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क्या है सुख और दुख का संबंध

14 दिसम्बर 2017

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मनुष्य के जीवन में सुख और दुख मात्र एक अनुभूति है। इसका कोई ठोस आधार नहीं है। अगर कोई आज के दिन दुखी है, तो कल सुख से खुशिया मना रहा होगा। सुख और दुख का परिस्थिति से विशेष लेना देना नहीं है। अगर कोई एक परिस्थिति में दुखी रहता है, तो दूसरा उन परिस्थिति में खुशिया मनाता है।

मृत्यु अंतिम सत्य है, इससे मत डरो

आजकल सब लोग सुख के पीछे भागते है, किसी दिन हमें दुख का सामना करना पड़ेगा, यह कोई नहीं चाहता। इस सोच से ही आदमी विचलित हो जाता है। सुख-दुख ये जीवन के दो पहलू है। आदमी इससे छूटा नहीं है।

गौतम बुद्ध ने कहा है, “मृत्यु अंतिम सत्य है”।

अगर सभी एक न एक दिन इस दुनिया से जाने वाले है, तो दुख से क्या घबराना? जीवन मरण के इस चक्र से कोई नहीं छूटेगा। मृत्यु तो अपने हाथ में नहीं है, लेकिन हमें जो मूल्यवान जीवन मिला है, इसको अच्छे से व्यतीत करना क्या हमारा कर्तव्य नहीं?

स्वार्थ से बचे

कोई भी काम करने से पहले हम अपने स्वार्थ के बारे में पहले सोचते है। सबसे अधिक फायदा और पैसा हमें किसमें मिलेगा यही हमारी प्राथमिकता रहती है। हम कोई भी काम तब तक पूरा नहीं करते, या फिर उस काम की शुरुवात नहीं करते जब तक हमें उस काम के फायदे के बारे में पता ना चले। अगर यह काम हम कर भी लेते है और उस काम में कामयाबी नहीं मिलती है तो सबसे पहले दुख का सामना करना पड़ता है। क्योंकि इस काम के पीछे हम अपनी मेहनत, पैसा और समय लगा देते है।

पैसो को ही सबकुछ मत समझो

क्या आपने अपने जीवन में पैसो को अधिक महत्व दिया है? अगर हाँ तो आप एक बात सोचो, कि पैसो से आप क्या-क्या खरीद सकते है। नीचे दिये गए सवाल खास आपके लिए है। इसका जवाब सोच समझकर दीजिये और अपने डायरी में नोट करके रखे।

पहला प्रश्न - क्या पैसा देकर आपको खोई हुयी इज्जत वापस मिल जाएगी?
दूसरा प्रश्न - पैसे वाले को कभी मृत्यु नहीं आती?
तीसरा प्रश्न - मरने वाले को पैसा खर्च करके वापस बुलाया जा सकता है?
चौथा प्रश्न – पैसे देकर खोया हुआ समय वापस लाया जा सकता है?

चलो अब इसकी वास्तविकता के बारे में सोचते है। क्या आपने भी सभी सवालो के जवाब "ना" लिखे है? अगर हा तो इसके विपरीत भी सोचते है। जवाब को आप उलटा मतलब “हाँ” उसी स्थिति में कर सकते है, जब आपको लगता है कि पैसे देकर इस कार्य को पूरा किया जा सकता है। लेकिन यह संभव नहीं है।

“पैसा देकर बहुत कुछ खरीदा जा सकता है, लेकिन सब कुछ नहीं खरीदा जा सकता”। बस यही पैसो कि मर्यादा है।

मैं यह नहीं चाहता कि आप पैसे मत कमाओ, लेकिन पैसो के पीछे भागते-भागते हमें अपनी नैतिकता खोने नहीं देना है।

प्रयास करना सीखे

एक साथ दो, तीन या कई लोगो को सफलता कभी नहीं मिलती। कोई आगे निकल जाता है तो कोई पीछे छुट जाता है। इसका मतलब हमारे पास कोई कमी है, यह नहीं होता। हमारे आगे निकलने वाला थोड़ा अधिक प्रयास करता है। शायद इसीलिए उसको सफलता मिलती है।
हार मानने कि हमारी आदत नहीं होती, यह मनुष्य कि स्वाभाविक प्रवृत्ति है। लेकिन यह प्रवृत्ति कोई मायने नहीं रखती। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि, आपकी चाहत क्या है। एक ही चीज को पाने वाले कि संख्या बहुत अधिक होती है, शायद एक हजार या फिर उससे भी जादा। लेकिन यह चीज उसी को मिलती है जिसने सबसे अधिक प्रयास इस चीज को पाने के लिए किए है। बाकी एक हजार में से 999 लोगों को इससे हाथ धोना पड़ता है या फिर इंतजार और दुबारा प्रयास करना पड़ता है।

फिर से संभल कर प्रयास करना सबसे बड़ी बात है। यह तभी होता है, जब हमें अपने भावनाओं पर, अपने ऊपर नियंत्रण और विश्वास होता है। बार-बार प्रयास करने से अपने अंदर उस काम को पूरा करने का विश्वास दृढ़ हो जाता है। एक न एक दिन उस काम में हमें सफलता जरूर मिलेगी, इसी विचार से हमें शक्ति मिलती है उस काम को पूरा करने के लिए।

दुख है तो सुख भी है

आनंद क्षणिक है इसकी वैधता बहुत ही कम है। मनुष्य सुखी रहने का समय तय नहीं कर सकता, सुख मिलने के बाद मनुष्य कितने समय तक खुश रहेगा इसका कोई आश्वासन नहीं दे सकता। तो फिर सुख के पीछे मनुष्य इतना दौड़ता क्यों है?

इसके विपरीत दुख जब होता है, इसका परिणाम बहुत समय तक रहता है, दुख यह जीवन का वह आईना है जिसको हम देखना नहीं चाहते। लेकिन यह संभव नहीं है। दुख कभी मनुष्य को बताकर नहीं आता। मनुष्य के जीवन में दुख नहीं होगा तो सुख का अनुभव कैसे होगा? सुख और दुख मनुष्य के ही जीवन के दो पहलू है।

अपने सुख से पहले दूसरों के सुख के बारे में सोचे

हम चाहते है सबसे पहले हमें ही मिले। अगर सभी ने यही विचार किया है तो, यह प्रकृति के खिलाफ है। सुखी वही मनुष्य है, जिसने दुख में भी सुख का अनुभव किया है।

“क्या यह संभव है? यह हो सकता है?” हाँ, इसका इलाज है, यह हो सकता है।

सबसे पहले हमें “मैं” इस भावना को अपने अंदर से निकाल देना है। जब आपके अंदर “मैं” ही नहीं रहेगा तो आपको अपने लिए कोई खास बात करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अपने स्वार्थ के बारे में सोचने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

अगर कुछ करना है तो दूसरों के बारे में भी उतना ही सोचो जितना आप अपने फायदे के लिए सोचते है। हर कदम पर अपने फायदे के साथ - साथ आप दूसरों के बारे में सोचेंगे, दूसरों के सुख के लिए लड़ोगे उस दिन आपको सुख का नया एहसास होगा। आज आपने दूसरों के लिए कुछ किया है तो कल वही आपके लिए मदद करेगा। यह निस्वार्थ मदद आपके जीवन में जरूर काम आएगी।

यह लेख hindidarpan.com से लिया गया है।

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