कविता जो दिल को छू जाये
पंछी क्या सोचे वो क्या जाने,
पंछी बन जो उड़ना ना जाने.
नहीं कल को सोच पछताना,
क्या होगा सोच ना घबराना.
सोने का पिंजरा पसंद नहीं,
पेड़ों पर जाकर सो जाना.
दाना-पानी का व्यापार नहीं,
सोने-चांदी की भी चाह नहीं.
जो है सब तेरा - मेरा है,
हम सब का यही बसेरा है,
मज़हब जाति का पता नहीं.
आपस में कोई बैर नहीं.
दाने- पानी पर लड़कर भी,
आपस में मिलकर सो जाना.
मज़हब पंछी को मान के हम
खुद पंछी क्यों ना बन जाए. (आलिम)..............