जय जगन्नाथ... बोलो जय जगन्नाथ...
रथ महोत्सव पर निकली यात्रा में उत्साहित बच्चों के मुंह से निकलने वाले
इस जयकारे ने नुक्कड़ से मोहल्ले की ओर जाने वाली पगडंडी पर चल रही उदास
माला की तंद्रा मानो भंग कर दी।
जीवन के गुजरे पल खास कर उसका अतीत किसी फिल्म के फ्लैश बैक की तरह उसकी
आंखों के सामने नाचने लगा।
क्योंकि इसके पीछे एक गहरी टीस छिपी थी।
दरअसल जवानी में ही विधवा हो चुकी माला ने यह तो सुन रखा था कि बगैर
पुरुष के स्त्री का जीवन बिल्कुल कटी पतंग की तरह होता है। लेकिन पिछले
कुछ सालों से वह इस यथार्थ को भोग रही थी।
पति के गुजरने के बाद विकट परिस्थितियों में भी माला ने अपने इकलौते बेटे
सतीश की परवरिश में पूरी ताकत झोंक दी। इसी का नतीजा है कि पिता की मौत
के समय अबोध रहा सतीश अब किशोरावस्था की दहलीज तक पहुंच पाया है।
लेकिन सतीश की एक बड़ी कमजोरी है। उसे मां के साथ कही जाना बिल्कुल
मंजूर नहीं है। वह शायद अपनी मां की नियति को ले बाहरी लोगों के सामने
खुद को शर्मिंदा महसूस करता है।
सतीश तब भी टस से मस नहीं हुआ था जब माला को इलाज के लिए बड़े शहर जाने
की जरूरत हुई।
काफी दबाव देने व मनाने के बावजूद उसका बेटा उसके साथ जाने को तैयार नहीं हुआ।
उसे बहाने पर बहाने बनाता देख माला का कलेजा छलनी हो गया।
वह बार – बार एक ही बात कहता ... मां चली जाओ न किसी को साथ लेकर... मेरे
पास दूसरे भी काम है।
आखिरकार काफी तलाश के बाद एक नेक इंसान काफी सकुचाते हुए उसे अपने साथ उस
बड़े शहर को ले गया। दरअसल उसे भी वहां इलाज के लिए जाना था।
लेकिन लौटने पर इसे लेकर परिचितों के बीच खूब कानाफूसी हुई। उस भले आदमी
की पत्नी ने भी इस पर काफी हंगामा किया।
इस विचित्र पीड़ा ने माला को एक और दर्द दे दिया। क्योंकि ट्रेन से बड़े
शहर जाने के दौरान उसे अनेक सहयात्री मिले जो बाबा जगन्नाथ के दर्शन व
सैर – सपाटे के लिए पुरी जा रहे थे। उनमें से कई ने बताया कि उन्हें जब
भी मौका मिलता है, वे पूरे परिवार के साथ तो कभी अकेले ही पुरी के लिए
निकल पड़ते हैं। वहां उन्हें असीम खुशी मिलती है क्योंकि वहां बाबा
जगन्नाथ के दर्शन के साथ समुद्र स्नान का सौभाग्य उन्हें एक साथ मिलता
है।
सहयात्रियों के इस अनुभव ने माला को न चाहते हुए भी फिर अतीत में लौटने
को मजबूर कर दिया। दरअसल उसकी भी तो बड़ी साध थी कम से कम एक बार पुरी
जाने की। उसके शहर से यह कोई ज्यादा दूर भी नहीं है। कई लोग तो जब – तब
वहां जाते रहते हैं। लेकिन माला की यह हसरत शादी से लेकर विधवा होने तक
कभी पूरी नहीं हो पाई।
पति जिंदा थे तो कई बार पुरी जाने का कार्यक्रम बना। लेकिन कभी आर्थिक
परेशानियां तो कभी बेटे सतीश से जुड़ी दिक्कतों के चलते उनका कभी वहां
जाना नहीं हो पाया।
इसी कश्मकश में एक दिन वह विधवा भी हो गई।
यात्रा के दौरान जख्मों पर लगी इस चोट ने माला को भाव – विह्वल कर दिया।
उसे लगा कम से कम दिवंगत पति के लिए एक बार वह पुरी जाए। शायद इससे उसके
पति की आत्मा को शांति मिले कि जो काम वह अपने जीते – जी नहीं कर पाए,
उसे उसकी अनुपस्थिति में अकेले ही सही माला ने कर दिखाया।
लेकिन फिर वही अड़चन। सतीश उसके साथ जाने को बिल्कुल तैयार नहीं हुआ। औऱ
एक विधवा यदि किसी दूसरे के साथ वहां जाए तो इस पर भी बवाल होना लाजिमी
है।
उसने अपने कई परिचितों के समक्ष प्रस्ताव रखा कि वे यदि परिवार के साथ
कभी पुरी जाएं तो वह उनके साथ जा सकती है। लेकिन इस प्रस्ताव पर किसी ने
मुंह बिचकाया तो किसी ने हंस कर चुप्पी साध ली।
उसी पुरी धाम के बाबा जगन्नाथ के जयकारे ने माला के जख्मो पर फिर गहरी चोट की।
आंखों में आंसू भर कर माला बुदबुदाई ... प्रभू दुनिया में आने वाले
अनगिनत लोगों की असंख्य हसरतें पूरी होती है। लेकिन कुछ अभागों को छोटी
से छोटी इच्छा पूरी करने के लिए भी खून के आंसू रोने पड़ते हैं... आखिर
क्यों....!!
माला के मस्तिष्क में अनेक सवाल उमड़ – घुमड़ रहे थे। लेकिन प्रत्युत्तर
में सिर्फ डरावनी व रहस्यमय खामोशी छाई हुई थी।
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लेखक बी.काम प्रथम वर्ष के छात्र हैं।
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