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लौह महिला' का स्याह पक्ष

25 मार्च 2023

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पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी भारतीय राजनीतिक इतिहास की एक बड़ी किरदार रही हैं। बांग्लादेश का जन्म, इमरजेंसी, ऑपरेशन ब्लू स्टार जैसी बड़ी घटनाएं उनके नाम हैं। विष्णु शर्मा की नई किताब 'इंदिरा फाइल्स' में कुछ ऐसे अनसुने किस्से हैं, जो आपको चौंका देंगे।

29 अगस्त 1980 की बात है. ईद का दिन था. करीब 15000 मुस्लिम ईदगाह में इकट्ठा हुए थे। अचानक से वहां पास की गरीबों की बस्ती से एक सुअर आए मुस्लिमों ने सुअर को खुद भगाने के बजाय मौके पर से कि इसको भगाओ। उसने मना कर दिया। मुस्लिमों ने उसे पीट दिया, पुलिस वाले भी गुस्सा हो गए। मुस्लिमों ने पत्थरबाजी शुरू की और पुलिस बालों ने लाठी कर दिया। एक चश्मदीद ये भी कहता है कि एसएस के सर पर पाने से पुलिस मुख्या हुई और फिर पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी। एक तरफ पुलिस व पीएसी के तो दूसरी तरफ मुसलमानों के जोको खाना चाहते थे। बीच में मुस्लिम बच्चे और महिला जसे मरे, उससे ज्यादा भगदड़ से गजल लग दंगों ने उसे दिकाकड़ा 400 के अधिकार 2500 तक बताया जाता है। एक महीने पूरे मुरादाबाद में कर्फ्यू लागू राज्य सरकार ने बाद कोर्ट के जज एम की अगुवाई में एक जांच कमेटी बैठा दी। आयोग की रिपोर्ट में घटना के समय इंदर के आस-पास भर या सूमों की मौजूदगी को खारिज कर दिया गया लेकर कुछ लोग आरोप लग रहे थे कि ये किसी ने साबित के वात छोड़े थे। आयोग ने साफ किया कि दंगे में या बीजे से किये भी संगठनका नहीं है. उलट मुस्लिम लीग के स्टेट प्रेसीडेंट शमीम आमद खान को दो साधिये के साथ दोषी ठहरा दिया। आवेग ने प्रशासन, पुलिस और पीएसी को भी लीन चिट दे दी और कहा कि पुलिस की गोली से कम और भगदड़ से ज्यादा लोग भी है।

एक ऐसा हिंदुओं या हिंदू संगठनों का कोई लेन देना नहीं था, ये मुसलमान बनाम पुलिस था और मुस्लिम नेताओं ने निर्दोष मुस्लिम भीड़ को पुलिस, प्रशासन के खिलाफ भड़का था साउन मुस्लिम नेताओं के नाम भी दिए. नदी ठहराया गया था लेकिन पोट की राजनीति के चलते इंदिरा गांधी ने उन पर कोई भी एक्शन नहीं और न की राज्य सरकार को कुछ निर्देश दिए और ना ही उनके बाद आने व सरकारों ने सबसे

दिला इंदिरा ने इसे विदेश कर दे दिया था। लेकिन उससे भी गर्म हो गया तीन बाद में, जिसके लिए इंदिरा गांधी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार ही प्रमुख रूप से जिम्मेदार लो नरसंहार दरों से आम में ह लोगों खासकर बंगलों के खिलाफ एक गुस्सा अंदरखाने पनप रहा जो आसाम में अपने संख्या बढ़ते चले जा रहे थे। 1971 के भारत-पाक के युद्ध के बाद बांग्लादेश से आने वाले मुस्लमों की संख्या आ में तेजी से बढ़ गई थी, लाखे लोगों के बीट भी बना दिए गए। 1979 में स्टूडेंट उनके खिलाफ अपने आंदोलन का ऐलान कर दिया।

[23]पी के प्रभु के राज्य सरकार के चुनने में पार्ट को मुश्किल हो रही इनके करने की मांग पर कांग्रेस का नहीं रही इंदिरा ने अप किया कि 1983 में राज्य में चुनाव हो जबकि बाकी पाहत कि से पहले इन लाखों मुसलमानों का पेट र कर इन्हें शुरूआत हुई 1979 में मंगल से जनता पार्टी के उप कि अचानक से उस मोट पर वोटर्स की संख्या भारत से है। पता चला की काफी नथे।

