अमितेश कुमार ओझा
कस्बे के नगर सेठ गोविंद दास अपने नौकर राजाराम को बेटे से कम नहीं मानता था। कदाचित इसका कारण गोविंद दास का नंबर एक औऱ दो दोनों प्रकार का धंधा था।राजाराम उसका हर राज जानता था। इसलिए गोविंद दास उसे हर प्रकार से संतुष्ट रखने की भरपूर कोशिश करते। परिवार के भरण - पोषण की मजबूरी में राजाराम मालिक का कहा कोई बात नहीं टालता था। संयोग वश गोविंद दास का धंधा अचानक मंदा पड़ गया। इससे राजाराम परेशान रहने लगा। शायद पहली बार उसे आर्थिक कठिनाई का मतलब समझ में आ रहा था। हालांकि गोविंद दास उसे इतनी रकम जरूर देते थे , जिससे परिवार का खर्च आसानी से चल सके। लेकिन राजाराम की परेशानी की वजह उसकी फिजूलखर्ची की आदत थी । आराम से पैसा मिलते रहने की वजह से उसे इसकी लत लग चुकी थी। आखिरकार राजाराम ने एक तरकीब निकाली और वह तरह - तरह के झूठ बोल कर अपने सेठ से पैसे उगाहने लगा। गोविंद दास ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया। कुछ दिन बाद राजाराम ने उसके सामने रोते हुए पत्नी के सख्त बीमार होने और अस्पताल में भर्ती होने का बहाना बना कर 10 हजार रुपए ले गया। संयोग से एक दिन गोविंद दास उस ओर से गुजरे तो उन्होंने सोचा कि क्यों न राजाराम की बीमार पत्नी का हालचाल लेता चलूं।
दरवाजे पर नगरसेठ को देख राजाराम की पत्नी घबरा गई। उसने आवभगत करते हुए उसके प्रति आभार जताया तो गोविंद दास कहने लगे... अरे तकलीफ की कोई बात नहीं, बस वैसे ही आपका हाल - चाल लेने आया था।
फिर गोविंद दास ने पूछा.. अस्पताल से कब लौटी... अब आपकी तबियत कैसी है।
इस पर राजाराम की पत्नी अचकचा गई।
हैरत जताते हुए वह बोली... किसने कहा मैं बीमार थी। मैं तो कभी अस्पताल में भर्ती नहीं हुई।
गोविंद दास ने पूरी बात बताई। साथ ही आदेश दिया कि पति के साथ कल उसके समक्ष हाजिर हो। अन्यथा वह राजाराम को काम से निकाल देगा।
दूसरे दिन राजाराम सिर झुकाए गोविंद दास के सामने खड़ा हो गया। पास खड़ी पत्नी ने गोविंद दास से कहा... मालिक बेशक मेरे पति ने आपसे झूठ बोलकर अपराध किया है। लेकिन इसमें गलती आपकी ही है।
अब चौंकने की बारी गोविंद दास की थी।
आश्चर्य से उन्होंने उसकी ओर देखा।
इस पर राजाराम की पत्नी बोल पड़ी... मालिक , यदि समय रहते आपने मेरे पति की ओर ध्यान दिया होता, तो न तो उसे फिजूलखर्ची की आदत पड़ती और न आपको धोखा होता।
एक सामान्य महिला की एेसी साफगोई पर दुनिया देख चुके गोविंद दास अवाक रह गए। उन्होंने राजाराम को माफ कर दिया...।
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लेखक बी.काम प्रथम वर्ष के छात्र हैं।