हां मैं एक बेजुबान हूं, हां मैं एक बेजुबान हूं।
लेकिन सोच तो सकती हूं मैं ,
आखिर क्या गुनाह था मेरा,
जो मार डाला उसने मुझे।
मेरे गर्भ में पल रहे शिशु ने,
आखिर क्या बिगाड़ा तेरा,
इतनी भी समझ नहीं तुझे।
स्वार्थ में अंधे हो कर,
प्रकृति को निचोड़ घर भरा तेरा,
वो भी कभी समझ न पाई तुझे।
आखिर क्या गुनाह था मेरा,
जो मार डाला उसने मुझे।
मै तो इंसानों से प्रेम करती आई हूं,
कभी युद्ध में, तो कभी सर्कस में,
तूने नफ़रत से क्यों मारा मुझे।
मै चाहती तो बर्बाद कर देती,
सब कुछ तेरा,
तब ये मानवता के दुश्मन ,
कर देते पागल करार मुझे।
आखिर क्या गुनाह था मेरा,
जो मार डाला उसने मुझे।
हां मै एक बेजुबान हूं, हां मै एक बेजुबान हूं।