पापा, जो सायकिल के डंडे पर आगे बैठा कर
चढ़ाई पर जोर लगाते थे,
बाद में फिर पढ़ाई में आगे
बढ़ाने में जोर लगाते थे।
मौका आने पर जॉब या बिजनेस के लिए,
एक बारऔर जोर लगाते थे।
अच्छी सी जीवन संगिनी,
तुम्हारे लिए ,समाज के
फिर कई फेरे लगाते थे।
नए शहर में नया घरबार ,
तुम्हे बसाने के लिए,फिर
अपना घर छोड़ आते थे।
नाती पोतों को सम्हाल,घर का सामान ला,
तुम्हारे लिए फिर गृहस्थी के चक्र में
उलझ जाते थे।
पापा तो आखिर पापा थे,
अन्त समय तक हमारे
लिए ही जुटे रहते थे।