नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल. आज-कल ख़बरों में हैं. खबर में इसलिए है क्यूंकि ऐसा बताया गया कि इसने एक आदेश जारी किया है. ये आदेश अमरनाथ मंदिर से जुड़ा हुआ था. वही अमरनाथ मंदिर जहां भयानक यात्रा होती है. ये यात्रा काफी फ़ेमस है. इसके बारे में क्या ही बताया जाए. यहां हर साल बर्फ़ का शिवलिंग बनता है. एकदम नेचुरल. लगभग 13 हज़ार फ़ीट की ऊंचाई पर मौजूद अमरनाथ मंदिर के लिए हर साल यात्रा का आयोजन होता है. एनजीटी ने इसी यात्रा के बारे में आदेश जारी किया है. कहा है कि वहां जाने वाले यात्री ऊंचे स्वर में लगाए गए जयकारों से बचें. जयकारे न ही लगायें. वहां घंटे न बजाए जाएं. एनजीटी ने ऐसा वहां की गुफाओं और पहाड़ों को बचाए रखने का हवाला देते हुए कहा (ऐसा कहा गया).
मगर ये सच नहीं था. एनजीटी ने अपने पास से ही कोई आदेश नहीं जारी किया. एनजीटी में एक महिला ने याचिका डाली. महिला का नाम है गौरी मऊ लेख ी. गौरी से हमने बात की और उन्होंने हमें बताया कि अमरनाथ यात्रा के दौरान जो भी भीड़-भड़क्का होता है और शोर-शराबा होता है उसकी वजह से वहां के पर्यावरण पर बुरा असर पड़ता है. इस बाबत उन्होंने एनजीटी में एक याचिका दायर की और इस ओर उनका ध्यान खींचने की कोशिश की. इतना ही नहीं, एक एनिमल राइट एक्टिविस्ट होने के नाते उन्होंने वहां सवारी ढोने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले घोड़े और बाकी जानवरों के बारे में भी सोचते हुए उनकी हालत पर चिंता जताते हुए याचिका दायर की. इस याचिका के बदले एनजीटी ने निर्देश नहीं जारी किये. बल्कि कुछ सुझाव दिए और साथ ही एक कमिटी बनाने का फ़ैसला लिया जो इन बातों पर विचार करेगी.
एकमात्र निर्देश जो एनजीटी ने जारी किया, वो ये था कि गुफ़ा की एंट्री से शिवलिंग के दर्शन तक (21 कदमों का फ़ासला) कोई भी श्रद्धालु अपने साथ कैसा भी सामान नहीं लेकर जायेगा.
खबर यूं बाहर निकली कि एनजीटी ने अमरनाथ मंदिर के इलाके को साइलेंट ज़ोन बना देने का आदेश दे दिया था. ये खबर फैलते ही सोशल मीडिया पर हलचल मच गई. अचानक ही इस बिना जारी किये गए आदेश को धर्म-विरोधी बताया जाने लगा और भावनाएं आहत होने लगीं. भावना के पास और कोई काम नहीं है घड़ी-घड़ी आहत हो जाती है. विश्व हिन्दू परिषद ने इसे ‘तुगलकी फ़तवा’ बता दिया. इसके बाद ये भी कह दिया गया कि एनजीटी ने माहौल खराब होता देख एक सफाई दे दी है – पूरे अमरनाथ को साइलेंट ज़ोन में नहीं तब्दील किया है. बल्कि ये आदेश गुफ़ा में ही लागू होगा. कहा ये जा रहा था कि पहले एनजीटी ने अगर अमरनाथ गुफ़ा के आस पास के इलाके को साइलेंट ज़ोन में तब्दील करने के लिए निर्देश जारी ही कर दिए थे. क्यूंकि ऐसा करने से हिमस्खलन से बचा जा सकता है और साथ ही आस-पास की प्राकृतिक सम्पदा पर कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा. जबकि ये सच नहीं है. एक बार फिर से – एनजीटी ने कोई भी निर्देश जारी नहीं किया है.
जनता पीछे पड़ गई कि ये उनके धर्म के ख़िलाफ़ है और उन्हें नाहक ही परेशान किया जा रहा है. उन्हें चाहिए कि वो जहां मर्ज़ी आए,वहां जयकारा लगा सकें. मानो यात्रा का मकसद शिवलिंग के दर्शन नहीं बल्कि जयकारा लगाना ही हो. या वो जयकारे नहीं बल्कि एक पासवर्ड हों जिसे सुनते ही कपाट खुलेंगे और शिवलिंग उसके बाद ही दिखाई देगा. समस्या यहीं है. एनजीटी ने भले ही कोई निर्देश जारी न किये हों मगर किसी जगह पर जाने वालों को वहां के माहौल के बारे में जानकारी रखनी चाहिए. उन्हें ये भी मालूम होना चाहिए कि उस जगह को क्या बेहतर बना सकता है और क्या उसे बरबादी की राह पर धकेल सकता है. जयकारे लगाना अपने साथ सामान ले जाना और फिर वहां उसे कूड़े के रूप में छोड़ आना वो तरीके हैं जिनसे एक ‘पवित्र’ जगह नरक में बदल सकती है. पहाड़ों पर,चाहे आप कहीं भी जाएं शोर मचाने से मना किया जाता है. क्यूंकि इससे हिमस्खलन का खतरा बढ़ता है. एकदम पेवर साइंस.
जब सेना की एक टुकड़ी कहीं भी कदम-ताल के साथ चल रही होती है तो उनके क़दमों की लयबद्ध आवाज़ से एक फ्रीक्वेंसी की आवाज़ उत्पन्न होती है. पुल पार करते वक़्त अगर उनकी ये फ्रीक्वेंसी पुल की रेज़ोनेटिंग फ्रीक्वेंसी से मैच कर जाए तो पुल भी कांपने लगता है
NGT के इस फैसले के बारे में अपने विचार भी कमेंट में लिख के बताइये.
ऊपर लिखे गए लेख के विचार लल्लनटॉप के केतन बुकरैत के है