क्या आप जानते हैं महर्षि वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ ? vedvyas kon the in Hindi
क्या आप जानते हैं महर्षि वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ ?
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अक्सर हमसे पूछा जाता है कि महाभारत किसने लिखी? तो हम यह सुनकर तपाक से जवाब दे देते है कि महर्षि वेदव्यास ने महाभारत लिखी। पर क्या कभी आपने यह जानने का प्रयास किया कि वेदव्यास का जन्म कैसे हुआ ? वेदव्यास के पिता का नाम क्या था? वेदव्यास की माता का नाम क्या था? तो चलिये आज इन महापुरूष के बारे में भी जान लेते हैं।
महर्षि वेदव्यास के पिता का नाम महर्षि पाराशर था। वेदव्यास, महर्षि पराशर के कानीन पुत्र थे। अब सवाल ये कि कानीन पुत्र क्या होता है? आसान शब्दों में कानीन पुत्र उन्हें कहा जाता था जो किसी अविवाहित कन्या के गर्भ से जन्म लेता हो।
उदाहरण के लिये महाभारत का महान योद्धा और दुर्योधन का परम मित्र कुंती पुत्र महाबली कर्ण।
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अगली जिज्ञासा यह उत्पन्न होती है कि वेदव्यास की माता का नाम क्या था? वेदव्यास की माता का नाम सत्यवती था। आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि वेदव्यास की माता सत्यवती, पितामह भीष्म की भी विमाता थी।
सत्यवती मछुवारों के सरदार की पुत्री थी। सत्यवती नित्य प्रतिदिन पथिकों को नौका द्वारा नदी पार करवाती थी। वे अपने अभूतपूर्व सौंदर्य की धनी थी।
परंतु वह मछलियों का व्यापार करती थीं। इसी कारण से सत्यवती के शरीर से मछली की गंध आती थी। इसी कारण सत्यवती का दूसरा नाम “मत्स्यगंधा” भी पड़ गया। मत्स्यगंधा मतलब मछली की गंध वाली।
एक बार की बात है, पराशर ऋषि, सत्यवती की नाव में बैठकर नदी पार करने के लिये गये। परंतु हुआ कुछ ऐसा कि बीच नदी में अपूर्व सौंदर्य की धनी सत्यवती को देखकर पराशर ऋषि के मन मे काम का भाव उत्पन्न हो गया।
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अपने मन की यह बात उन्होंने सत्यवती को बतायी। तब यह सुनकर सत्यवती ने उनसे कहा कि वह अभी विवाहित नही है। इस पर पराशर ऋषि ने कहा कि वो सदैव अक्षतयोनि ही रहेग। अक्षतयोनि का अर्थ होता है कि उनका कौमार्य कभी भंग नही होगा।
स्पष्ट शब्दों मे कहा जाये तो वह सदा युवती ही बनी रहेगी ऐसा वरदान उन्हें पाराशर जी ने दिया। बिल्कुल ऐसा ही वरदान आगे चल कर महर्षि वेदव्यास जी ने पांचाली द्रौपदी को भी दिया था।
इसके अलावा पराशर मुनि ने सत्यवती के शरीर से मछली की गंध को भी समाप्त कर दी और इसके बाद उसे एक अलौकिक एवं अद्भुत दिव्य गंध प्रदान की जो कि एक योजन तक फैली रहती थी। और इसी कारण से सत्यवती का नाम दिव्यगंधा भी पड़ गया।
एकदम साफ वातावरण होने के कारण पराशर ऋषि ने योगबल से नदी में कोहरा उत्पन्न कर दिया ताकि कामभाव करते समय उन्हें कोई भी देख न सके। और इस प्रकार उन्होंने सत्यवती के साथ समभोग किया।
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चूँकि ऋषि ने उनहें एक वरदान पहले ही दे दिया था इसलिये उस वरदान के कारण सत्यवती पुनः कुंवारी कन्या बन गयी। समय आगे बढ़ता गया और कुछ समय के बाद उन्हें एक पुत्ररत्न प्राप्त हुआ जिसका वर्ण काला था।
समाज के भय के कारण सत्यवती और उसके पिता ने उस बालक को एक द्वीप पर छोड़ दिया। इसीलिए उनका नाम “कृष्णद्वैपायन व्यास” पड़ा।
आगे चलकर वे अपने पिता के समान ही महान ऋषि बने और महाभारत की रचना भी की।
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