अपने देश में भेदभाव मिटाने औऱ समानता कायम करने पर काफी बातें होती है। लेकिन वास्तव में होता इसके बिल्कुल विपरीत है। क्योंकि दरअसल असमानता , गरीबी व बेरोजगारी की जड़ हमारी शिक्षा नीति में है, लेकिन इस ओर देश के कर्णधारों का ध्यान ही नहीं जाता। यह तो सर्वविदित तथ्य है कि देश की भीषणतम समस्या गरीबी और बेरोजगारी है। इसे हम हर नागरिक को समान रूप से शिक्षा का अवसर देकर ही दूर कर सकते हैं। लेकिन इस राह में सबसे बड़ी बाधा असमान शिक्षा प्रणाली है। एक ही स्थान पर अलग - अलग दर्जे व प्रणाली के शिक्षण संस्थान देश व समाज के लिए उचित नहीं कहे जा सकते हैं। कहीं हर सुविधा से सुसज्जित स्कूल हैं तो कहीं चिलचिलाती धूप और भीषण गर्मी में भी छात्र बगैर बिजली - पंखे के पढ़ने को अभिशप्त हैं। एक ही स्थान पर कुछ स्कूल शिक्षा बोर्ड से संबद्ध हैं तो कहीं सीबीएसइ से। ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थियों को कम से कम तीन भाषा सीखनी पड़ती है। वहीं संभ्रांत परिवार के छात्र इस मायने में फायदे में होते हैं कि उन्हें परिवार से ही हिंदी व अंग्रेजी का ज्ञान विरासत में मिल जाता है। एेसे छात्र ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले छात्रों पर तो भारी पड़ेंगे ही। रोजगार के अवसर भी स्वाभाविक रूप से उन्हें ही पहले मिलेंगे। एक विद्यार्थी की पारिवारिक पृष्ठभूमि का गहरा असर उसकी शिक्षा व भविष्य पर पड़ता है। एेसे में आखिर समाज की विसंगितियां कैसे दूर हो पाएंगी। क्योंकि एेसे असमान वातावरण से निकलने वाले छात्र नौकरी के मामले में भी बड़ी विसंगितयां झेलने को अभिशप्त होते हैं। क्योंकि किसी को सामान्य पढ़ाई से अच्छे नंबर मिल जाते हैं तो कहीं कठोर मेहनत के बाद भी उन्हें अपेक्षित अंक नहीं मिल पाते। इसका सीधा असर संबद्ध विद्यार्थी की उच्च शिक्षा व रोजगार के अवसर पर भी पड़ता है। इससे लगभग आधे विद्यार्थी रोजगार के अवसर हाथ से निकल जाने की वजह से भीषण मानसिक अवसाद की चपेट में आ जाते हैं। इसलिए नई पीढ़ी का भविष्य संवारने के लिए जरूरी है कि समूचे देश में एकल शिक्षा नीति लागू की जाए। वहीं देश के हर बच्चे को समान रूप से शिक्षा हासिल करने का अधिकार अनिवार्य रूप से मिलना चाहिए। तभी देश से गरीबी व बेरोजगारी सही मायने में दूर हो पाएगी। अन्यथा गरीबी हटाओ - बेरोजगारी हटाओ जैसे नारे वास्तव में राजनीति के हथियार ही बने रहेंगे। वास्तविक धरातल पर यह कभी दूर नहीं हो पाएगी।
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लेखक बी.काम प्रथम वर्ष के छात्र हैं।