तुम और हम जब सफर पर चले तो दो से एक हुए
फिर नही चला पता कि कब हम दो से चार भी हुए
जब किया था सफर शुरू तो हम दोनों ही कुँवारे थे
आज जब देखती हूँ मुड़कर तो तो क्या खूब नजारे थे।
आज भी हम जवां हैं तेरी पाक मुहोब्बत से
कल भी जवां रहेंगे जो तुमको सँग पाएँगे
बस डर लगता है अब देख कर हालात हमे
बुढापा बीते तुम्हारे सँग ऐसे हो जाओ तुम साथ मेरे
बेटी भी चली जाएगी सँग हमारे दामाद के
बहु भी ले जाएगी सँग हमारे लाल को
फिर से लौटेगा वो हनीमून का जमाना
बस तुम रहना तब साथ ताकि गूँजे मुहोब्बत का तराना
बस यही करती हूँ प्रार्थना मेरा सफर तुम सँग लम्बा चले
जब भी जाऊँ इस दुनिया से लाल जोड़े में तू विदा करे
पता नही क्या लिखा है इन हाथों की लकीरों में
काँप जाती हूँ मैं अब सोच कर बुढ़ापे को अभी से
जो सफर शुरू किया है बस खुशनुमा बना रहे
बस ऐसा करे मेरा ईश्वर प्यार हमारा अमर रहे
करती हूँ रोज अब यही ईश्वर से प्रार्थना
तुम रहो बस साथ मेरे चाहे कोई भी हो साथ ना
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ॐ नमःशिवाय