इस आम में जनता पार्टी में टूट होगी उनकी एक सरकार गिर गई तो नरक की असे दूसरे गुट ने बना मुश्किल से 3 महीने के अंदर से सरकार भी गिर गई और चुनाव एआई) के अनवर ने विधायकों की खरीद अपनी सरकार बना ली। 6 महीने के अंदर से सरकार भी गिर गई तो राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। 1982 में कांग्रेस (आई) के राव गे सरकार बनाई लेकिन ये 2 महीने तक ही चल पाई। फिर राष्ट्रपति श लगा दिया गया और ये नाना के नए चुनाव के को रिमर सरकार आदेश मुस्लिम पोटर

बन चुके थे कि इंदिरा गांधी अपनी जीत को लेकर एक नया मनोर स्टूडेंट यूनियन (एएएस) 1971 से पहले जी आसाम में विदेशी चुकेको हिंदू-मुस्लिमों की घटनाएं भी

इंदिरा गांधी सरकार ने तप कर कि मार्च 1983 तक हो सरकार बनाएगी। जबकि असम गण परिषद जैसे कि चुनाव से पहले विदेशतियों को निकाल बाहर किया जाए। 7 जनवरी से 21 फरवरी के बीच चुनाव की तरीखों का ऐलान हो गया। इसी के साथ आसू और असम गण परिषद ने जनता क सलाखों के पैसे नहीं पहुंच का ऐलान कर दिया और कार का भी

नेल्ली में 14 फरवरी को मादन हुआ हमार का आन करने वालों ने विदेशी मुस्लिमों से वोट ना करने को कहा नहीं करने, उनसे व्यापार करने पर 500 रुपए का अलग की भी बात की पुलिस खुफिया एजेंसियों आदि के तनाव से जुड़े तमाम संदेश अधिकारियों के पास आ रहे थे, लेकिन चुनाव नहीं रोके गए करने को

लेकर आदिवासियों ने कई 16 जिले के गाँव के बाहर 5 या 6 आदिवासियों के बच्चों को लमिली इससे और [गरमा गया। एक के बाद एक कई छोटी- छोटी घटनाएं हुई, 17 फरवरी को पास के एक में इसरो कोटदेने से गा आदिवासियों के बच्चों को लाश मिली थी, उसी जगह मुस्लिमों के दोनों की मिली। फिर तीन हिंदू और में मुस्लिमों के हमले की आ 19 फरवरी जुम्मे का दिन के जेज और आसाम माता के नारों के साथ आप बोल दिया। आस-पास के 14 में

हुआ फरक रूप से 2191 सोचे पर 10,000 लोगों के मारे जाने की ब अलग-अलग गई है। 400 पैठ मिलिट्री की और आर्मीकी के लिए शिवा आग बनाया गया 547 को रिपोर्ट

तैयार हुई उस दौर की

विष्णु शर्मा लगभग 20 साल से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। इतिहास और फिल्मों में चलनेवाले एजेंडे के खिलाफ उन्होंने काफी काम 'सच' काफी लोकप्रिय हैं।

किस सरकार ने पाकि अधिक दर्ज किए

इसको नहीं किया

जिनमें से 379 केस तो हो गए क्योंकि उनमें कोई सामने नहीं आप सहे भारत सरकारने लिए आम आंदोलनकारियों के साथ उनका आसाम समझ 1985 में हुआ आज तक इतने बड़े हार के आरोपियों में से एक भी

अपने देश की जनता पर ही बमवर्षा

इन फाइटर जेट्स का निकनेमा 'ऐ ऐसा पर शहर के सारे लोग घरों से जंगल और पड़ियों में भाग गए। भीम १० छोटे बच्चे और का हुआ होगा जिनके परोपर मग जब सरकार हो रही हो आपके दिमाग में उठा होगा

कि मामला से आजादी से पहले का है जब 1895 में के साथ कई दौर की केने 1995 में इस इलाके पर कर लि लगभग सारी जनता का धमक दियो के आगे उन उन्हें ईसाई बनने के ब भी है।

आजादी द लेकिन मनो किया है। उनकी पुस्तकें 'गुमनाम का ज्यादातर हिरा के गौरवशाली गाथाएँ आम के नेताओं पर क्षेत्र के सील करने के आय और 'इतिहास के 50 वायरल लगने लगे और राज् करने लगे मी को राज्यको

कमी दर्ज की गई. अर नायकों की

मेने एक और 1950-60 में ब सरकार ने मिने आदिवासियों को मरने के लिए

95इन में आ गई थी।

छोड़ दिया सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली ऐसी करते हैओं ने के लिए मिलकर एक संगठन नेता गो की भरपूर मदद इस संगठन ने पहाड़ी की तो लोग इस संगठन की काफी इज करने लगे वहाँ भारतीय सरकार के खिलाफ अलगद को भावना भी भड़कने लगी।

सलग इंडियन आर्मी में में आम सरकार के साथ एकाउंट्स और पर काम किया लेकिन मिजो डिस्ट्रक्ट में अके समय आयाम सरकार का देखा गया 2 साल बाद इस संगठन ने अपना नाम बदलने (एमएफ) और अब स्वरूप भी लिया गले में इस भारत विरोधी विदेशी शक्तियों से बढ़ाकर अपने को बढ़ा इसी को एक मिशन (एमए) ने नायकों के नाम पर खड़ी कर दो।

पूर्वी पाकिस्तान अब देश से उसे सैन्य पदम और एमएनए ने सीधे भारत से अलग देश बनेकी शुरु करने पूर्वी पाकिस्तान की भी की और ट्रेनिंग का समझौता भी कर लिया। आमा ने उसे एक भी कर लिया, लेकिन अच्छे आचरण के द हुआ और म्यांमार के फादर ऑफ सान सुकी के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री आगमन की कीमत का काम और उन्हीं से प्रेरणा लेता था। कम्यूनिस्ट विचार से जुगन पैसे ही राष्ट्र के विचार कोनहींमनाऐ में लाल को देश के को भारत से अलग करके नया देश बनाने में कोई नहीं

28 फरवरी 1966 को एक बड़े का ऐलान किया और 1 मार्च को को एक अलग देश कर दिया और उसके ही ऑपरेशन' आम के सरकारी दरी पर करना शुरू कर दिया के के के 10000 ले लड़कों की फौटने मेंटर दियो के साथ साथ पेट्रोल पम्प आदि पर भी करना शुरू कर दिय और की कोशिश लोकॉप्टर से भी की गई, लेकिन विद्रोहियों की

उस इंस्टा से मन मार्च को ट से फायरिंग के बाद अगले दिन ने 5 घंटे कोने अपने एक लेख में परम राजेश बाद में पार्टी में काफी तरक्की दी गई। 1998 में ने एक इंटरव्यू में कहा था कि में एमएनएफ में अगर शामिल हुआ 1966 में के खिलाफ हुआ था आज तक के सद लोग "नवस के तौर पर इस दिन को क है। इससे कि जब एक 1968 में जो के ऊपर से उड़ रहे थे उनके एमआईर परने की एक नहीं ऐसा था के सौभाग्य का तो अ लेकिन उन्हेंॉप्टर के कमजोर ओिं की जानकारी नहीं सो

ऐ और आम पास के इलाके 25 मार्च तक फिर से भारत सरकार के में आ गए थे। लेकिनउठने लगे कि एयर के ए और अपने ही नागरिकों पर को? अग 20 उन कहकर साथ ही एक

लोग दूकीपर बने रहते उनक एक ही रोड के किनारे आपको जाना है, जो सेक सेएरीआपको इंडियन आर्मी कर देंगे और कभी सरकार कोड पर बहनों में अपने में में चीनियों के साथ केन्या में कोएकेा न

लेकिन इंदिरा गंध और केक उन्होंने को है तीन दूसरे देश की जनता के दो भारतीय 764 516 को पूरी तरह लिया और उनको 110-

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इंदिरा फाइल्स
5.0
लेकिन इंदिरा गांधी ही क्यों? आजाद भारत में इंदिरा गांधी वंशवाद का सबसे बड़ा और पहला उदाहरण हैं। वंशवाद का एक ऐसा उत्पाद, जिसको लौह महिला भी कहा जाता है और दूसरी तरफ आपातकाल थोपने के लिए हर साल उनकी तानाशाही को श्रद्धांजलि भी दी जाती है। एक तरफ पाकिस्तान के दो टुकड़े करके इंदिरा गांधी ने भारतीय इतिहास में अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखवा लिया, तो दूसरी तरफ गांधारी की तरह बेटे को अंधा प्रेम कर ‘संजय की मम्मी, बड़ी निकम्मी’ जैसा नारा भी झेला। एक तरफ सिक्किम विलय में अहम भूमिका निभाई तो दूसरी तरफ ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ का दाग उनकी मौत भी नहीं मिटा पाई। एक तरफ परमाणु परीक्षण कर भारत की ताकत और हिम्मत को पर लगा दिए तो दूसरी तरफ पहली ऐसी प्रधानमंत्री बनीं, जिनको हाई कोर्ट ने प्रधानमंत्री पद से ही हटने का आदेश जारी कर दिया। यह पुस्तक किसी भी जागरूक पाठक, शोधार्थी, पत्रकार, नेता, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं के लिए काफी तथ्यात्मक हो सकती है। कुछ मुद्दे जो इस पुस्तक में लिखे गए हैं, वे और ज्यादा जगह माँगते थे, लेकिन ज्यादा विषयों को लेने की रणनीति के चलते उन्हें सीमित जगह ही दी गई। शोधार्थी इसको आधार बनाकर और गहन अध्ययन कर सकते हैं।

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