मै मध्यम वर्ग,एक निरीह प्राणी हूं,
लॉकडॉउन की घोषणा हुई ,
छुट्टियों का सोच मुझे बड़ी खुशी हुई,
कुछ दिन घर में बीते हंसी खुशी,
धीरे धीरे काफुर हुई सारी खुशी।
सब्जी खत्म, आटा खत्म,दूध की किल्लत,
दाल चांवल के डिब्बे बोलने लगे ,
बीबी की आवाज़ सुन,माथे पर आईं सलवट।
अंदर सुनो ना ,तो बाहर कोरोना का डर,
सब्जी, आटे के लिए बाहर आया,
तो चौराहे पर पुलिस के डंडे का डर।
सुना था बाहर राशन बंट रहा है,
लेकिन मै ठहरा मध्यम वर्ग,
समय बिता ,पैसे भी हुए खत्म,
कई समाज सेवी घर घर बांट रहे थे राशन,
मै भी घर पर किसी समाजसेवी के आने की
सुन रहा था आहट ,
लेकिन मै एक मध्यम वर्ग ,मुझे कैसे मिलती राहत।
उन्हें क्या मालूम ,मेरे घर की माली हालत
घर में पड़ी है ब्याहने लायक छोकरी,
और खाट से उठ नहीं रही है डोकरी।
लेकिन मै ठहरा एक मध्यम वर्ग,
मेरे यहां क्यों पहुंचेगी राशन की टोकरी।