोंदिन कम होते जा रहे हैं। क्योंकि उपभोक्तावाद केमौजूदा दौर में इन डिग्रियों का महत्व काफी कम हो गया है। यदि कहें कि इनडिग्रियों क

8

धोखा....!!

22 जुलाई 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझाकस्बे के नगर सेठ गोविंद दास अपने नौकर राजाराम को बेटे से कम नहीं मानता था। कदाचित इसका कारण गोविंद दास का नंबर एक औऱ दो दोनों प्रकार का धंधा था।राजाराम उसका हर राज जानता था। इसलिए गोविंद दास उसे हर प्रकार से संतुष्ट रखने की भरपूर कोशिश करते। परिवार के भरण - पोषण की मजबूरी में राजाराम

9

आरक्षण और युवा पीढ़ी

23 जुलाई 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझा जब मैं छोटा था तब मेरेलिए आरक्षण का मतलब ट्रेन का रिजर्वेशन था। लेकिन कॉलेज पहुंचने पर मुझे इसके सहीमायने समझ में आए। इस मुद्दे पर मैने अनेक वाद – विवाद देखे और सुने। जिससे मैंसोच में पड़ गया। बेशक समाज के उस वर्ग को जिसे सदियों तक पीछे धकेला गया, पिछड़ेबने रहने पर मजबूर किया गया, क

10

भयंकर होता दहेज का दानव ...

25 जुलाई 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझामेरी एक परिचित महिला ऐसी है जो जवानी में ही विधवा होने को अभिशप्त रही। बच्चे बड़े होने पर उसे उनकी शादी की चिंता हुई। उसके एक बेटा और एक बेटी थी। बेटी की शादी के लिए महिला दर – दर की ठोकरें खाती रही। कहीं से मदद की आस होते ही वह उनके दरवाजे पहुंच जाती और अपने से कम उम्र के लोगों के भ

11

बलि प्रथा पर रोक जरूरी...!!

27 जुलाई 2016
0
0
1

अपने देश  में धर्मांधता पर बनने वाली फिल्में काफी पसंद तो की जाती है। लेकिन इन फिल्मों का लेशमात्र भी सकारात्मक असर समाज पर पड़ता हो, एेसा नहीं कहा जा सकता। इसका जीता - जागता उदाहरण सदियों बाद भी समाज में बलि प्रथा का कायम रहना है। साधारणतः हर धर्म में यह किसी न किसी रूप में मौजूद है। जिसे रोक पाने

12

कमाओ भैया कमाओ... लेकिन पब्लिक को यूं मूर्ख तो न बनाओ

28 जुलाई 2016
0
3
0

अमितेश कुमार ओझाहमारे देश मेंअच्छे – खासे पढ़े लिखे डिग्रीधारी नौजवानों को चंद हजार की नौकरी भले न मिलती हो,लेकिन फिल्मी स्टार और क्रिकेट खिलाड़ियों की करोड़ों की कमाई की चर्चा यूं कीजाती है मानो दस – बीस रुपए की बात हो रही हो। कोई फिल्म रिलीज हुई नहीं कि उसेकरोड़ों में खेलने वाला करार दे दिया जाता

13

जरूर दो जनाब वीआइपी को सिक्यूरिटी , लेकिन जनता का भी तो ख्याल रखो ...!!

3 अगस्त 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझा कुछ दिन पहले मैं अपनेशहर में किसी जरूरी कार्य से जा रहा था, कि अचानक एक बड़े पुल पर पुलिस ही पुलिसदेख घबरा गया। पुल  के नीचे से रेलवे लाइनगुजरती है। मैने सोचा क्या कहीं कोई अनहोनी हो गई है। पुल पर इतनी पुलिस क्यों है।चौंकने वालों में मैं अकेला नहीं था। जिसकी भी नजर इतनी अधिक संख्या

14

युवाओं के लिए आजादी का मतलब...

9 अगस्त 2016
0
2
1

अमितेश कुमार ओझासमाज की यह बड़ी विडंबना है कि हर दौर में पुरानी पीढ़ी को नई पीढ़ी अधिकस्वतंत्र व गैर  - जिम्मेदार लगती है। हम अक्सर बुजुर्गों से सुनतेहैं... भैया ... आजकल के ये लड़के...। इनकी तो न ही पूछो तो ठीक....लेकिन सवाल उठता है कि क्या पुरानी पीढ़ी की नई पीढ़ी के प्रति यह सोचउचित है। बेशक आज क

15

कैसे मजबूत हो बैंकों की बुनियाद

26 अगस्त 2016
0
1
0

अमितेश कुमार ओझा कुछ साल पहले मेरे शहर में दिन – दहाड़े बैंक की 20 लाख रुपए की रकम लूट ली गई। वाकया दिन को हुआ था, लिहाजा पुलिस ने आनन – फानन कुछ लोगों को गिरफ्तार कर लिया। लेकिन असली समस्या तब आई जब लूट का शिकार बने बैंक के कर्मचारियों ने शिनाख्त परेड के दौरान अपराधियों को पहचानने से साफ इन्कार कर

16

नारा नहीं संस्कृति बने स्वच्छता अभियान...

2 अक्टूबर 2016
0
0
0

अमितेश कुमार ओझा पिछले साल देश केप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब महात्मा गांधी की जयंती पर स्वच्छ भारत अभियानका नारा बुलंद किया तो बेशक समूचे देश में साफ – सफाई को लेकर एक माहौल बनता नजरआया। जगह – जगह लोग झाड़ू लेकर निकल पड़े।स्वयंसेवी संगठनों से लेकर आत्मकेंद्रित हाई प्रोफाइल संस्थानों में भी लोग

17

नारा नहीं संस्कृति बने स्वच्छता अभियान...

2 अक्टूबर 2016
0
2
0

अमितेश कुमार ओझा पिछले साल देश केप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब महात्मा गांधी की जयंती पर स्वच्छ भारत अभियानका नारा बुलंद किया तो बेशक समूचे देश में साफ – सफाई को लेकर एक माहौल बनता नजरआया। जगह – जगह लोग झाड़ू लेकर निकल पड़े।स्वयंसेवी संगठनों से लेकर आत्मकेंद्रित हाई प्रोफाइल संस्थानों में भी लोग

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए